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भूदान के प्रणेता संत विनोबा भावे एक महान शख्सियत

भूदान के प्रणेता संत विनोबा महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उतराधिकारी व भूदान आन्दोलन के प्रणेता संत विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर 1895 में महाराष्ट्र के कोलावा जिले में गामोदा गांव के ब्राह्मण परिवार में हुआ।

जन्म दिवस 11सितंबर पर विशेष आलेख

  लेखक: विजय सिंह माली
         प्रधानाचार्य
श्रीधनराज बदामिया राजकीय बालिका
उच्च माध्यमिक विद्यालय सादड़ी (पाली)

संत विनोबा भावे के पिता नरहरि राव बड़ौदा में कपड़ा तकनीशियन थे तो माता रुक्मिणी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थी। इनकी आरंभिक शिक्षा गांव में हुई फिर अपने पिता के पास बड़ौदा से मेट्रिक व इंटरमीडिएट उत्तीर्ण की। विनोबा की स्मरण शक्ति बडी तेज थी। वह संस्कृत अध्ययन के लिए काशी गए। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन के समय महात्मा गांधी के भाषण को समाचार पत्र में पढ़कर उनका मन गांधी जी से मिलने के लिए व्याकुल हो उठा। विनोबा गांधी जी से मिले और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान पाया।

6 अप्रेल 1921 से वर्धा आश्रम का संचालन संभाल लिया। तब से उन्होंने एक मौन साधक की भांति गांधी जी द्वारा चलाए गए अनेक कार्यक्रमों में सक्रियता से भाग लिया। वर्धा आश्रम में पूरे 11 वर्ष 8 माह 19 दिन रहकर 25 दिसंबर 1932 को विनोबा जी वर्धा से दो मील दूर नलवाडी चले गए। फिर कुछ समय पवनार आश्रम में रहे। नागपुर झंडा सत्याग्रह के समय गिरफ्तार हुए तथा बारह माह का कारावास भोगा।

गांधी जी द्वारा 1940 में चलाए गए व्यक्तिगत सत्याग्रह में पहले सत्याग्रही के रुप में विनोबा को चुना। विनोबा ने सत्याग्रह किया और जेल गए। 1942के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने भाग लिया और गिरफ्तार हुए। तीन वर्ष की जेल यात्रा के बाद पवनार आश्रम लौटे तथा ग्राम सेवा में जुट गए।

देश विभाजन के समय गांधी जी की भांति विनोबा जी ने भी शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए अथक परिश्रम किया। उन्होंने कंचन मुक्ति अभियान भी चलाया तथा लोगों से कंचन यानी सोने से मुक्त हो जाने की अपील की। विनोबा भावे ने भू-दान आंदोलन चलाया। जयप्रकाश नारायण जैसे लोगों ने विनोबा की प्रेरणा से भू-दान यज्ञ में समर्पित कर दिया।

चालीस हजार मील की पद यात्राके दौरान तीन लाख भूमि मालिकों से 222347535 एकड भूमि दान करवाई। पद यात्रा के दौरान बोधगया में समन्वय आश्रम, पठानकोट में समन्वय आश्रम, इंदौर में विसर्जन आश्रम, बंगलौर में विश्वनीडम आश्रम और असम में मैत्री आश्रम की स्थापना की। महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उतराधिकारी के रुप में विनोबा ने शांति सेना को जीवित रखा। चंबल के डाकूओं को भी शस्त्र समर्पण करवाया।

विनोबा भावे के जीवन का मुख्य पड़ाव

कालांतर में उन्होंने महसूस किया कि अब देश को उनकी आवश्यकता नहीं है तो उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी रुस के राष्ट्रपति ब्रेजनेव की अंत्येष्टि के कार्यक्रम के बीच से ही लौटकर पवनार आश्रम पहुंची व विनोबा जी से कुछ पीने का आग्रह किया किंतु वे नहीं माने। उनकी फ्रांसीसी शिष्या ऋता का अनुरोध भी ठुकरा दिया।

15 नवंबर 1982 को जब सारा देश दीपावली मना रहा था तब विनोबा जी के जीवन दीप का उजाला भवसागर में विलीन हो गया। 26 जनवरी 1983 को इन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया। आज विनोबा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं।

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