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महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा जयपुर ‘सी-20’ परिषद में आध्यात्मिक शोध प्रस्तुत

सफल जीवन के लिए सात्त्विक जीवनशैली आवश्यक – शॉन क्लार्क

गोडवाड़ की आवाज

‘सी-20 परिषद की ‘विविधता, समावेशकता एवं परस्पर आदर’ इस कार्यकारी गुट में सम्मिलित होने का निमंत्रण मिलने पर आनंद हुआ; क्योंकि महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय का ‘अध्यात्म संशोधन केंद्र’ उक्त 3 सूत्रों का प्रत्यक्ष मूर्तिमंत उदाहरण है। सफल जीवन के लिए हमें सात्त्विक जीवनशैली स्वीकारने तथा आध्यात्मिक स्तरीय नकारात्मकता दूर करने के लिए निरंतर प्रयत्न करने चाहिए। यह सूत्र सभी संस्कृतियों के लिए लागू है तथा समाज में एकात्मता लाने की दृष्टि से सयुंक्तिक हैे’, ऐसा प्रतिपादन ‘महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय’ के शॉन क्लार्क ने किया। कुछ समय पूर्व ही यहां संपन्न ‘सी-20’ परिषद में क्लार्क बोल रहे थे। इस वर्ष भारत के पास जी-20 परिषद का यजमानपद है ‘सी-20’ यह ‘जी-20’ परिषद की नागरी शाखा है।

शॉन क्लार्क ने परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के मार्गदर्शन में महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय द्वारा ऑरा एवं एनर्जी स्कैनर आदि उपकरणों का उपयोग कर चल रहे अनोखे आध्यात्मिक शोध के संबंध में विस्तृत जानकारी दी। किसी व्यक्ति के आभामंडल में नकारात्मक ऊर्जा होना, उसे शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर समस्या निर्माण करती है। यह समझाने के लिए दैनिक जीवन में आहार, संगीत, वीडीओ, अलंकार आदि सामान्य सूत्र व्यक्ति के आभामंडल पर किस प्रकार सकारात्मक अथवा नकारात्मक परिणाम करते हैं, इस संबंध में विविध आध्यात्मिक शोधात्मक प्रयोग उन्होंने प्रस्तुत किए।

उदाहरण के लिए हॉरर (डरावनी) फिल्म देखने से प्रेक्षकों पर ऊर्जा के स्तर पर होनेवाले परिणाम का अध्ययन करने के लिए 17 व्यक्तियों पर प्रयोग किया गया। फिल्म देखने से पहले एवं पश्चात उनकी ऊर्जा के स्तर की स्थिति का अध्ययन ‘यूनिवर्सल ऑरा स्कैनर’ एवं ‘गैस डिस्चार्ज विजुवलाइजेशन’ इन दो वैज्ञानिक उपकरणों तथा सूक्ष्म परीक्षण द्वारा किया गया । 17 में से जिनमें फिल्म देखने से पूर्व सकारात्मक ऊर्जा थी वह फिल्म देखने के पश्चात 60 प्रतिशत घट गई। कुछ लोगों में वह पूर्णतः नष्ट हो गई। सब देखनेवालों में नकारात्मक ऊर्जा 107 प्रतिशत बढ गई एवं दूसरे दिन भी वह 55 प्रतिशत रह गई थी। इससे स्पष्ट होता है कि हॉरर फिल्म देखने से हमारे आभामंडल पर किस प्रकार प्रतिकूल परिणाम होता है।

वर्तमान स्थिति में सर्वत्र बडी मात्रा में आध्यात्मिक स्तरीय प्रदूषण बढा हुआ है। इससे अपनी रक्षा करने के लिए सात्त्विक एवं असात्त्विक में भेद समझकर जहां संभव हो, वहां असात्त्विक विकल्प टालना आवश्यक है; परंतु हर बार यह संभव नहीं होता । इसलिए आज के असात्त्विक संसार में अपनी रक्षा हो तथा हम सफल एवं आनंदी जीवन जी सकें, इसके लिए अपने धर्मानुसार बताया हुआ नामजप करना एक उत्तम उपाय है, ऐसा क्लार्क ने समापन करते हुए बताया।

लेखक - आशिष सावंत,
संशोधन विभाग, महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय.
(संपर्क : 9561574972)

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