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सेवा की अनोखी गाथा लिखने वाले गुजरात के नरेंद्रभाई पंचासरा


Khushal Luniya
Desk Editor

"खुशाल लूनिया एक ऐसा नाम है जो युवा ऊर्जा, रचनात्मकता और तकनीकी समझ का प्रतीक है। एक ओर वे कोड की दुनिया में HTML, CSS से शुरुआत कर JavaScript और Python सीखने की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ग्राफिक डिज़ाइन में भी उनका टैलेंट कमाल का है। बतौर डेस्क एडिटर, लूनिया टाइम्स में वे अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं।"

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संपूर्ण सृष्टि में एक सूर्य जिसकी अनंत किरणे अनगिनत घरों को रोशनी से भर देती है।


ठीक वैसे ही गुजरात के नरेंद्र काका जिनके व्यक्तित्व के विचारों का प्रवाह आज भी अनगिनत तन- मन को राष्ट्र प्रेम की ऊर्जा से ओतप्रोत कर रहा है। गुजरात के अमरेली में जन्मे पंचासरा जी ने पंचमहाल जिले के ग्रामीणांचल से अपना प्रचारक जीवन शुरू किया। 1977 में उनका केन्द्र जब सूरत बना, तब तक वे अपना जीवन का लक्ष्य समझ चुके थे…और वो था दक्षिण गुजरात के जनजातीय क्षेत्र का समग्र विकास। फिर क्या था उन्होंने अर्जुन की भांति अपने लक्ष्य को बेधने के लिए एक वृहद योजना बनाई। जनजातीय समाज में अशिक्षा, नशा, धर्मांतरण, बेरोजगारी, गरीबी लुप्त होती जैविक खेती, जैसी अनेक समस्याओं के उन्मूलन हेतु सूरत में 1999 में डॉ अंबेडकर वनवासी कल्याण ट्रस्ट की स्थापना की।

जिनके हौसले बुलंद होते हैं उम्र उनके आड़े नहीं आती।नरेंद्र काका ने जीवन क़े 66 वर्ष पूर्ण होने के बाद कल्याण रूपी ट्रस्ट के रथ पर आरूढ़ होकर सूरत के पास डांग और तापी जिले के करीब 270 गांवों में विकास की भागीरथी के लिए रास्ता बनाया। जीवन की संध्या अर्थात 18 वर्ष तक इस सतत सेवागंगा से हजारों परिवार लाभान्वित हुए। श्री नरेन्द्र भाई गिरधरलाल पंचासरा जिनका जन्म गुजरात के अमरेली में वर्ष 1933 मे हुआ था उन्होंने अपनी मां को 4 वर्ष की उम्र में ही खो दिया था। पिता श्री गिरधरलाल पंचासरा जी ने हीं सभी बच्चों के लिए मां और पिता दोनों का दायित्व पूरी श्रद्धा से निभाया।तत्कालीन प्रांत प्रचारक माननीय लक्ष्मणराव ईनामदार जी नरेद्र को शाखा तक लाए और पूरा जीवन उनका मार्गदर्शन पंचासरा जी को मिला।सेवाभावी नरेंद्रकाका ने बचपन से ही मन बना लिया था कि वे स्वयं को राष्ट्र सेवा के योग्य बनाएंगे।

अमरेली में पढ़ाई के पश्चात् अपने भीतर बैठे चित्रकार को उन्होंने मौका दिया इंदौर में कुछ पैसे कमाने का परंतु मन पूर्णतया राष्ट्र सेवा में समर्पित होने के कारण लगभग 25 की आयु में वे गोधरा से प्रचारक के रूप में निकल गए। नरेंद्रभाई के साथ लंबे समय जिन्होंने काम किया ऐसे पूर्णकालिक कार्यकर्ता भूपेंद्र भाई बताते हैं कि डाॅ अंबेडकर बनवासी कल्याण ट्रस्ट ने डांग व तापी जिले में 130 सखी मंडलों की रचना कर,1600से अधिक महिलाओं को न सिर्फ सक्षम व स्वावलंबी बनाया बल्कि उनमें नेतृत्व के भाव को जागृत किया है। ट्रस्ट ने 250 गांवों में किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें जैविक खेती करना व स्वयं उन्नत बीज का निर्माण करना सिखाया। ट्रस्ट के सेवाभावी कार्यकर्ताओ द्वारा वर्ष 2006 में, तापी जिले में सोनगढ़ तहसील के गताड़ी गाँव में ग्राम विकास का कार्य शुरू किया था, आधुनिक कृषि, बीज उत्पादन, पानी के संवर्धन हेतु बोरीबंध का निर्माण, देशी खातर (खाद) एवं जीवामृत बनाने के लिए कृषकों को तैयार कर प्रभावी निदर्शन बनाए गए।

कार्यकर्ताओं के प्रयासों व नरेन्द्र काका के मार्गदर्शन नें 14 वर्षो में गताड़ी को आईडियल विलेज बना दिया। फसलों का उचित दाम मिले इसके लिए किसान मेले भी शुरू किए गए। सेवाधाम के माध्यम से 2003 में आहवा गांव में, किराये के मकान में छात्रावास प्रारम्भ किया गया एवं 2005 में सेवाधाम के अपने भवन में 9 वी से 12वी तक के वंचित वर्ग के छात्रों के लिए छात्रावास कि स्थापना की गई। वर्षों तक नरेंद्र काका के सानिध्य में कार्य करते तत्कालीन पश्चिम सूरत के संघ चालक रहे श्री मीठालाल जी जैन बताते हैं कि एक बार कच्छ में जब भूकंप आया तो दिनभर कार्यकर्ताओं ने मेहनत कर ट्रस्ट में बांटने के लिए 15 दिन के अनाज के एक-एक पैकेट तैयार किये। दूसरे दिन उन पैकेट में कुछ पैकेट कम दिखाई दिए । यह देखकर कार्यकर्ताओं को याद आया की पास में कंस्ट्रक्शन चल रहा है और वहां मजदूर लगे हुए हैं जरूर उन मजदूरों ने ही इसमें से कुछ पैकेट चुराए हैं उन्होंने नरेंद्र काका को यह बात बताई तो नरेंद्र काका ने उनसे कहा कि आप सभी एक-एक पैकेट लेकर जाइए और उनके घरों में देकर आईये ,सभी लोग चौंक गए कि उन्होंने चोरी की और फिर आप उन्हें पैकेट भी दे रहे हैं, तो काका ने कहा कि उन्हें अनाज की चोरी करनी पड़ी ये हमारी कमजोरी है जबकि उनका भरण पोषण करना समाज की जिम्मेदारी थी।

दोबारा भोजन पैकेट मिलने पर मजदूरों को स्वयं अपनी गलती का एहसास हुआ। अपने सानिध्य में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति की वे चिंता करते थे। लंबे समय से उनके सारथी रहे चौधरी चाचा बताते हैं कि उनके दोनों बच्चों को बोलने में समस्या थी तो नरेंद्रकाका ने दोनों बच्चों को शाखा में गीत और प्रार्थना करने की जिम्मेदारी दी और उसका परिणाम यह हुआ कि एक साल में दोनों बच्चों के तुतलाहट और गले का रोग दूर हो गया किसका उपयोग समाज हित में कैसे करना और कब करना वे भली-भांति जानते थे। वर्तमान में अंबेडकर भवन के ट्रस्टी पीयूष मेहता जी बताते हैं की 2005 में नरेंद्र काका ने उनसे पूछा कि आप सेवानिवृत्त कब हो रहे हैं ? पीयूष भाई के जवाब में 30 नवंबर सुनते उन्होंने कहा कि 1 दिसंबर से वे कार्यालय आ जाएं आपके लिए कार्य निश्चित कर दिया गया है। 2007 से अभी तक पीयूष अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे है‌। यह घटना 2005 की है, यानी उन्होंने अगले 2 सालों के लिए भी योजना बना ली थी। पीयूष भाई बताते हैं कि नरेंद्र काका को कार्यकर्ता की परख थी वह कार्यकर्ता की दक्षता उसके गुण को पहचान कर उसे क्या कार्य देना है यह समझ जाते थे।

कुछ लोग इस दुनिया से जाकर भी यहीं रह जाते हैं। गुजरात में नरेंद्र भाई पंचासरा के सत्कर्मो की गूंज आज तक जन-जन में व्याप्त है। उनके प्रेम उनके वात्सल्य ने उन्हें जन-जन के लिए नरेंद्र काका बना दिया।

Khushal Luniya

Meet Khushal Luniya – Young Tech Enthusiast, Graphic Designer & Desk Editor at Luniya Times Khushal Luniya is a Brilliant young mind who has already Mastered HTML and CSS, and is Currently diving deep into JavaScript and Python. His passion for Computer Programming and Creative Design sets him apart. Alongside being a budding Graphic Designer, Khushal is making his mark

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