अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा दिल्ली के शपथग्रहण समारोह का सटीक विश्लेषण

- पाली
अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा दिल्ली के निर्वाचित प्रधान रामपाल जांगिड़ एवं उनकी कार्यकारिणी का शपथग्रहण 14 अप्रेल को दिल्ली स्थित महासभा भवन मूडका में सम्पन्न हो गया है।
सूत्रों और सोशल मीडिया रिपोर्टों के अनुसार शपथग्रहण से पूर्व महासभा द्वारा जैसा प्रचार-प्रसार किया जा रहा था वैसा कार्यक्रम देखने को नहीं मिला।
बताया जाता है कि मुख्य अतिथि माननीय ओम बिड़ला लोक सभा अध्यक्ष भारत सरकार, अति विशिष्ट अतिथि योगेन्द्र चंदोलिया सांसद उतरी पश्चिमी दिल्ली, रामचन्द्र जांगड़ा राज्यसभा सदस्य हरियाणा, विशिष्ट अतिथि आशीष सूद गृह मंत्री दिल्ली प्रदेश सरकार, प्रवेश सिंह वर्मा मंत्री दिल्ली सरकार, सुनील यादव अध्यक्ष दिल्ली प्रदेश ओ बी सी मोर्चा, राम गोपाल सुथार अध्यक्ष विश्वकर्मा कौशल विकास बोर्ड राजस्थान सरकार, चंद्र प्रकाश, विधायक आदमपुर, गजेन्द्र दराल विधायक मुंडका, अजीत मांडण प्रदेश मंत्री बीजेपी राजस्थान सहित कुल 10 राजनेता अतिथि थे। प्रत्येक राजनैता के तीन समर्थक या अंगरक्षक समझ लें तो उनकी संख्या 30 इस प्रकार 10+30= 40 होती है।
जांगिड़ ब्राह्मण मासिक पत्रिका के अनुसार महासभा की कुल सदस्य संख्या एक लाख से अधिक है। भारत में कुल 28 प्रदेश है और 8 केन्द्र शासित प्रदेश इस प्रकार कुल 36 प्रदेशाध्यक्ष होते हैं। भारत में कुल 780 जिले हैं। जिसमें प्रत्येक जिले से एक जिला अध्यक्ष और प्रदेश से एक प्रदेशाध्यक्ष मान लें तो इस प्रकार 36 प्रदेशाध्यक्ष + 780 जिला अध्यक्ष कुल 816 प्रदेश और जिला अध्यक्ष होते हैं। इसके अलावा अतिथियों, उनके समर्थकों, अंगरक्षकों, रिपोर्टरो और नोकरों की संख्या 100 मिला दें तो 916 होती है । जबकि कल महासभा के उक्त शपथग्रहण समारोह में दर्शक दिर्घा की चार पांच पंक्तियां तक ही दर्शक मोजूद थे जिसकी संख्या मुश्किल से 500-600 भी नहीं थी, यानी महासभा की कुल सदस्य संख्या का सिर्फ आधा प्रतिशत से भी कम। मातृशक्ति की उपस्थिति तो और भी दयनीय थी मात्र चार पांच बहनें ही मोजूद थी ऐसा क्यों हुआ?
अगर विश्लेषण करें तो जो राजनेता महासभा के बुलावे पर आये वे भी सोचते होंगे की हम कहां आकर फंस गए ? क्यों की यहां दर्शक तो है ही नहीं। इसलिए तीन चोथाई कुर्सियां खाली पड़ी है। पत्रकारों और मीडियां रिपोर्टरों के लिए निर्धारित स्थान और कुर्सियां नहीं होने से वे मंच पर मंडरा रहे थे। जांगिड़ ब्राह्मण मासिक पत्रिका के अनुसार वर्ष 1970-80 के दशक में जब मैं महासभा का सदस्य बना था, तब इसकी सदस्य संख्या मात्र 3000 के आस पास ही थी। फिर भी अधिवेशन में उपस्थिति 2500 के लगभग पहुंचती थी। जबकि उस जमाने में आज कल की तरह यातायात के साधन बहुत ही कम थे। जो सदस्य थे वे सब मेरी तरह महासभा के जानकार और हितेषी थे इसलिए सब काम छोड़कर स्वयं के खर्चें से अधिवेशन में पहुंच जाते थे। नेमीचंद जी शर्मा के शपथ-ग्रहण में जब मैंने प्रचार-प्रसार मंत्री की शपथ ली थी तब उपस्थिति पांच हजार से अधिक थी पांडाल भी खचाखच भरा था।
अब हालात इसके विपरित हो गये है हमारी महासभा का यह हाल क्यों हुआ ? इसका कारण शिर्ष पदाधिकारियों का ब्रह्मऋषि अंगिरा जी की उपेक्षा करना, और बार बार महासभा नियम उदेश्यो और पूर्वजों के पदचिन्हों से भटकना, तथा धनाढ्यों द्वारा वोट के लिए के फर्ज़ी सदस्य बनाया जाना, ओर महासभा के प्रधानो द्वारा आंखें बंद कर ऐसे फर्जी सदस्य बनाने वालों को पदाधिकारी बनाया जाना ही मुख्य कारण है । जो न तो पूर्वजों की भांति यज्ञोपवीत धारण करते हैं, और न ही सिर पर शिखा रखते हैं। वे निर्व्यसनी भी नहीं है। उनमें से कई प्रतिदिन दस गुटका खाने वाले और कई नियमित अफीम खाने और बिडी सिगरेट पीने वाले भी हैं, उनको महासभा के नियम उद्देश्य कि जानकारी भी नहीं है। अगर है तो वे इसका पालन करना कराना ही नहीं चाहते हैं। फिर भी ऐसे लोग महासभा के पदाधिकारी बना दिये जाते हैं। इसलिए ऐसे लोग दुसरो के लिए आदर्श और मार्गदर्शक नहीं हो सकते। वहीं दुसरी और गुटबाजी से त्रस्त वर्तमान शिर्ष नैतृत्व द्वारा महासभा के पुराने अनुभवी और वैदिक विद्वानों की उपेक्षा करना यही कारण है कि महासभा का यह हाल हो रहा है शिर्ष नैतृत्व इस पर आत्मचिंतन और मनन करके सुधार का प्रयास करें तो महासभा का हित होगा अन्यथा हाल इससे भी बुरे होंगे।