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क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी थाली में परोसा गया मांस, भूकंप का कारण हो सकता है? — Einstein Pain Waves सिद्धांत पर आधारित वैश्विक चेतावनी

क्या मांसाहार भूकंप ला सकता है? ‘Einstein Pain Waves’ पर उठा नया विवाद

जब धरती की संतानें तड़पती हैं, तब धरती खुद काँपती है


क्या आपने कभी सोचा है कि आपकी थाली में परोसा गया मांस, किसी भूकंप का कारण हो सकता है? पिछले कुछ वर्षों से वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के बीच एक बहस चल रही है — क्या कत्लखानों में की जाने वाली हिंसा से निकलने वाली ऊर्जा पृथ्वी की तरंगों को बिगाड़ सकती है? इस सवाल का केंद्र है एक विवादास्पद लेकिन व्यापक रूप से चर्चित सिद्धांत — Einstein Pain Waves (EPW)

EPW सिद्धांत: एक वैज्ञानिक विश्लेषण

यह सिद्धांत कहता है कि जब जानवरों को मारा जाता है, तो उनकी पीड़ा एक ऐसी ऊर्जा के रूप में वातावरण में फैलती है, जो पूरे ग्रह के संतुलन को डगमगा देती है — जिससे भूकंप, दंगे, तनाव, आत्महत्या और रोग फैलते हैं।

EPW सिद्धांत की उत्पत्ति

1995 में रूस के सूजडल शहर में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय विज्ञान सम्मेलन में भारत के तीन भौतिकी वैज्ञानिकों — डॉ. मदन मोहन बजाज, डॉ. इब्राहीम, और डॉ. विजयराज सिंह — ने एक शोधपत्र प्रस्तुत किया। इसमें 23 देशों के वैज्ञानिकों के शोध के आधार पर दावा किया गया कि हाल ही में भारत, नेपाल, जापान, अमेरिका, जॉर्डन और अफ्रीका में आए 30 बड़े भूकंपों का संबंध Einstein Pain Waves से है।


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EPW का वैज्ञानिक तंत्र

जब किसी जानवर को हिंसा के साथ मारा जाता है:

  • उसके शरीर में अत्यधिक मात्रा में Adrenaline और Cortisol जैसे स्ट्रेस हार्मोन स्रावित होते हैं।
  • उसकी हर एक नस में पीड़ा दौड़ती है, और उस ऊर्जा को उसकी मांसपेशियां सोख लेती हैं।
  • यह नकारात्मक ऊर्जा और कंपन, सिर्फ मांस खाने वालों तक सीमित नहीं रहती — यह पूरे वातावरण को दूषित करती है।

1040 MW –  प्रति कत्लखाना प्रतिदिन उत्पन्न शोक ऊर्जा

50 लाख –      दुनिया भर में कत्लखाने

50 करोड़ मेगावॉट –  प्रतिदिन उत्पन्न EPW ऊर्जा

“जब धरती पर अत्यधिक हिंसा होती है, (विशेषकर जीवन की हत्या से जुड़ी ) — तब पृथ्वी ऊर्जा के रूप में प्रतिक्रिया करती है।”

मांसाहार का सामाजिक और स्वास्थ्य प्रभाव

EPW सिद्धांत भले ही पूर्णतः सिद्ध न हुआ हो, लेकिन यह तो वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है कि मांसाहार के गंभीर परिणाम हैं:

प्रभाव क्षेत्र परिणाम
मानसिक तनाव स्ट्रेस हार्मोन से ग्रसित मांस सेवन से चिंता, अवसाद और क्रोध बढ़ता है
हृदय रोग उच्च फैट, कोलेस्ट्रॉल, रक्तचाप से हृदय रोग का खतरा
सामाजिक हिंसा जो भोजन हिंसा पर आधारित है, वह स्वभाव में भी आक्रोश बढ़ाता है
पारिवारिक तनाव अनुसंधान दर्शाते हैं कि मांसाहारियों के परिवारों में मानसिक अशांति अधिक होती है

समाधान: शाकाहार – विज्ञान, नैतिकता और पर्यावरण की पुकार

शाकाहार अब सिर्फ एक विकल्प नहीं रहा — यह धरती के अस्तित्व की आवश्यकता बन चुका है।

स्वास्थ्य लाभ

कैंसर, हृदय रोग, मोटापा में भारी कमी

पर्यावरण संरक्षण

ग्रीनहाउस गैस में ~70% कटौती

करुणा

हर साल 80 अरब जानवरों की हत्या से मुक्ति

संतुलन

धरती के नैतिक और ऊर्जा संतुलन की रक्षा


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जलवायु परिवर्तन और मांस उद्योग

  • 1 किलो बीफ उत्पादन में ~15,000 लीटर पानी लगता है
  • मांस उद्योग, परिवहन उद्योग से अधिक ग्रीनहाउस गैस छोड़ता है
  • अगर पूरी दुनिया शाकाहारी बन जाए तो 2030 तक ग्लोबल वॉर्मिंग को आधा किया जा सकता है

अब समय है परिवर्तन का

अगर आप सच में दुनिया को शांत देखना चाहते हैं, तो अपने भोजन में शांति लाइए। कत्लखाने बंद हों, धरती फिर से मुस्कराएगी।

शाकाहार अपनाएँ

क्या यह सिर्फ थ्योरी है?

शायद Einstein Pain Waves अभी पूर्णतः प्रमाणित वैज्ञानिक सिद्धांत नहीं है, लेकिन यह एक गहरी सच्चाई को उजागर करता है — जब हम भोजन के नाम पर प्राणियों की हत्या करते हैं, तो हम सिर्फ उन्हें नहीं मारते — हम स्वयं को, अपने समाज को, अपनी धरती को घायल करते हैं।

🌟 “शाकाहार ही धरती का वास्तविक धर्म है” 🌟

❌ मांसाहार = हिंसा, पीड़ा, कंपन, असंतुलन
✅ शाकाहार = करुणा, स्वास्थ्य, संतुलन, शांति

न्यूज़ डेस्क

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One Comment

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