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54 लाख का पैकेज छोड़, 24 वर्षीय इंजीनियर ने अपनाया वैराग्य – आंसुओं से भीग उठा अशोकनगर


विक्रम बी राठौड़
रिपोर्टर

विक्रम बी राठौड़, रिपोर्टर - बाली / मुंबई 

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अशोकनगर का सुभाषगंज बीते दिनों एक ऐसे दृश्य का साक्षी बना जिसने हर किसी के दिल को छू लिया। यहां 24 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर पीयूष जैन ने जीवन की सारी सुविधाओं, आधुनिक आकर्षणों और सुनहरी करियर राह को छोड़कर वैराग्य को अपना लिया। विशाल पांडाल में बैठे हजारों लोग उस क्षण को देखकर भावुक हो उठे, जब पीयूष ने सांसारिक मोह-माया से मुक्ति पाते हुए ब्रह्मचारी जीवन की दीक्षा ली।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पीयूष जैन अशोकनगर जिले के बहादुरपुर के रहने वाले हैं और पुणे की एक प्रतिष्ठित आईटी कंपनी में कार्यरत थे, जहां उन्हें सालाना 54 लाख रुपये का पैकेज मिला था। बचपन से ही मेधावी रहे पीयूष ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद शानदार करियर की शुरुआत की थी। माता-पिता ने उनके उज्ज्वल भविष्य के सपने संजोए थे। मां श्रीमती सीमा जैन बेटे के विवाह की तैयारी में भी लग गई थीं, दुल्हन तक देख ली गई थी। लेकिन इसी बीच एक दिन पीयूष ने फोन कर कहा — “मां, मैं अब आपके सामने आपका बेटा नहीं, बल्कि श्रमण जीवन के पथिक के रूप में खड़ा रहूंगा।” यह सुनकर मां की आंखें भर आईं, पिता श्री संजीव जैन भी अपने आंसू रोक न सके।

बताया जाता है कि पीयूष का मन पिछले कुछ समय से आध्यात्मिकता की ओर झुकने लगा था। वे जैन धर्म के प्रवचनों में नियमित रूप से भाग लेते थे और मुनि सुधा सागर महाराज के संपर्क में आने के बाद उन्होंने आत्मचिंतन का मार्ग अपनाया। अंततः दशहरे के पावन अवसर पर सुभाषगंज स्थित दिगंबर जैन मंदिर में मुनि सुधा सागर महाराज की उपस्थिति में उन्होंने ब्रह्मचारी दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के क्षणों में वहां मौजूद हजारों लोगों की आंखें नम हो गईं। महिलाएं, बुजुर्ग और युवा सभी भावनाओं से भर उठे। वातावरण में एक अजीब सी शांति थी, जैसे कोई अपना सगा पुत्र संन्यास लेकर विदा हो रहा हो।

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मुनि सुधा सागर महाराज ने इस अवसर पर कहा कि मोक्ष और वैराग्य का मार्ग आसान नहीं होता, यह तलवार की धार पर चलने जैसा है। उन्होंने कहा कि पीयूष ने जो निर्णय लिया है, वह न केवल साहसिक है बल्कि युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत भी है। यह निर्णय भले ही परिवार के लिए कठिन हो, लेकिन आत्मा की शांति के लिए यह सबसे उच्च मार्ग है।

कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि पीयूष ने न केवल अपनी उच्च वेतन वाली नौकरी बल्कि पारिवारिक सुविधाओं और विरासत को भी त्याग दिया। इस निर्णय ने जैन समाज सहित पूरे शहर को भावनात्मक रूप से झकझोर दिया। जहां एक ओर बहुत से लोग इस कदम को प्रेरणादायक मानते हैं, वहीं कुछ लोगों का मानना है कि इतना बड़ा निर्णय इतनी कम उम्र में लेना कठिन और जोखिम भरा है।

फिलहाल, दीक्षा के बाद पीयूष का जीवन अब मुनि परंपरा के अनुशासन के अनुसार चलेगा — सरल जीवन, संयमित दिनचर्या और आत्मिक साधना के साथ। उन्होंने जो कदम उठाया है, उसने यह सवाल सबके मन में जगा दिया है कि आखिर असली सफलता क्या है — करोड़ों की नौकरी या आत्मिक शांति का अनुभव?

अशोकनगर में उस दिन केवल एक युवा ने संन्यास नहीं लिया, बल्कि हजारों आंखों ने यह देखा कि जीवन का अर्थ केवल भौतिक उपलब्धियों में नहीं, बल्कि भीतर की सच्चाई को पहचानने में भी छिपा होता है। पीयूष का यह निर्णय आने वाली पीढ़ियों के लिए एक संदेश बन गया है कि आत्मा की पुकार जब गूंजती है, तो संसार का कोई आकर्षण उसे रोक नहीं सकता।

न्यूज़ डेस्क

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