आत्मा के पापों का नाश करता है नवकार महामंत्र : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वरजी म.सा. का हिरणमगरी उदयपुर में प्रवचन

जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वरजी म.सा. ने श्री शांतिनाथ जैन संघ, सेक्टर नं. 4, हिरणमगरी (उदयपुर) में प्रवचन करते हुए कहा कि यह समस्त संसार नश्वर है।
जो शाश्वत है वह केवल पंच परमेष्ठि—अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु हैं। इन पंच परमेष्ठियों को समर्पित नवकार महामंत्र आत्मा के समस्त पापों के नाश की शक्ति रखता है। अतः हर व्यक्ति को इस महामंत्र का बार-बार स्मरण करना चाहिए। उन्होंने कहा कि नवजात शिशु के कानों में सबसे पहले नवकार महामंत्र का श्रवण करवाना चाहिए। हमारी दिनचर्या की शुरुआत भी इसी महामंत्र के स्मरण से होनी चाहिए, और रात्रि में सोने से पहले भी इसका स्मरण करना चाहिए।
जैनाचार्य ने कहा कि इस मंत्र को विधिपूर्वक, गुरुमुख से ग्रहण करना आवश्यक है। महानिशीथ आगम सूत्र में उपधान तप द्वारा नवकार महामंत्र के अधिकारी बनने की विधि बताई गई है। जैसे कोई व्यक्ति गाड़ी चलाना जानता हो लेकिन बिना लाइसेंस के उसे अधिकार नहीं मिलता, वैसे ही नवकार महामंत्र का अधिकारी बनने के लिए कम से कम 18 दिन की आराधना करनी होती है। इस दौरान गुरुभगवंतों की सान्निध्यता में पौषध व्रत व एकांतर उपवास की साधना करनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि अन्य जैन आगमों जैसे गणधर भगवंतों के रचित सूत्रों के लिए भी क्रमशः 47, 35 और 28 दिनों की आराधनाएं निर्धारित हैं। 47 दिन की आराधना पूर्ण करने वाले साधक को आचार्य स्वयं मोक्षमाला पहनाते हैं। आज के भोगवादी युग में भी छोटे-छोटे बच्चे आत्मिक विकास की इस साधना में उत्साहपूर्वक जुड़ रहे हैं और अपने जीवन को सार्थक बना रहे हैं। इस अवसर पर श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जिनालय समिति के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने जानकारी दी कि समिति के अनेक पदाधिकारी एवं सदस्य इस प्रवचन में उपस्थित रहे।
🔸 नवकार महामंत्र का प्रतिदिन स्मरण करें — यही आत्मा की शुद्धि का मार्ग है 🔸