शाहपुरा में अणुव्रत आंदोलन के अमृत महोत्सव के संपूर्ति समारोह का आयोजन
अणुव्रत किसी संत पंथ या ग्रंथ से नही, सम्पूर्ण मानवता से जुडा हुआ है- जयदेव जोशी
शाहपुरा- पेसवानी
शाहपुरा की अणुव्रत समिति के तत्वावधान में अणुव्रत आंदोलन के अमृत महोत्सव के संपूर्ति समारोह के अवसर पर आज काव्य संगोष्ठी का आयोजन किया गया। अणुव्रत गीत का संगान किया गया। शाहपुरा के कवियों ने अणुव्रत के विभिन्न बिंदूओं पर अपनी आकर्षक काव्य रचनाओं की प्रस्तुति दी।
साहित्य सृजन कला संगम के अध्यक्ष जयदेव जोशी की अध्यक्षता एवं भंवर गौड़ के मुख्य आतिथ्य में आयोजित की गई संगोष्ठि में अणुव्रत अमृत महोत्सव की संपूर्ति के उपलक्ष्य संगोष्ठी व विचार विमर्श का कार्यक्रम किया गया। कार्यक्रम का संचालन ओमप्रकाश माली ने किया। साहित्य सृजन कला परिवार के कवियों ने अणुव्रत दर्शन से संबद्ध संयम, प्रर्यावरण, नशामुक्ति विषयों पर काव्य पाठ किया गया। आगंतुक अथितियों का अणुव्रत समिति अध्यक्ष विक्रम सिंह शक्तावत एवं संयोजक गोपाल पंचोली ने सभी का स्वागत किया। गीतकार सत्येंद्र मंडेला, संचिना अध्यक्ष रामप्रसाद पारीक, गोपाल लाल पंचोली, ओम प्रकाश सनाढ्य, सोमेश्वर व्यास, विष्णु दत्त विकल, डा. कैलाश मंडेला ने काव्य पाठ किया।
मुख्य वक्ता जयदेव जोशी ने कहा कि अणुव्रत किसी संत पंथ या ग्रंथ से नही है अपितु सम्पूर्ण मानवता से जुडा हुआ है। अणुव्रत आचार्य श्री तुलसी की दूरदर्शीता का यह एक महान उपक्रम है जो मानव को मानवता सिखाता है। सभी प्रकार के वर्गो के लिए अणुव्रत नियमो की संरचना की गई है जो सभी को पढनी चाहिए और अपने जीवन मे उतारने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि परिग्रह, मूर्च्छा, आसक्ति सबसे बड़ा बंधन है। हिंसा और परिग्रह दोनों का आपस में गहरा सहचारिता का संबंध होता है। परिग्रह, बंधन का परिणाम है हिंसा। पदार्थों के प्रति आसक्ति से लोभ भाव पुष्ट होता है जिससे व्यक्ति के भीतर फिर हिंसा पनपती है। हिंसा में प्रवृत्त व्यक्ति वैर को बढ़ाता है वह कभी दुख से मुक्त नहीं हो सकता है। अगर बंधन मुक्त होना है तो परिग्रह और हिंसा का अल्पीकरण करना होगा, पदार्थों के सेवन का संयम करना होगा। एक संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि पैसा, अर्थ जरूरी है पर लोभ की चेतना जाग्रत हो जाती है तो ये अर्थ अनर्थ का मूल बन जाता है।
गीतकार सत्येंद्र मंडेला ने कहा कि अणुव्रत आंदोलन यही कहता है हिंसा के प्रति विरक्ति की भावना जागे। अहिंसा से समाज में सुख, शांति, प्रेम और सौहार्द्र भावना बनी रह सकती है।
संचिना अध्यक्ष रामप्रसाद पारीक ने कहा कि हमे जीवन की राह को प्रशस्त बनाना है तो अणुव्रत को समझना होगा और इसे जीवन में उतारना होगा। अणुव्रत के नियमों को अपने जीवन मे अपनाकर सुंदर समाज और राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है।
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डा. कैलाश मंडेला ने कहा कि हमारा समाज विचारों से उत्कृष्ट बने। भावों से शुद्ध बने। मन मे शक्ति और शांति का आभास करे तभी अणुव्रत जीवन में उतर सकता हैं। कार्यक्रम संयोजक गोपाल पंचोली ने अपने विचारों को व्यक्त करते हुए वर्ष भर मे हुए अणुव्रत के कार्यक्रमों की संक्षिप्त जानकारी दी।
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