चातुर्मास की महत्ता पर आचार्यश्री के प्रवचन

जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेनसूरीश्वर म.सा. ने श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ, मालदास स्ट्रीट-उदयपुर के नूतन आराधना भवन में प्रवचन देते हुए कहा:
सद्गुरु का संग जीवन को बदलता है
“पारसमणि के संग से लोहा भी सुवर्ण बन जाता है, वैसे ही सद्गुरु के संग से पामर और पापी व्यक्ति भी पावन बन जाता है। गुरु के द्वारा हमें परमात्मा और धर्म का परिचय होता है।”
आषाढ़-चातुर्मास का विशेष महत्व
“वैसे तो वर्ष में तीन चातुर्मास होते हैं, लेकिन सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह आषाढ़-चातुर्मास है। आषाढ़-चातुर्मास में ही हमें सद्गुरु से ज्ञानधन पाने का सर्वश्रेष्ठ आलंबन मिलता है।”
जिनवाणी आत्मा को निर्मल करती है
“जैसे पानी से प्यास शांत होती है, शरीर में ठंडक का अहसास होता है और शरीर के मैल की सफाई होती है, वैसे ही जिन-वाणी से आत्मा में रही कषायों की आग शांत होती है। आत्मिक आनंद का अहसास होता है और आत्मा पर लगे कर्मों के मैल की सफाई होती है।”
जीवन क्षणभंगुर है, धर्म का अवसर न गँवाएं
“मानव-जीवन क्षणभंगुर है। कौन सा दिन अपने जीवन का अंतिम दिन होगा, यह पता नहीं है, इसलिए धन के पीछे दौड़ते हुए, प्राप्त धर्म के अवसर को व्यर्थ नहीं खोना चाहिए।”
जिनवाणी की वर्षा आत्मा में परिवर्तन लाती है
“चातुर्मास में जैसे पानी की वर्षा होती है वैसे ही जिनवाणी की वर्षा होती है। इस वर्षा के जल में भीग कर आत्मा में स्थायी परिवर्तन लाना चाहिए।”
स्थायी परिवर्तन का संदेश
“परिवर्तन तो पानी का बर्फ के रूप में भी होता है, परंतु वह परिवर्तन कुछ समय का ही होता है, जबकि दूध में छाछ की थोड़ी भी बूँद, दूध को दही बना देती है, जो आगे चलकर मक्खन और घी में बदल जाता है। हमारे जीवन में भी ऐसे ही चिर-स्थायी परिवर्तन करने के लिए चातुर्मास का यह अवसर आया है।”
संघ के पदाधिकारी रहे उपस्थित
इस अवसर पर कोषाध्यक्ष राजेशजी जावरिया, अध्यक्ष शैलेन्द्रजी हिरण, नरेंद्रजी सिंघवी, हेमंतजी सिंघवी, गौतमजी मोर्डिया, जसवंतसिंह सुराणा आदि उपस्थित रहे।