विद्या भारती प्रतिभा सम्मान समारोह: शिक्षा के भारतीयकरण और राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल

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राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर, जयपुर में शनिवार को आयोजित विद्या भारती प्रतिभा सम्मान समारोह ने शिक्षा जगत और राष्ट्र निर्माण को एक नई दिशा देने का कार्य किया।
जयपुर। इस गरिमामयी अवसर पर राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करते हुए शिक्षा के भारतीयकरण, विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास और भारत की गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा की ओर लौटने की आवश्यकता पर बल दिया।
राज्यपाल का ओजस्वी संबोधन: “बौद्धिक और शारीरिक रूप से मजबूत राष्ट्र की है आज आवश्यकता”
राज्यपाल बागडे ने अपने प्रेरणादायक संबोधन में कहा कि आज के युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है बौद्धिक और शारीरिक रूप से सुदृढ़ राष्ट्र का निर्माण। उन्होंने कहा कि भारत को केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि चारित्रिक, नैतिक और वैचारिक रूप से भी शक्तिशाली बनाना अत्यंत आवश्यक है। इस कार्य में विद्या भारती जैसे संगठन महती भूमिका निभा रहे हैं।
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राज्यपाल ने एलन मस्क के एक उद्धरण का हवाला देते हुए कहा कि आज अमेरिका को भी भारतीय इंजीनियरों की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि यह हमारी शिक्षा प्रणाली की ताकत है, जिसे अब और मजबूत करने की जरूरत है। उन्होंने कहा,
“भारत ने दुनिया को शून्य दिया, जिससे आधुनिक गणनाओं की शुरुआत हुई।“
भारतीय इतिहास और शिक्षा की विरासत पर जोर
राज्यपाल बागडे ने ऐतिहासिक तथ्यों का उल्लेख करते हुए बताया कि शिवकर बापूजी तलपड़े ने राइट बंधुओं से भी पहले, सन 1895 में, भारत में पहला विमान उड़ाया था। उन्होंने यह भी कहा कि हमारी महान विरासत और आविष्कारों को पश्चिमी इतिहास लेखन ने नजरअंदाज किया, जिसे अब सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करना समय की मांग है।
उन्होंने महात्मा गांधी और विनोबा भावे के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि
“देश की स्वतंत्रता के दिन ही यदि शिक्षा नीति में बदलाव किया जाता, तो आज हमारा समाज और अधिक उन्नत होता।“
उन्होंने मैकाले की शिक्षा पद्धति की आलोचना करते हुए कहा कि उसने भारतीयों को काले अंग्रेज बना दिया, जो अपनी गौरवशाली सांस्कृतिक धरोहर से कटते चले गए।
भारतीय गुरुकुल प्रणाली की विशेषताओं का स्मरण
राज्यपाल ने कहा कि प्राचीन भारत की गुरुकुल व्यवस्था विश्व की सबसे समृद्ध शिक्षा प्रणाली थी।
“जितने गुरुकुल उस समय भारत में थे, उतने स्कूल पूरे इंग्लैंड में नहीं थे।”
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उन गुरुकुलों में 16 भाषाओं की शिक्षा दी जाती थी, जबकि आज तीसरी भाषा पढ़ाने तक का विरोध हो रहा है। उन्होंने राजस्थान की कहावत “पुत सिखावे पालने” का हवाला देते हुए कहा कि राजस्थान की मिट्टी में शिशु अवस्था से ही संस्कार और ज्ञान की शिक्षा देने की परंपरा रही है।
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शिक्षा में गुणवत्ता और प्राथमिक स्तर की महत्ता
राज्यपाल बागडे ने जर्मनी का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां प्राथमिक शिक्षकों को सबसे अधिक वेतन मिलता है, क्योंकि वहीं से शिक्षा की नींव रखी जाती है। उन्होंने भारत में भी प्राथमिक शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की आवश्यकता बताई और कहा कि बच्चों की बौद्धिक क्षमता बढ़ाना ही शिक्षकों और शिक्षाविदों का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।
भावनात्मक बुद्धिमत्ता (EQ) की उपेक्षा पर चिंता
समारोह में मुख्य अतिथि योगी रमण नाथ महाराज ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली की एक गंभीर चुनौती की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि आज की शिक्षा IQ की दौड़ में EQ (Emotional Quotient) को अनदेखा कर रही है।
“इसी कारण समाज में भावनात्मक संवेदनशीलता की कमी तेजी से बढ़ रही है।”
उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति को सफल बनाने के लिए पहले सोच और मानसिकता में बदलाव जरूरी है।
संस्कार और राष्ट्र प्रथम की भावना – विद्या भारती की विशेषता
समारोह में मुख्य वक्ता शिवप्रसाद ने कहा कि विद्या भारती न केवल शिक्षा देती है, बल्कि संस्कार निर्माण का भी कार्य करती है। यह संगठन सामान्यजन के सहयोग से संचालित होता है और राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव विद्यार्थियों में विकसित करता है। उन्होंने कहा,
“विद्या भारती विद्यार्थियों को राष्ट्र प्रथम की भावना से कार्य करना सिखाती है।“
विद्यार्थियों का सम्मान और प्रेरणा
इस गरिमामयी समारोह के प्रारंभ में राज्यपाल बागडे ने विद्या भारती के प्रतिभावान विद्यार्थियों को पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया। उन्होंने संस्कार राजस्थान के विशेष स्मृति अंक “जयदेव पाठक” का भी लोकार्पण किया। इस अवसर पर पुलिस आयुक्तालय के अतिरिक्त आयुक्त कुंवर राष्ट्रदीप ने युवाओं को लक्ष्य केंद्रित रहते हुए समाज के हित में कार्य करने का आह्वान किया।
जसवंत खत्री ने अपने विचार रखते हुए कहा कि केवल सफलता ही पर्याप्त नहीं है, जब तक उसमें सार्थकता और समाजहित का तत्व न हो।
अध्यक्षीय आभार और समारोह की गरिमा
समारोह के अंत में विद्या भारती राजस्थान के अध्यक्ष परमेंद्र दशोरा ने सभी अतिथियों, छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों का आभार जताते हुए कहा कि
“यह समारोह केवल पुरस्कार वितरण का नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण की दिशा में सोच को जाग्रत करने का मंच है।“
शिक्षा का भारतीयकरण – समय की मांग
यह समारोह न केवल सम्मान का मंच था, बल्कि शिक्षा की पुनर्संरचना की चेतना का प्रतीक भी था। राज्यपाल हरिभाऊ बागडे और अन्य वक्ताओं के विचारों ने स्पष्ट रूप से यह दर्शाया कि अब समय आ गया है कि हम अपनी शिक्षा व्यवस्था को भारतीय मूल्यों, संस्कृति और वैज्ञानिक सोच से समृद्ध करें। तभी भारत एक वैश्विक ज्ञान महासत्ता के रूप में उभर सकता है।
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