1993 मुंबई बम धमाकों का आरोपी आरिफ 32 साल बाद गिरफ्तार

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1993 के मुंबई बम धमाकों का ऐतिहासिक विवरण
12 मार्च 1993 को मुंबई शहर में जो कुछ हुआ, वह भारतीय इतिहास के सबसे भीषण आतंकवादी हमलों में गिना जाता है। इस दिन दोपहर के समय महज़ दो घंटों में मुंबई के 12 अलग-अलग स्थानों पर सिलसिलेवार बम धमाके हुए। इन धमाकों में 257 लोगों की मौत हुई और 700 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए। धमाकों से न केवल जानमाल का भारी नुकसान हुआ, बल्कि देशभर में आक्रोश, भय और अविश्वास का वातावरण बन गया।
इन विस्फोटों में प्रमुख लक्ष्यों में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज, एयर इंडिया भवन, प्लाज़ा सिनेमा, सहारा एयरपोर्ट, जुहू स्थित होटल, शिवसेना भवन, झावेरी बाजार आदि स्थान शामिल थे। इन स्थानों को रणनीतिक रूप से चुना गया था ताकि अधिक से अधिक जानमाल का नुकसान किया जा सके और आम जनता में भय का वातावरण बने।
इन धमाकों के पीछे आतंकी साजिश थी, जिसे मुंबई के अंडरवर्ल्ड नेटवर्क ने अंजाम दिया था। योजना में कथित रूप से दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन जैसे अपराधी शामिल थे। इस साजिश का उद्देश्य 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों का प्रतिशोध लेना बताया गया।

विस्फोटों की योजना अत्यंत सुनियोजित थी। हमले में इस्तेमाल किए गए विस्फोटक और हथियार कथित रूप से विदेश से समुद्री मार्गों के जरिए भारत लाए गए। विशेष तौर पर रDX और अन्य घातक सामग्री का इस्तेमाल किया गया। मुंबई पुलिस और अन्य एजेंसियों ने इन धमाकों की जांच में व्यापक अभियान चलाया और धीरे-धीरे इस साजिश के जाल को सुलझाया।
आरोपी आरिफ की भूमिका
आरिफ अली हशमुल्ला खान, जो अब 54 वर्ष का है, 1993 में हुए सांप्रदायिक दंगों और बम धमाकों के संदर्भ में आरोपी था। उसका नाम उन लोगों की सूची में था, जिन पर सांप्रदायिक हिंसा फैलाने, गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा बनने, और हत्या के प्रयास जैसे गंभीर अपराधों का आरोप था।
आरिफ मूलतः उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखता है और दंगों के समय मुंबई में मौजूद था। उस पर आरोप था कि उसने दंगों में हिंसा भड़काई, आगजनी में हिस्सा लिया और कुछ निर्दोष लोगों पर हमला किया। उसके खिलाफ कई प्राथमिकी दर्ज थीं। गिरफ्तारी के बाद वह जमानत पर छूटा लेकिन कुछ ही समय बाद वह फरार हो गया।
आरिफ ने फरारी के दौरान अपनी पहचान छिपाने के लिए नाम बदला, सरनेम बदलकर “शेख” रखा और वडाला (मुंबई) के एंटॉप हिल इलाके में एक वेल्डिंग मिस्त्री के रूप में रहने लगा। वह समाज में सामान्य नागरिक की तरह व्यवहार करता रहा ताकि किसी को उस पर संदेह न हो। तीन दशकों तक वह पुलिस की नज़रों से ओझल रहा।
गिरफ्तारी की प्रक्रिया
मुंबई पुलिस द्वारा 2025 में फरार आरोपियों की धरपकड़ के लिए विशेष अभियान शुरू किया गया। इसी अभियान के तहत आरिफ की तलाश फिर से शुरू हुई। जांच एजेंसियों को कुछ तकनीकी सुराग मिले जिससे यह संकेत मिला कि वह अब भी मुंबई में ही रह रहा है।
पुलिस ने उत्तर प्रदेश स्थित उसके पैतृक गाँव में पूछताछ की, जहाँ से यह जानकारी मिली कि उसका भाई अब भी वहीं रहता है। उससे बातचीत करने के बाद पुलिस को यह संकेत मिला कि आरिफ शायद अब भी वडाला या उसके आस-पास के क्षेत्र में छिपा हुआ है।
इसके बाद स्थानीय खुफिया नेटवर्क को सक्रिय किया गया और संदिग्धों की पहचान की जाने लगी। तकनीकी सर्वेक्षण और मोबाइल डेटा विश्लेषण के माध्यम से एक ऐसे व्यक्ति पर संदेह गया जो दिनबंधू नगर में वेल्डिंग का काम करता था। दो दिन की निगरानी के बाद पुलिस ने पुष्टि की कि यह व्यक्ति ही आरिफ है।
7 जुलाई 2025 को रात के समय पुलिस ने बिना किसी विवाद या हिंसा के उसे गिरफ्तार कर लिया। उसे स्थानीय थाने लाया गया और पूछताछ की गई, जिसमें उसने अपनी असली पहचान स्वीकार की। गिरफ्तारी में आधुनिक तकनीक, जासूसी और सतर्कता का बड़ा योगदान रहा।
कानूनी स्थिति
आरिफ के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत गंभीर आरोप दर्ज हैं, जिनमें हत्या का प्रयास, दंगा फैलाना, आगजनी और गैरकानूनी गतिविधियों में भाग लेना शामिल है। गिरफ्तारी के बाद उसे कोर्ट में पेश किया गया, जहाँ उसे न्यायिक हिरासत में भेजा गया है।
पुलिस अब विस्तृत चार्जशीट तैयार कर रही है जिसमें उसके खिलाफ मिले सबूतों, गवाहों और दस्तावेज़ी प्रमाणों को शामिल किया जाएगा। कोर्ट में सुनवाई के दौरान यदि आरोप सिद्ध हो जाते हैं तो आरिफ को उम्रकैद या उससे भी कठोर सजा हो सकती है। अदालत इस मामले को गंभीरता से देख रही है और अभियोजन पक्ष यह सुनिश्चित करने में लगा है कि आरिफ को न्यायिक प्रक्रिया से पूरी तरह गुज़ारा जाए।

सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया
आरिफ की गिरफ्तारी ने समाज में कानून व्यवस्था के प्रति विश्वास को पुनः सुदृढ़ किया है। आम जनता से लेकर कानून के जानकारों और सुरक्षा विशेषज्ञों तक सभी ने मुंबई पुलिस की इस कार्रवाई की सराहना की है। लोग मानते हैं कि देर से ही सही, पर न्याय की दिशा में यह एक सकारात्मक कदम है।
विपक्षी और सत्तारूढ़ दलों दोनों ने इस मामले में पुलिस को पूरा समर्थन देने की बात कही है। राजनीतिक हलकों में यह चर्चा भी हुई कि क्या भविष्य में अन्य फरार आरोपियों की भी इसी प्रकार गिरफ्तारी संभव होगी। गृह मंत्रालय ने इसे एक बड़ी कामयाबी बताया है।
पीड़ितों और उनके परिजनों की प्रतिक्रिया
1993 के बम धमाकों और दंगों में जिन्होंने अपने परिवार के सदस्य खोए थे, उनके लिए यह खबर एक भावनात्मक मोड़ लेकर आई है। कई परिजनों ने कहा कि यह गिरफ्तारी उनके घावों पर थोड़ा मरहम जरूर लगाएगी, भले ही 32 साल बाद यह कदम उठाया गया हो।
पीड़ित परिवारों ने उम्मीद जताई कि बाकी बचे हुए आरोपी भी जल्द गिरफ्तार होंगे और न्याय की प्रक्रिया पूर्ण होगी। उनका कहना है कि न्याय मिलने में चाहे जितना वक्त लगे, पर अपराधियों को सजा अवश्य मिलनी चाहिए। वे मानते हैं कि इस गिरफ्तारी से उन्हें उम्मीद की एक नई किरण दिखाई दी है।
1993 मुंबई बम धमाके केवल एक आतंकवादी घटना नहीं थे, बल्कि उन्होंने पूरे भारत के सामाजिक, राजनीतिक और न्यायिक तंत्र को झकझोर दिया था। इस हमले की पीड़ा आज भी कई परिवारों के दिलों में जीवित है।
आरिफ की गिरफ्तारी दिखाती है कि कानून का शिकंजा कितना भी देर हो, आखिरकार कस ही जाता है। यह गिरफ्तारी न केवल एक आरोपी को कानून के हवाले करने का मामला है, बल्कि यह न्यायिक प्रणाली के धैर्य और सतर्कता का भी प्रतीक है।
मुंबई पुलिस, राज्य प्रशासन और न्यायपालिका को इस उपलब्धि के लिए सराहा जाना चाहिए कि 32 वर्षों बाद भी उन्होंने कानून का पालन कराने की प्रतिबद्धता नहीं छोड़ी। यह समाज के लिए एक स्पष्ट संदेश है — न्याय देर से मिल सकता है, लेकिन मिलता जरूर है।