कस्तूरबा गांधी
“अगर बा का साथ नहीं होता तो मैं इतना ऊंचा उठ ही नहीं सकता था।वह मेरे जीवन का अविभाज्य अंग थी। उसके जाने से जो सूनापन पैदा हो गया है,वह कभी नहीं भर सकता।”
“इस महान महिला को जो हिंदुस्तानियों के लिए मां की तरह थी।मैं अपनी विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करता हूंऔर इस शोक की घड़ी में गांधीजी के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं।”
महात्मा गांधी की धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी का जन्म 11अप्रेल 1869को पोरबंदर में हुआ। इनके पिता गोकुल दास मकन जी कपाड़िया कपड़े व अनाज के व्यापारी थे तथा पोरबंदर के मेयर रह चुके थे। इनकी माता का नाम व्रज कुंवर बा कपाड़िया था जो अत्यंत धर्मपरायण महिला थी। कस्तूरबा चार भाईयों की इकलौती बहन थी। कस्तुरबा के पिता कर्मचंद गांधी के मित्र थे उन्होंने अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलने का निश्चय किया। उन्होंने कस्तूरबा की सगाई मोहनदास से कर दी। मई 1883को कस्तूरबा का विवाह मोहनदास से हो गया।1885में कस्तूरबा ने पहली संतान को जन्म दिया लेकिन वह चल बसा। मोहनदास जब इंग्लैंड में वकालत कर रहे थे तब उनके लिए कस्तूरबा ने अपने गहने बेचकर पैसे जुटाए।
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1888में कस्तूरबा ने हरिलाल को,1892में मणिलाल को जन्म दिया।1896में कस्तूरबा भी गांधी जी के साथ दक्षिण अफ्रीका चली गई जहां 1897 में रामदास को और 1900में देवदास को जन्म दिया।1904में दक्षिण अफ्रीका में डरबन के पास फीनिक्स सेंटलमेंट की स्थापना की।1913में दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों के साथ दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन में भाग लेने पर गिरफ्तार की गई तथा 23सितबंर 1913को कठोर श्रम के साथ सजा सुनाई गई।जेल में रहते हुए कस्तूरबा ने महिला कैदियों को पढ़ने लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। जुलाई 1914में वह भारत के लिए रवाना हुई।1917में गांधीजी द्वारा किए गए चंपारण सत्याग्रह के दौरान वहां महिला कल्याण के लिए सेवा कार्य किए।1922में बोरसाद में भी गांधीजी के साथ रही।1932में साबरमती जेल रही फिर उसे येरवदा जेल भेजा गया।1939में राजकोट के राजा के खिलाफ सत्याग्रह किया।1942में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेकर गिरफ्तार हुई। जनवरी 1944में जेल में ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा।22फरवरी 1944को 74वर्ष की उम्र में आगा खान पैलेस पुणे में उन्होंने अंतिम सांस ली। गांधी जी ने उनकी स्मृति में कस्तूरबा गांधी राष्ट्रीय स्मारक ट्रस्ट इंदौर की स्थापना की जो आज भी आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ा रहा है।1964में कस्तूरबा पर भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया।
कस्तूरबा ने जीवन भर गांधीजी का साथ दिया। गांधी जी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जेल गए, उपवास रखें, धरना प्रदर्शन किए तो उससमय कस्तूरबा ने उनकी देखभाल की। वह जीवन पर्यन्त गांधी जी का अनुसरण करती रही, अपने जीवन को भी उनकी तरह सादा और साधारण बना लिया। कस्तूरबा बेहद पारम्परिक और पतिव्रता स्त्री थी।शादी से लेकर आखिरी सांस तक गांधी जी के हर फैसले में साथ खड़ी रही। अच्छी पत्नी और मां बनने की कसौटी पर खरी उतरने में लगी रही।वह बहुत आत्मनिर्भर और साहसी महिला थी जो गांधीजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चली।घर संभाला,आश्रम संभाले, अपने बच्चों व आंदोलनकारियों को ममता लुटाई, अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई को मजबूत बनाया, इसमें महिलाओं को जोड़ा जिससे हिंदुस्तान का घर घर आजादी के इस आंदोलन से जुड़ा। गांधी जी को बापू बनाने वाली इस महिला की कार्यक्षमता और कर्मठता के बापू भी मुरीद थे। गांधी जी ने लिखा -“जैसे जैसे मेरे सार्वजनिक जीवन का विस्तार हुआ,मेरी पत्नी निखर कर आई, उन्होंने जानबूझकर खुद को मेरे काम में खो दिया।”अपने कार्यो के बल पर वह संपूर्ण देशवासियों की बा बन गई। सरोजिनी नायडू ने उन्हें भारतीय नारीत्व का जीवंत प्रतीक बताया।
कस्तूरबा निरक्षर थी। गांधी जी ने उन्हें कामचलाऊ पढ़ने लिखने के योग्य बनाया।वह समझदार और अनुशासन प्रिय तथा अहिंसा की प्रतिमूर्ति थी।वह हिसाब किताब सही ढंग से रखती थी। उसका हृदय एक मां जैसा था।उसे अपने बच्चों व पोते पोतियों से काफी लगाव था।वह सरल सौम्य व्यक्तित्व की धनी थी।वह सेवाभावी थी। रसोई बनाना, खाना खिलाना,सूत कातना, प्रार्थना सभा में भाग लेना,आश्रम में आने वालों का स्वागत सत्कार करना उसकी नियमित दिनचर्या थी।आश्रम के कठोर व सादगीपूर्ण जीवन को अपनाया,जातीय भेदभाव को छोड दिया।
सचमुच कस्तूरबा की महात्मा गांधी के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका रही। गांधी जी ने लिखा -“मैं बा के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकता।”
आज कस्तूरबा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके कार्य व विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं।