BlogsArticle
Trending

बाबा परशुराम महादेव मेले पर विशेष आलेख: राष्ट्रीय एकात्मकता के संवाहक युग पुरुष परशुराम

परशुराम चिरंजीवी थे अतः उनकी मुलाकात 23वें त्रेता युग में जन्मे श्रीराम से भी हुई। सीता स्वयंवर के समय शिव धनुष को तोड़ने से क्रोधित परशुराम के क्रोध को लक्ष्मण ने और बढ़ा दिया, ऐसे में स्वयं श्रीराम सामने आए। परशुराम ने श्रीराम को वैष्णव धनुष प्रदान कर बाण संधान करने को कहा। भगवान श्री राम ने वैसा ही किया। परशुराम ने भगवान श्रीराम की पूजा की और तप हेतु महेंद्र पर्वत पर चले गए।

विजय सिंह माली

प्रधानाचार्य श्रीधनराज बदामिया राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय सादड़ी (पाली) 9829285914

भृगुवंशी जमदग्नि का विवाह इक्ष्वाकु वंशीय रेणुका के साथ हुआ। रेणुका के गर्भ से पांचवें पुत्र के रुप में श्री विष्णु भगवान ने आज से 3,97,49000 वर्ष पूर्व नर्मदा तीरस्थ हुंडिया नेमावर स्थित जमदग्नि के आश्रम में 19वें त्रेता युग के प्रमाथी संवत्सर की वसंत ऋतु के वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया को राम के रुप में अंशावतार लिया।परशु धारण करने से कालांतर में ये बाबा परशुराम महादेव के नाम से विश्व विख्यात हुए।

उपनयन संस्कार के उपरांत इनकी शिक्षा दीक्षा प्रारंभ हुई।कश्यप मुनि ने इन्हें वैष्णव मंत्र का उपदेश दिया। फिर इन्होंने विष्णु की तपस्या कर वैष्णव धनुष व अनेक दिव्यास्त्र प्राप्त किए। इनमें बाल्यावस्था से ही अतुलनीय बल विद्यमान था। बाल्यकाल की शौर्य युक्त घटनाएं यथा गाय को मारने वाले बाघ की मांद से बाघ को मारकर लाना इनके क्षात्र तेज की ओर संकेत करती है।

परशुराम आज्ञाकारी पुत्र थे। अपने पिता के आदेश पर माता रेणुका एवं भाइयों का वध किया। पिता ने वर मांगने को कहा इन्होंने माता सहित चारों भाइयों को पुनर्जीवित करने तथा उन्हें इस घटना का भविष्य में स्मरण न होने का वर मांग कर माता व चारों भाइयों को पुनर्जीवित किया।परशुराम का जीवन संघर्षमय रहा।

हैहय वंशी सहस्त्रार्जुन कार्तवीर्य अपनी सहस्त्र भुजाओं व अतुल्य बल का वर पाकर दंभी बन गया। निरंकुश दंभी कार्तवीर्य ने जमदग्नि की कामधेनु गाय को बलपूर्वक ले जाने का दुस्साहस किया। जमदग्नि ने कार्तवीर्य का प्रतिरोध किया। दंभी कार्तवीर्य ने अमोघ शक्ति का दुरुपयोग करते हुए जमदग्नि को मार डाला। उस समय परशुराम पुष्कर तीर्थ में तपस्या कर रहे थे। माता रेणुका ने अपनी आर्तवाणी से पुत्र परशुराम को याद किया। परशुराम शीघ्र ही वहां उपस्थित हो गए और युद्ध का सारा वृत्तांत सुना।

पिता जमदग्नि की अनैतिक एवं बिना कारण निर्मम हत्या ने परशुराम के ब्रहमतेज को आंदोलित कर दिया। उन्होंने पिता के शव को साक्षी मानकर कार्तवीर्य का वध करने एवं पृथ्वी को निरंकुश क्षत्रिय रहित करने की भीषण प्रतिज्ञा की। माता रेणुका ने पति के शव के साथ प्राण छोड़ने का निर्णय लिया। परशुराम ने वैदिक विधान के साथ माता पिता का अंत्येष्टि संस्कार किया।

तत्पश्चात ब्रह्मा लोक में पहुंच कर ब्रह्माजी से मार्गदर्शन लिया। शिव धाम जाकर शिव से दिव्यास्त्रों की शिक्षा ली। युद्ध की तैयारी के बाद परशुराम ने कार्तवीर्य को नर्मदा नदी के तट पर युद्ध के लिए ललकारा। परशुराम ने कार्तवीर्य के सहयोगियों मत्स्यराज,सुचंद्र,पुष्कराक्ष समेत कई राजाओं का वध करने के बाद सहस्त्रार्जुन कार्तवीर्य से युद्ध किया।


Read also  अक्षय तृतीया पर पूर्ण हुई वर्षीतप की साधना, तपस्वियों ने किया इक्षुरस से पारणा


भीषण युद्ध के बाद परशुराम ने पाशुपत अस्त्र से आततायी राजा कार्तवीर्य का वध कर दिया। परशुराम ने एक के बाद इक्कीस युद्ध कर क्षात्र तेज की निरंकुशता को समाप्त कर अपनी प्रतिज्ञा को पूर्ण किया। परशुराम ने अपने पितामह ऋचिक के कहने पर जीती गई पृथ्वी को कश्यप को दान कर दी तथा शिव को नमस्कार करने कैलाश गए। वहां बातों ही बातों में गणेशजी से संघर्ष हुआ।क्रोधवश चलाए परशु से गणपति का बायां दांत टूट गया।

वस्तुस्थिति जानकारी मां पार्वती ने परशुराम को क्षमा करते हुए आशीर्वाद दिया। तत्पश्चात अपने चित्त की शांति के लिए समुद्र किनारे ऋषियों के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए परशु से लौहयष्टि बनाकर लौहयष्टि तीर्थ की स्थापना की । परशुराम ने कामरुप प्रदेश में ब्रह्म कुंड के जल को मुक्त कर ब्रह्मापुत्र नदी के रुप में प्रवाहित किया।असम के तेजु पर्वत के शिखर पर पहुंच कर स्तुति कर मातृहत्या के पाप से मुक्ति पाई।

तत्पश्चात हिमाचल की पावन भूमि पर रेणुका तीर्थ,चार ठहरी पांच तीर्थ,जमोगी गांव में तीर्थ स्थापित किए। उत्तराखंड में गोपेश्वर तीर्थ, राजस्थान में मातृकुंडिया, परशुराम महादेव, अरुणाचल प्रदेश में परशुराम कुण्ड का संबंध भी परशुराम से माना जाता है। भड़ौच से लेकर कुमारी अंतरीप तक परशुराम क्षेत्र की स्थापना की।

परशुराम महादेव
परशुराम महादेव

महाराष्ट्र में पेढे परशुराम, चिपलूण, गोवलकोट, चांदबड तीर्थ, मध्यप्रदेश में जनापाव, महेंद्र पर्वत , कुरुक्षेत्र के तीर्थ उत्तर प्रदेश में रुनकता गांव, बिहार में सोहनाग परशुराम धाम, कंबोडिया में परशु स्थान इनसे सम्बद्ध माने जाते हैं। सचमुचभारतीय सभ्यता और संस्कृति के इतिहास में परशुराम द्वारा स्थापित तीर्थ स्थलों की विशेष महत्ता है। वस्तुत उन्होंने जप तप ,यज्ञ तर्पण उपवास आदि की व्यवस्थाओं को स्थापित करने के सन्दर्भ में 108तीर्थो की स्थापनाएं की थी। इन स्थापनाओं से समाज और राष्ट्र एकात्मकता के सूत्र से बंधा है।

परशुराम चिरंजीवी थे अतः उनकी मुलाकात 23वें त्रेता युग में जन्मे श्रीराम से भी हुई। सीता स्वयंवर के समय शिव धनुष को तोड़ने से क्रोधित परशुराम के क्रोध को लक्ष्मण ने और बढ़ा दिया, ऐसे में स्वयं श्रीराम सामने आए। परशुराम ने श्रीराम को वैष्णव धनुष प्रदान कर बाण संधान करने को कहा। भगवान श्री राम ने वैसा ही किया। परशुराम ने भगवान श्रीराम की पूजा की और तप हेतु महेंद्र पर्वत पर चले गए।

द्वापर युग में भी चिरंजीवी परशुराम ने भीष्म पितामह को अपना शिष्य बना कर अस्त्र-शस्त्रो का ज्ञान उन्हें दिया।अंबा हरण के कारण परशुराम ने भीष्म से युद्ध किया। भीष्म ने देवों और ऋषियों के कहने पर परशुराम के चरण पकड़ कर क्षमा मांगी तब युद्ध समाप्त हुआ और परशुराम ने अपने प्रिय शिष्य भीष्म को आशीर्वाद दिया। द्रोणाचार्य ने भी परशुराम से अस्त्र-शस्त्रो की शिक्षा प्राप्त की। कर्ण ने भी अपना वास्तविक परिचय छिपा कर परशुराम से विशेष विद्या ग्रहण की लेकिन परशुराम को पता चलने पर कर्ण को संकट के समय सीखी गई विद्या को भूलने का श्राप दिया।


Join WhatsApp Group 


सचमुच परशुराम महादेव युग पुरुष थे। उन्होंने ऋषियों द्वारा स्थापित व्यवस्थाओं को सुस्थापित कर सुशासन की नींव रखी। समाज के लिए कर्म और त्याग का मार्ग प्रशस्त किया। लोककल्याण के लिए धर्मयुद्ध को अनिवार्य माना। निरंकुश क्षत्रियों को दंड देने के लिए ही परशु उठाया। वह परम योद्धा के साथ साथ परम ज्ञानी भी थे। उन्होंने निरंकुश क्षत्रियों के पाशविक बल को समाप्त कर उनमें सात्विक बल का पुनः संचार किया।

वह शील,शौच, सहिष्णुता, नैपुण्य, शौर्य, सौम्य और माधुर्य गुणों की प्रतिमूर्ति थे। तप और योगबल से सप्त अमर हो गए। उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम संपूर्ण भारत में तीर्थो की श्रृंखला खड़ी कर भारतभूमि को पावन भूमि के रुप में प्रस्थापित किया,उस महान व्यक्तित्व को युगपुरुष की ही संज्ञा दी जा सकती है।


आपको लुणिया टाइम्स की वेबसाइट कैसी लगी?

View Results

Loading ... Loading ...

KHUSHAL LUNIYA

KHUSHAL LUNIYA IS A LITTLE CHAMP WHO KNOW WEB DESIGN IN CODING LIKE HTML, CSS, JS. ALSO KNOW GRAPHIC DESIGN AND APPOINTED BY LUNIYA TIMES MEDIA AS DESK EDITOR.
Back to top button