हाकी का जादूगर मेजर ध्यानचंद | Hockey magician Major Dhyanchand
29 अगस्त पूरे देश में खेल दिवस के रुप में मनाया जाता है। यह दिन हाकी के जादूगर नाम से विख्यात प्रसिद्ध खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद का जन्म दिन है हाकी स्टिक और गेंद पर मजबूत पकड़ रखने वाले हाकी का जादूगर मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन 29अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के प्रयाग राज में समेश्वर सिंह की पत्नी शारदा की कोख से हुआ।
प्रधानाचार्य- विजय सिंह माली श्रीधनराज बदामिया राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय सादड़ी जिला पाली राजस्थान 306702 मोबाइल 9829285914 vsmali1976@gmail.com
हाकी का जादूगर मेजर ध्यानचंद के पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में सिपाही थे। इनका मूलनाम ध्यान सिंह था। साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की आयु में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गए। रेजिमेंट के मेजर बाले तिवारी ने 16 साल के ध्यान सिंह को हाकी खेलने के लिए प्रेरित किया और अपनी देखरेख में हाकी के गुर सिखाए।
चंद्रमा की चांदनी में सतत् साधना, अभ्यास, लगन संघर्ष और संकल्प के बल पर महान खिलाड़ी ध्यानचंद बन गए। 1927 में लांसनायक बने। 1928 एम्स्टर्डम ओलंपिक में जयपालसिंह मुंडा की कप्तानी में खेलते हुए भारतीय हाकी टीम को स्वर्ण पदक दिलाया। पूरे टूर्नामेंट में भारत ने 29 गोल किए जिसमें से 14 गोल अकेले ध्यान चंद ने किए।
एक समाचार पत्र ने लिखा: यह हाकी नहीं जादू था और ध्यानचंद हाकी के जादूगर हैं।
हाकी का जादूगर मेजर ध्यानचंद की लोकप्रियता इतनी बड़ी की नीदरलैंड में एक मैच के दौरान उनकी हाकी से गेंद चिपकी रहने के कारण हाकी स्टिक में चुंबक के शक के चलते हाकी स्टिक तोडकर भी देखी गई। भारतीय ब्रिटिश सेना में रहते हुए 1932 में विक्टोरिया कालेज ग्वालियर से स्नातक की पढ़ाई की। 1932 में लांस एंजिल्स में ओलम्पिक खेल में हाकी टीम में खेलते हुए पुनः भारतीय टीम को स्वर्ण पदक दिलाया। 1933 में रावलपिंडी मैच के दौरान चोट लगाने पर प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी को कहकर कि सावधानी से खेलो ताकि मुझे दोबारा चोट न लगे पानी पानी कर दिया।1935 में इनका मैच देखने के बाद महान क्रिकेटर सर ब्रेडमेन अत्यंत प्रभावित हुए और उनको कहना पड़ा- वह हाकी में उसी तरह से गोल करता है जैसे क्रिकेट में रन बनाए जाते हैं।
Read More Blog भारत रत्न महामना मदनमोहन मालवीय | Bharat Ratna Mahamana Madan Mohan Malviya
ओलंपिक परिसर में अब जादू है
1936 में बर्लिन ओलंपिक के समय हाकी का जादूगर मेजर ध्यानचंद को भारतीय हाकी टीम का कप्तान इन्हें बनाया गया। बर्लिन ओलंपिक के दौरान जर्मन अखबार की टैगलाइन थी- ‘ओलंपिक परिसर में अब जादू है।’ बर्लिन की सड़कों पर पोस्टर लगे-हाकी स्टेडियम में जाओ और भारतीय जादूगर का जादू देखो। ओलंपिक के फ़ाइनल मैच में भारत ने जर्मनी को पराजित कर दिया। मेजर ध्यानचंद हाकी का जादूगर उपनाम को सार्थकता मिली और ओलंपिक में हाकी में लगातार तीसरी बार गोल्ड मेडल जीत कर भारत ने हेट्रिक लगाई।
इस शानदार प्रदर्शन से खुश होकर हिटलर ने हाकी का जादूगर मेजर ध्यानचंद को खाने पर बुलाया और उन्हें जर्मनी की ओर से खेलने का प्रस्ताव के साथ जर्मन सेना में कर्नल पद का प्रलोभन भी दिया लेकिन देशभक्त ध्यान चंद ने इसे विनम्रतापूर्वक यह कहते हुए ठुकरा दिया कि हिंदुस्तान मेरा वतन है, मैं वहां खुश हूं, मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारत के लिए ही खेलूंगा।
हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने अपने इस आखिरी ओलंपिक में कुल 13 गोल दागे थे। 1937 में वे सूबेदार, 1943 में मेजर बने। 1948 में हाकी से संन्यास के बाद कोच के रूप में भारतीय हाकी खिलाड़ियों को मार्गदर्शन दिया। उन्होंने अपने हाकी करियर में 185 अंतराष्ट्रीय मैचों में 570 गोल व घरेलू मैचों में 1000 से अधिक गोल किए।
34 साल देश सेवा के बाद 1956 में वह सेवानिवृत्त हुए। इसी वर्ष इनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। शायरी लेखन के शौकीन ध्यान चंद जीवन के उत्तरार्ध में कैंसर से पीड़ित हो गए।
3 दिसंबर 1979 को नई दिल्ली में उन्होंने (हाकी का जादूगर मेजर ध्यानचंद) अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार झांसी के हीरोज मैदान में सैन्य सम्मान के साथ किया गया। उनका समय भारतीय हाकी का स्वर्ण युग था।
Read More Blog अंको के जादूगर महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन आयंगर की प्रेरणादायक जीवनी | Srinivasa Ramanujan Iyengar
बीबीसी ने अमेरिकी बाक्सर मुहम्मद अली की तुलना मेजर ध्यानचंद से की। मेजर ध्यानचंद की आत्मकथा ‘गोल’ नाम से प्रकाशित हुई है। उनके सम्मान में उनके जन्मदिन 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।भारत सरकार ने खेलरत्न पुरस्कार का नामकरण मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया है।
दिल्ली में मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय स्टेडियम तथा मेरठ में मेजर ध्यानचंद खेल विश्वविद्यालय खोला गया है। भारत सरकार ने 1980 में उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया। लंदन में इंडियन जिमखाना क्लब में उनके नाम से हाकी पिच है तो आस्ट्रिया के वियना में उनकी हाकी स्टिक लिए मूर्ति स्थापित की गई है।
Read More Blog भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी | Bharat Ratna Atal Bihari Vajpayee
हाकी में उनका वही योगदान है जो फूटबॉल में पेले तथा क्रिकेट में ब्रेडमेन का है। उनके अद्वितीय अतुलनीय खेल कौशल व समर्पण से भारत ही नही विश्व के खिलाड़ी प्रेरित हो रहे हैं और होते रहेंगे। हम भी हाकी का जादूगर मेजर ध्यानचंद के जीवन से प्रेरणा लेते हुए भारत को खेलों का सिरमौर बनाएं। यहीं उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।