बड़ी खबर

कोटा कोचिंग संस्थान और छात्रों का दबाव: कृति की कहानी

कोटा, जो शिक्षा का एक बड़ा केंद्र माना जाता है, आज छात्रों के लिए एक ऐसा स्थान बन गया है जहाँ दबाव और प्रतिस्पर्धा उनकी जिंदगी पर भारी पड़ रहे हैं। हाल ही में कोटा में एक छात्रा, कृति, ने आत्महत्या कर ली। उसने अपने सुसाइड नोट में जो बातें लिखीं, वे न केवल हृदयविदारक हैं, बल्कि समाज और शिक्षा प्रणाली के लिए एक चेतावनी भी हैं।

कृति ने लिखा, “मैं भारत सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय से अपील करती हूँ कि यदि वे छात्रों की जिंदगी बचाना चाहते हैं, तो कोचिंग संस्थानों पर जल्द से जल्द रोक लगाएं। ये संस्थान छात्रों को मानसिक और भावनात्मक रूप से खोखला कर रहे हैं। पढ़ाई का इतना दबाव होता है कि बच्चे इस बोझ को सहन नहीं कर पाते।”

उसने अपने नोट में यह भी बताया कि वह कोटा में कई छात्रों को तनाव और अवसाद से बाहर निकालने में सफल रही थी, लेकिन अपने मन के अंधेरे को खुद दूर नहीं कर सकी। उसने कहा, “बहुत लोग यह विश्वास नहीं करेंगे कि मेरे जैसे अच्छे अंक लाने वाले छात्र भी सुसाइड कर सकते हैं। लेकिन मैं अपनी भावनाओं और मन के हालात को व्यक्त नहीं कर सकती। मेरे दिल और दिमाग में इतनी नफरत भरी हुई है कि मैं इससे बाहर नहीं निकल पा रही।”

परिवार और दबाव

कृति ने अपने परिवार, खासकर अपनी मां के प्रति भी अपने विचार व्यक्त किए। उसने लिखा, “आपने मेरे बचपन और इच्छाओं को अनदेखा कर मुझे विज्ञान पसंद करने के लिए मजबूर किया। मैंने केवल आपको खुश रखने के लिए विज्ञान पढ़ा। हालांकि मैं एस्ट्रोफिजिक्स और क्वांटम फिजिक्स जैसे विषयों में रुचि लेने लगी, लेकिन आज भी मुझे अंग्रेजी साहित्य और इतिहास से बेहद लगाव है। जब मैं परेशान होती हूँ, तो ये विषय मुझे सुकून देते हैं।”

कृति ने अपनी छोटी बहन के लिए भी संदेश छोड़ा। उसने अपनी मां को चेतावनी दी, “जैसा आपने मेरे साथ किया, वैसा मेरी छोटी बहन के साथ मत करना। उसे वही पढ़ने देना, जो वह पढ़ना चाहती है। वह उसी क्षेत्र में सफल होगी, जिसमें उसकी रुचि होगी।”

कृति के इस सुसाइड नोट ने हमारे समाज और शिक्षा व्यवस्था की गहरी खामियों को उजागर किया है। आज माता-पिता अपने बच्चों पर अपने सपने थोप रहे हैं। प्रतिस्पर्धा की इस दौड़ में बच्चे न केवल अपने सपने खो रहे हैं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी।

कई माता-पिता बच्चों की इच्छाओं को अनदेखा कर उन्हें डॉक्टर या इंजीनियर बनाने की होड़ में लगा देते हैं। चाहे बच्चे की रुचि हो या न हो, कोचिंग संस्थानों में दाखिला दिलाकर उन्हें एक अनचाहा भविष्य दिया जाता है।

कोचिंग संस्थानों का दबाव

कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई का दबाव इतना अधिक होता है कि बच्चे मानसिक रूप से थक जाते हैं। असफलता को स्वीकार करना और उससे सीख लेना सिखाने की जगह, संस्थान बच्चों को केवल प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करते हैं। जो छात्र इस दबाव को सहन नहीं कर पाते, वे अवसाद, नशे या आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं।

समाधान की ओर

इस समस्या का समाधान केवल शिक्षा व्यवस्था को बदलकर और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देकर किया जा सकता है। माता-पिता को यह समझने की जरूरत है कि हर बच्चा अलग होता है और उसकी रुचि और क्षमताओं का सम्मान करना चाहिए।

कृति की कहानी एक गहरी सीख है। यह केवल एक बच्ची की व्यथा नहीं, बल्कि उस शिक्षा प्रणाली और सामाजिक मानसिकता पर एक सवाल है, जो बच्चों को उनके सपने जीने से रोक रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button