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आपकी नियमित भक्ति आपके कर्म में आपको शक्ति प्रदान करेगी -आचार्य शक्ति देव

  • भीलवाड़ा

आर आर सी व्यास कॉलोनी स्थित शिवाजी गार्डन में विश्वेश्वर महादेव के मंदिर में आयोजित भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ में मुख्य कथा वाचक आचार्य शक्ति देव महाराज ने ध्रुव चरित्र गजेंद्र मोक्ष राम कथा इत्यादि श्रवण कराई एवं कृष्ण जन्मोत्सव मनाया।

महाराज ने बताया आज हम कहते हैं कि हम भगवान की इतनी पूजा करते हैं फिर भी हमें फल नहीं मिलता महाराज ने बताया कि हम जिसकी पूजा करते हैं या जिसको अपना ईष्ट मानते हैं ईष्ट मानने का यह भाव है कि जिसको हमने ईष्ट माना उसके गुणों को अपने जीवन में अपनाएं आपने राम जी को ईष्ट माना तो राम जी जैसी मर्यादा और त्याग जीवन में होना चाहिए।

कृष्ण को ईष्ट माना तो गोविंद के जीवन पर एक बार अपनी दृष्टि डालें कृष्ण का जन्म हुआ मथुरा में और जन्म लेते ही माता-पिता छूट गए गोकुल पहुंचे कुछ समय बाद गोकुल भी छूट गया वृंदावन पहुंच गए कुछ वर्ष बाद वृंदावन भी छूट गया गैया छूटी ,बछड़े छूटे, ग्वाल बाल संगी साथी सब छूट गए ब्रज गोपीकाएं छूटी और राधा रानी भी छूट गई बाबा नंद छूटे और मैया यशोदा भी छूट गई मथुरा आ गए कुछ समय बाद मथुरा भी छूट गई द्वारिका चले गए कृष्ण के जीवन में सब कुछ छूटता ही चला गया लेकिन नहीं छुटी तो सकारात्मकता कभी नहीं छुटी गोविंद के चेहरे की मुस्कान कभी नहीं छुटी।

हर स्थिति में सकारात्मक रहे और एक हम हैं कि जीवन में थोड़ी सी समस्या आ जाएं या जीवन में कोई एक व्यक्ति हमसे नाराज हो जाए कोई एक व्यक्ति दूरी बना ले तो आज हम तनाव लेते हैं डिप्रेशन में आ जाते हैं थोड़ी सी विपरीत स्थिति आने पर मानसिक संतुलन खो बैठते हैं रोते रहते हैं और फिर कहते हैं कि हम कृष्ण को अपने जीवन में ईष्ट मानते हैं अरे क्या सीखा तुमने कृष्ण से अपने जीवन में गोविंद को अगर ईस्ट माना है तो जीवन की हर परिस्थिति में मुस्कुराना सीखिए तब आपका ईस्ट मानना सार्थक है अन्यथा आप कितनी भी सेवा पूजा करते रहो कितने भी वृंदावन में दर्शन करने के लिए जाते रहो जब तक हृदय में कृष्ण के भाव को नहीं उतारेंगे कृष्णत्व को नहीं धारण करेंगे तब तक कृष्ण की पूजा करने का कोई मतलब नहीं।

यह भी पढ़े – बनेड़ा में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती मनाई: भाजपा कार्यकर्ताओं ने अर्पित की पुष्पांजलि, मुखर्जी के संघर्ष के बारें में बताया

भक्ति करने का यह अभिप्राय नहीं होता कि आप भजन करें भक्ति करें तो आपके सारे काम भगवान अपने आप करेंगे कर्म तो आपको खुद करना पड़ेगा आपकी भक्ति आपके कर्म में आपको शक्ति प्रदान करेगी अगर केवल भक्ति करने से ही सब कुछ हो जाता तो महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से यह नहीं कहते कि अर्जुन तू गांडीव उठा खुद ही सुदर्शन के बल से पूरे महाभारत के युद्ध को शांत कर सकते थे लेकिन भगवान ने ऐसा नहीं किया।

 

मीडिया प्रभारी महावीर समदानी ने जानकारी देते हुए बताया की कथा के चौथे दिन अपने जीवन के महाभारत में कर्म हमें करना होगा गोविंद को अपने जीवन का आधार मान करके हमारे कर्मों के अनुरूप ठाकुर जी हमें फल प्रदान करेंगे और गोविंद के प्रति हमारी भक्ति हमारे कर्मों में हमें शक्ति प्रदान करेगी हमारे ग्रंथ कभी भी व्यक्ति को कर्महीन होने का उपदेश नहीं करते।

मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु अगर कोई है तो वह केवल उसका आलस्य है और सबसे बड़ा मित्र अगर मनुष्य का है वह उसका परिश्रम है।

भागवत कथा में आचार्य श्री शक्ति देव जी महाराज ने ध्रुव चरित्र गजेंद्र मोक्ष राम कथा इत्यादि श्रवण कराई एवं कृष्ण जन्मोत्सव मनाया।

महाराज श्री ने बताया आज हम कहते हैं कि हम भगवान की इतनी पूजा करते हैं फिर भी हमें फल नहीं मिलता महाराज श्री ने बताया कि हम जिसकी पूजा करते हैं या जिसको अपना ईष्ट मानते हैं ईष्ट मानने का यह भाव है कि जिसको हमने ईष्ट माना उसके गुणों को अपने जीवन में अपनाएं आपने राम जी को ईष्ट माना तो राम जी जैसी मर्यादा और त्याग जीवन में होना चाहिए।

कृष्ण को ईष्ट माना तो गोविंद के जीवन पर एक बार अपनी दृष्टि डालें कृष्ण का जन्म हुआ मथुरा में और जन्म लेते ही माता-पिता छूट गए गोकुल पहुंचे कुछ समय बाद गोकुल भी छूट गया वृंदावन पहुंच गए कुछ वर्ष बाद वृंदावन भी छूट गया गैया छूटी बछड़े छू टे ग्वाल बाल संगी साथी सब छूट गए ब्रज गोपीकाएं छूटी और राधा रानी भी छूट गई बाबा नंद छूटे और मैया यशोदा भी छूट गई मथुरा आ गए कुछ समय बाद मथुरा भी छूट गई द्वारिका चले गए कृष्ण के जीवन में सब कुछ छूटता ही चला गया लेकिन नहीं छुटी तो सकारात्मकता कभी नहीं छुटी गोविंद के चेहरे की मुस्कान कभी नहीं छुटी।

हर स्थिति में सकारात्मक रहे और एक हम हैं कि जीवन में थोड़ी सी समस्या आ जाएं या जीवन में कोई एक व्यक्ति हमसे नाराज हो जाए कोई एक व्यक्ति दूरी बना ले तो आज हम तनाव लेते हैं डिप्रेशन में आ जाते हैं थोड़ी सी विपरीत स्थिति आने पर मानसिक संतुलन खो बैठते हैं रोते रहते हैं और फिर कहते हैं कि हम कृष्ण को अपने जीवन में ईष्ट मानते हैं अरे क्या सीखा तुमने कृष्ण से अपने जीवन में गोविंद को अगर ईस्ट माना है तो जीवन की हर परिस्थिति में मुस्कुराना सीखिए तब आपका ईस्ट मानना सार्थक है अन्यथा आप कितनी भी सेवा पूजा करते रहो कितने भी वृंदावन में दर्शन करने के लिए जाते रहो जब तक हृदय में कृष्ण के भाव को नहीं उतारेंगे कृष्णत्व को नहीं धारण करेंगे तब तक कृष्ण की पूजा करने का कोई मतलब नहीं।

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भक्ति करने का यह अभिप्राय नहीं होता कि आप भजन करें भक्ति करें तो आपके सारे काम भगवान अपने आप करेंगे कर्म तो आपको खुद करना पड़ेगा आपकी भक्ति आपके कर्म में आपको शक्ति प्रदान करेगी अगर केवल भक्ति करने से ही सब कुछ हो जाता तो महाभारत के युद्ध में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से यह नहीं कहते कि अर्जुन तू गांडीव उठा खुद ही सुदर्शन के बल से पूरे महाभारत के युद्ध को शांत कर सकते थे लेकिन भगवान ने ऐसा नहीं किया अपने जीवन के महाभारत में कर्म हमें करना होगा गोविंद को अपने जीवन का आधार मान करके हमारे कर्मों के अनुरूप ठाकुर जी हमें फल प्रदान करेंगे और गोविंद के प्रति हमारी भक्ति हमारे कर्मों में हमें शक्ति प्रदान करेगी हमारे ग्रंथ कभी भी व्यक्ति को कर्महीन होने का उपदेश नहीं करते।

मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु अगर कोई है तो वह केवल उसका आलस्य है और सबसे बड़ा मित्र अगर मनुष्य का है वह उसका परिश्रम है।

2 Comments

  1. I loved as much as you will receive carried out proper here. The caricature is attractive, your authored subject matter stylish. however, you command get got an shakiness over that you would like be turning in the following. ill no doubt come further previously again since precisely the same just about very ceaselessly inside of case you defend this hike.

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