बेंगलुरु की दर्दनाक दास्तां – प्यार का रिश्ता कब बन गया मौत का कारण

बेंगलुरु की सड़कों पर सोमवार की सुबह सबकुछ आम दिनों जैसा ही था।
लोग अपनी-अपनी रफ्तार में सफर कर रहे थे। लेकिन कुछ ही पलों में वही सड़क चीखों से गूंज उठी। एक कार धू-धू कर जल रही थी और उसके भीतर एक महिला ज़िंदगी की आखिरी लड़ाई लड़ रही थी।
वह महिला सिर्फ़ 26 साल की थी। ज़िंदगी जीने और सपने पूरे करने की उम्र। लेकिन किसे पता था कि उसके सबसे करीब का इंसान ही उसकी मौत का सौदागर बन जाएगा।
प्यार से शुरू हुआ रिश्ता, दर्दनाक अंजाम तक पहुँचा
वह एक 52 साल के शख्स के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही थी। उम्र का फर्क बहुत था, पर दोनों ने साथ जीने का वादा किया था। शुरुआत में सब ठीक रहा, मगर वक्त बीतते-बीतते रिश्ते में कड़वाहट घुलने लगी। छोटी-छोटी बातें बड़े झगड़ों में बदलने लगीं।
और फिर, उसी कड़वाहट ने एक दिन ऐसा रूप ले लिया कि प्यार की कसम खाकर साथ रहने वाला वही इंसान, पेट्रोल लेकर आया और अपनी साथी को आग के हवाले कर दिया।

सड़क पर गूँजती चीखें और बुझते सपने
जैसे ही कार में आग लगी, महिला की चीखें सड़क पर दौड़ते राहगीरों के दिल दहला गईं। लोग पानी और कपड़े लेकर दौड़े, किसी ने दरवाज़ा खोलने की कोशिश की। लेकिन आग इतनी तेज़ थी कि किसी की कोशिश काम नहीं आई।
उसे अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, मगर जिंदगी की डोर टूट चुकी थी।
आरोपी का चेहरा और समाज का आईना
52 साल का वह शख्स अब पुलिस की गिरफ्त में है। चेहरे पर कोई पछतावा नहीं, बस खामोशी। सवाल यह है कि आखिर रिश्तों की तकरार इतनी बड़ी क्यों बन जाती है कि इंसान अपनी इंसानियत तक भूल जाए?
समाज के लिए सबक
यह घटना सिर्फ़ एक हत्या की खबर नहीं है। यह एक सवाल है, हर उस रिश्ते के लिए जिसमें प्यार से ज़्यादा अहमियत गुस्से और अहंकार को दी जाती है। अगर अनबन थी तो रास्ते बहुत थे – अलग हो जाना, क़ानून का सहारा लेना – लेकिन आग लगाकर किसी की जिंदगी खत्म करना… यह तो इंसानियत को भी जला देना है।
आज बेंगलुरु की एक सड़क पर एक लड़की का सपना, उसकी हंसी, उसकी ज़िंदगी सब राख हो गई। लेकिन यह कहानी हमें याद दिलाती है कि रिश्ते केवल साथ जीने के लिए नहीं होते, बल्कि एक-दूसरे को सुरक्षित रखने और सम्मान देने के लिए भी होते हैं।












