डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के संवाहक, शिक्षक दिवस पर विशेष आलेख
भारतीय संस्कृति के संवाह, प्रख्यात शिक्षाविद्,महान दार्शनिक व विचारक,भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति व द्वितीय राष्ट्रपति भारत रत्न डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन 5 सितंबर को पूरे देश में शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। आप सभी को शिक्षक दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
लेखक: प्रधानाचार्य-विजय सिंह माली
श्रीधनराज बदामिया राजकीय बालिका
उच्च माध्यमिक विद्यालय सादड़ी जिला
पाली राज.,मो. 9829285914
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5सितंबर 1888को तमिलनाडु के तिरुतन्नी गांव में तेलगुभाषी ब्राह्मण सर्वपल्ली वीरास्वामी की धर्मपत्नी सीताम्मा की कोख से हुआ। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा के पश्चात राधाकृष्णन ने वेल्लोर कालेज, मद्रास क्रिश्चियन कालेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
1906ईस्वी में दर्शन शास्त्र में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1909ईस्वी में प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शन शास्त्र के अध्यापक बन गए।1946-52में यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व किया। सोवियत संघ में भारतीय राजदूत के रूप में कार्य किया। 1948-49ईस्वी में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष के रुप में प्रतिवेदन तैयार कर सरकार को सौपा। 13 मई1952 में भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति बने।12मई1962को उपराष्ट्रपति रहे।
इस दौरान 1954ई में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।13मई1962में भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने।1967तक राष्ट्र पति बने रहे।17अप्रेल 1975को86वर्ष की उम्र में चेन्नई में मृत्यु हो गई।
डाक्टर राधाकृष्णन श्रेष्ठ लेखक भी थे। उनकी पुस्तकें इंडियन फिलोसॉफी, हिंदू व्यू आफ लाइफ, कल्कि फ्यूचर आफ सिविलाइजेशन, ईस्टर्न रिलीजंस एंड वेस्टर्न थोट, धर्म और समाज,द धम्मपद,द प्रिंसिपल उपनिषद, रिकवरी आफ फेथ , धर्म, विज्ञान और संस्कृति प्रमुख हैं।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी राधाकृष्णन एक आदर्श शिक्षक थे। पढ़ाने से पहले स्वयं अध्ययन करते थे। दर्शन जैसे गंभीर विषय को भी नवीनता से रोचक बना देते थे। राधाकृष्णन ने शिक्षा का केंद्र विद्यार्थी को माना है अतः विद्यार्थी में नैतिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, व्यावसायिक आदि मूल्यों का संचरण करने का प्रयास करना चाहिए। उनके अनुसार शिक्षण संस्थानों का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को प्रकृति प्रेम, मानवतावाद एवं समन्वय की शिक्षा प्रदान करना होना चाहिए। डाक्टर राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षा का लक्ष्य है ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरंतर सीखते रहने की प्रवृत्ति। शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान और कौशल दोनों प्रदान करती है। उनके अनुसार शिक्षकों को देश के सर्वश्रेष्ठ दिमाग वाला होना चाहिए।
शिक्षकों को मात्र अच्छी तरह अध्ययन करके ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए, उसे अपने छात्रों का स्नेह और आदर अर्जित करना चाहिए।वह मानते थे कि किताबें वह साधन है जिनके द्वारा हम संस्कृतियों के बीच पुल बनाते हैं।उनका मानना था कि शिक्षक का काम है -ज्ञान को एकत्र कर बांटना, उसे ज्ञान का दीपक बनकर चारों तरफ अपना प्रकाश विकीर्ण करना चाहिए।सादा जीवन उच्च विचार को अपने जीवन में चरितार्थ करना चाहिए।
शिक्षा क्षेत्र में उन्होंने जो अमूल्य योगदान दिया वह निश्चय ही अविस्मरणीय रहेगा। उनकी मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाएं तो समाज की अनेक बुराईयों को मिटाया जा सकता है।एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे।
आज जब शिक्षा की गुणवत्ता का ह्रास होता जा रहा है, गुरु शिष्य संबंधों की पवित्रता को ग्रहण लगता जा रहा है, उनका पुण्य स्मरण फिर एक नई चेतना पैदा कर सकता है।