अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा संविधान का विश्लेषण

लेखक: घेवरचन्द आर्य पाली
- वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार पूर्व प्रचार मंत्री महासभा वर्तमान प्रचार मंत्री जिला सभा पाली राजस्थान।
हमारी मातृ संस्था अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा के अनेक पूर्व एवं वर्तमान पदाधिकारियों को महासभा के संविधान के बारे में कोई जानकारी नहीं है। पदाधिकारियों ने संविधान को देखा तक नहीं है।
किसी ने देखा है तो पढ़ा नहीं है और पढ़ा है तो ठीक प्रकार से समझा नहीं है। आज मैं आम समाज बंधुओ को महासभा के संविधान का विश्लेषण कर जानकारी उपलब्ध करवाने का प्रयास करवा रहा हूं।
महासभा के संविधान के अनुसार महासभा के उद्देश्यों को छोड़कर आम समाज जन, महासभा कार्यकारिणी एवं महासभा की शाखाओं के पदाधिकारियों किसी का भी महासभा संविधान से कोई सरोकार नहीं है। महासभा संविधान में प्रधान ही सर्वेसर्वा है, यह एक कड़वी सच्चाई है। संविधान में व्यवस्था सम्बन्धी निर्देश है तथा व्यवस्था प्रधान अपनी मर्जी से चलाते देखे गए हैं।
महासभा की कार्यकारिणी गठन के समय सदस्य की वरिष्ठता योग्यता का निर्धारण उसका अनुभव व कार्य क्षमता न होकर मात्र प्रधान से नजदीकी (रिश्तेदारी तथा मित्रता) मात्र होती है। प्रधान द्वारा किये जा रहे कार्य की हाँ में हाँ मिलाना पदाधिकारी की मजबूरी होती है।
पिछले वर्ष का इतिहास गवाह है कि अगर कोई अपवाद स्वरूप प्रधान जी को सच कहने का प्रयास करते हैं तो उन्हें विरोधियों की जमात में शामिल कर दिया जाता है। ऐसे सत्यवक्ताओ की कार्यकारिणी में आवश्यकता नहीं समझी जाती है। अर्थात् महासभा प्रधान की प्रसन्नता ही पदाधिकारियों के लिए संविधान है।
महासभा में प्रधान, महामंत्री और कोषाध्यक्ष के अलावा जितने भी पद हैं वे केवल शपथ ग्रहण करने और माला साफा पहनकर फोटो खिंचवाने तक सिमित है। इसके अलावा किसी भी पदाधिकारी के पास न तो किसी प्रकार का चार्ज होता है और न कोई जिम्मेदारी। ऐसी अवस्था में अगर संस्था अपने नियम उदेश्यो की पूर्ती में विफल रहती है या संस्था में कोई नियम विरुद्ध कार्य भ्रष्टाचार या घोटाला होता है, अथवा संस्था के सदस्यों की बात नहीं सूनी जाती है तो उसकी सारी नैतिक जिम्मेदारी प्रधान जी पर ही आती है।
मेरा मानना है कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया न होकर गुलामी की राजशाही प्रक्रिया है । चुकीं महासभा की स्थापना गुलामी के समय हुई थी इसलिए अब इसमें परिवर्तन किया जाना समय की मांग है । इसके लिए संविधान में संशोधन कर चुनाव प्रक्रिया में परिवर्तन किया जाना अपेक्षित है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया यह है कि पहले सभी तहसील अध्यक्षों के चुनाव हो।
तहसील अध्यक्ष मिलकर जिला अध्यक्ष का चुनाव करें। जिस जिले में तहसील शाखाएं न हो वहां पहले जिला अध्यक्ष के चुनाव हो। जिला अध्यक्ष मिलकर प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव करें और सब प्रदेशाध्यक्ष मिलकर प्रधान का चुनाव करें। इससे प्रधान प्रदेशाध्यक्षों के प्रति उत्तरदाई रहेगें और प्रदेशाध्यक्ष जिला अध्यक्षों के प्रति उत्तरदाई रहेगें।
कार्यकारिणी गठन में प्रधान को प्रदेशाध्यक्षों द्वारा भेजी गई सुची को वरियता देनी अनिवार्य हो, और प्रदेशाध्यक्ष को जिला अध्यक्षों द्वारा भेजी गई सूची को वरियता देना अनिवार्य हो। ऐसा होने पर सभी एक दुसरे के प्रति उत्तरदाई रहेंगे तो कोई भी मनमानी नहीं कर सकेगा। यही वास्तविक लोकतंत्र होगा जैसा कि हमारे देश में है।
समाज के वरिष्ठ बुद्धिजीवी, पत्रकार, साहित्यकार, लेखक, विद्वान पूर्व प्रधान राजनेता आदि अपने अपने विचार व्यक्त करें। अगर सबकी सहमति मिलेंगी तो संविधान संशोधन अवश्य होगा और यह महासभा के लिए अमृत संजीवनी का कार्य साबित होगा। ऐसा होने पर समाज और विशेष कर महासभा में सकारात्मक एकता होगी।
आजकल जो एक दुसरे की टांग खिंचाई और चमचागिरी हो रही है उस पर लगाम लगेगी। महासभा प्रधान जी और प्रदेशाध्यक्ष की गुटबाजी और मनमानी पर भी लगाम लगेगी। महासभा में आम व्यक्ति की भागीदारी बढ़ेगी तो समाज का हर व्यक्ति उसकी और आकृष्ट होकर सदस्य बनने को लालायित होगा।