शिक्षा विभाग आगामी शैक्षणिक सत्र से शिक्षकों के लिये बोर्ड कक्षाओं के परीक्षा परिणाम मापदंड में सत्रांक के अंक नहीं जोडने की तैयारी कर रहा हैं। इस आशंका को लेकर राजस्थान शिक्षक संघ राधाकृष्णन् ने चिंता जाहिर करते हुए विरोध जताया हैं।
संघ के प्रदेश प्रवक्ता प्रकाश मेवाड़ा मुंडारा ने बताया की कुछ दिनों पूर्व एक स्थानीय समाचार पत्र में चिथवाड़ी जयपुर से खबर प्रकाशित हुई है जिसमें चार जिलों के लगभग 900 संस्था प्रधानों की एक बैठक माध्यमिक शिक्षा निदेशक बीकानेर के साथ होने की खबर छापी गई है। अगर यह खबर सही है तो निश्चित रूप से शिक्षकों को चिंतित करने वाला विषय है।
एक स्थानीय अखबार में छपी खबर के माध्यम से ये ज्ञात हुआ है कि माध्यमिक शिक्षा निदेशक बीकानेर के अनुसार आगामी सत्र से शिक्षकों के लिए बोर्ड कक्षाओं के परीक्षा परिणाम मापदंड में सत्रांक के अंक काउंट नहीं होंगे।
इस विचारधारा का सम्पूर्ण शिक्षक समाज राधाकृष्णन शिक्षक संघ के माध्यम से पुरजोर विरोध करता है। क्योंकि बोर्ड परीक्षाओं में विद्यार्थियों को दिये जाने वाले सत्रांक उस विद्यार्थी का वर्ष भर में किया गया शैक्षणिक मूल्यांकन है जिसमें विद्यार्थी के मौखिक-लिखित समस्त कार्यों के आधार पर किया जाता है.
शिक्षक वर्ष भर इन विद्यार्थियों के साथ समस्त गैर-शैक्षणिक कार्यों को सम्पादित करते हुए भी अपने शैक्षणिक कार्यो के समस्त उत्तरदायित्वों का पूर्ण निष्ठा से निर्वहन कर्ता है. क्योंकि हर बच्चे की सीखने की क्षमता अलग अलग होती है और यह क्षमता कक्षा एक से ले करके जो छात्र 12 वीं कक्षा में हो या आईआईएम करे चाहे एमबीबीएस करे या अन्य कोई भी कोर्स का अध्ययन करे, ये सर्वविदित ही है कि मात्र 40% अंकों के आधार पर शिक्षक का मूल्यांकन नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वहीं उसी कक्षा का दूसरा छात्र 70% अंक लाता है तो इसका मतलब स्पष्ट है कि शिक्षक में कमी नहीं है बल्कि हर छात्र के सीखने की मानसिक क्षमता अलग अलग होती है। ये सभी कक्षाओं में होता है।
एलकेजी से लेकर डाक्टर, इंजिनियर करने वाली बडी से बडी कक्षाओं में भी छात्र छात्राएं असफल होते हैं उसी कक्षा में कोई छात्र मेरिट में भी आता है इसलिए इसका दोषारोपण शिक्षकों पर नहीं करके परीक्षा परिणाम को प्रतिशत के आधार पर नहीं करके शिक्षा को गुणवत्ता के आधार पर आंकलन किया जाना चाहिए।
यह सर्वविदित है कि प्रदेश में शिक्षकों के कितने पद खाली रहते हैं, शिक्षकों के कितने कार्यलंबित रहते हैं, तथा शिक्षकों को कितने गैर शैक्षणिक कार्यों में लगाया जाता है.
इन सारी बातों से जहां पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात की जाती है वह बेमानी लगती है, क्योंकि शिक्षक को ना पढाने के लिए समय पर्याप्त मिल पाता है, ना ही कक्षाओं में पर्याप्त शिक्षक ही होते हैं। शैक्षणिक कार्यों तथा रिक्त पदों के होने के बावजूद पूर्ण मनोयोग से अपनी क्षमता से अधिक परिश्रम करके छात्र-छात्राओं को अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करते हैं।
राजस्थान शिक्षक संघ राधाकृष्णन के साथ अन्य सभी संगठन भी पिछले वर्षों से यह मांग करते आ रहे हैं कि शिक्षकों का न्यूनतम परीक्षा परिणाम का मापदंड बहुत अधिक है इसे कम किया जाए। सत्रांक कि व्यवस्था में किसी तरह का परिवर्तन नहीं किया जाये । जिससे शिक्षक बिना किसी मानसिक दबाव के शिक्षण कार्य कर सके।