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युवा जोश के संवाहक, पथ प्रदर्शक स्वामी विवेकानंद – मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा

स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को राष्ट्र की शक्ति और उत्कर्ष का आधार माना। उनका विश्वास था कि किसी भी देश को सशक्त बनाने के लिए राजनीतिक विचारों से पहले आध्यात्मिक विचारों का जागरण आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता के बिना राष्ट्र की उन्नति अधूरी है। विवेकानंद ने युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भर, चरित्रवान और साहसी बनने का संदेश दिया, जिससे वे न केवल अपने जीवन को संवारें, बल्कि राष्ट्र को भी नई ऊंचाइयों तक ले जाएं। उनका दृष्टिकोण यह था कि आध्यात्मिक जागरूकता ही समाज और देश की वास्तविक प्रगति की नींव है।

जयपुर। आज का दिन स्वामी विवेकानंद की जयंती का पर्व है। हम सभी इसे युवा दिवस के रूप में मनाते हैं। युवा वर्ग ही किसी राष्ट्र के विकास का कर्णधार होता है, इसलिए आज का दिवस पावन-प्रेरणास्पद है। स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को उज्ज्वल राहों पर चलने के लिए ही सदा प्रेरित किया है। स्वामी विवेकानंद युवाओं के विरल मार्गदर्शक थे। युवाओं में जोश जगाने वाले थे। योग, राजयोग, ज्ञानयोग जैसे ग्रंथों का सृजन कर उन्होंने युवाओं का पथ प्रशस्त किया। वेदांत, योग दर्शन का युवाओं में प्रसार कर उन्होंने लोक का आलोक दिया।

युवाओं के उत्कर्ष में राष्ट्र का सर्वोत्कृष्ट देखने वाले स्वामी विवेकानंद ही वह महामना थे जिन्होंने कहा था कि किसी राष्ट्र को राजनीतिक विचारों से प्रेरित करने के पहले जरूरी है कि उसमें आध्यात्मिक विचारों का प्रवाह किया जाए।

स्वामी विवेकानंद की राजस्थान से निकटता थी। बचपन का उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, पर वह विवेकानंद से ही विश्वभर में जाने गए। यह नाम उन्हें राजस्थान से मिला। खेतड़ी के तत्कालीन महाराजा अजित सिंह ने युवक नरेंद्रनाथ में हीरे की परख की और विश्वधर्म संसद में बोलने के लिए जाने हेतु उन्हें खेतड़ी नरेश ने प्रेरित किया। उन्होंने ही नरेंद्रनाथ दत्त और विविदिशानंद को “विवेकानंद” से अभिहित किया। विश्व धर्म संसद में बोलने के लिए जाने से पहले खेतड़ी नरेश ने ही उन्हें राजस्थानी भगवा साफा, चोगा, कमरबंध भेंट की थी।

स्वामी विवेकानंद धर्म, दर्शन, कला, साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान थे। यही नहीं शास्त्रीय संगीत का भी उन्हें गहरा ज्ञान था। जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं था, जिनका मर्म स्वामी विवेकानंद से अछूता था। युवाओं से उनका जुड़ाव था। उन्होंने भारतभर की यात्राएं कर पथ का दिव्य पाथेय पाया। युवा-जोश को जगाया। ये कहा भी गया है “उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः” अर्थात उद्यम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं न कि केवल मनोरथ करने से।

विश्व धर्म सभा को संबोधित करने संबंधित उनका जीवन का पक्ष भी प्रेरणा देने वाला है। शिकागो पहुंचने पर जितने भी पैसे उनके पास थे वह सब खत्म हो गए थे। कड़ाके की ठंड, गर्म कपड़ों का अभाव और जिस धर्म महासभा ने उन्हें जन-जन तक पहुंचाया, वहां पर प्रवेश के लिए भी उनके पास यथोचित परिचय पत्र नहीं था। सब ओर कठिनाईयां। कोई दूसरा होता तो घबरा जाता। लौट आता। स्वामीजी ने धैर्य नहीं खोया। हालात से जूझते हुए उन्होंने धर्म सभा में प्रवेश पाया और अपने संबोधन से विश्व भर में भारत को गौरवान्वित किया। उन्होंने धर्म संसद में भी कहा कि “कोई भी धर्म बंधन नहीं मुक्ति का मार्ग है। जिसने जैसा मार्ग बनाया, उसे वैसी ही मंजिल मिलती है।

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धर्म संसद में उनका यह कहा आज भी प्रेरणादायक है कि “मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी। मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इजराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली।“

हमारे व्यक्तित्व का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण एवं निर्धारक चरित्र है। स्वामीजी ने युवाओं को चरित्र निर्माण की ओर प्रेरित किया। वह कहते हैं प्रत्येक मनुष्य जन्म से ही दैवीय गुणों से परिपूर्ण होता है। ये गुण सत्य, निष्ठा, समर्पण, साहस एवं विश्वास से जागृत होते हैं। इनके आचरण से व्यक्ति महान एवं चरित्रवान बन सकता है। चरित्र निर्माण के लिए व्यक्ति में आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता, आत्मज्ञान, आत्मसंयम एवं आत्मत्याग जैसे गुण हों, इनका पालन करने से व्यक्ति अपने व्यक्तित्व और देश-समाज का पुनर्निर्माण कर सकता है।

नरेंद्र से नरेंद्र तक –

स्वामी विवेकानंद ने न केवल भारतीय संस्कृति का गौरव बढ़ाया, बल्कि उन्होंने सम्पूर्ण मानवता के लिए आध्यात्मिकता का ऐसा संदेश दिया, जो आज भी हमें प्रेरित करता है। भारतीय समाज उस समय अंग्रेजी शासन की चपेट में था और हमारी सांस्कृतिक पहचान को चुनौती दी जा रही थी। ऐसे में स्वामी विवेकानंद का उदय हुआ, जिन्होंने हमारे भीतर आत्म-विश्वास जगाया और दुनिया के सामने भारतीय धर्म, योग और संस्कृति का गौरवपूर्ण परिचय कराया।

युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद का यह कहना भी कम प्रेरणाप्रद नहीं है कि शक्ति ही जीवन है और कमजोरी मृत्यु है। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ने कभी ऐसे ही नहीं कहा था कि यदि भारत को कोई जानना चाहता है तो उसे सबसे पहले विवेकानंद को पढ़ना होगा। उनके दिए संदेशों को आत्मसात करना होगा।

राजस्थान के युवा भी राजस्थान की जुझारू, कर्मठ, समर्पित, मेहनती, उत्साही और ऊर्जावान युवा शक्ति हैं और ये आगे बढ़ें, स्वयं भी सशक्त बनें तथा राजस्थान को और देश को अग्रणी एवं विकसित बनाने में सहभागी बनें। राजस्थान सरकार युवाओं को आगे बढ़ाने में पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

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अंततः संकल्प शक्ति ही हमें लक्ष्य की ओर पहुँचने के लिए प्रेरित करती है, साहस जागृत करती है, जुझारू बनाती है और समर्पित करती है। स्वामीजी कहते थे “एक विचार लो उसे अपना ध्येय बनाकर उसके साथ लीन हो जाओ।” उनका बहुश्रुत वाक्य है, ’उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’

स्वामी विवेकानंद की जयंती को युवा दिवस के रूप में मनाने का अर्थ है, स्वामी जी के आदर्शों से युवाओं को सिंचित करना। उन्हें नैतिक तथा बौद्धिक रूप में सक्षम बनाते हुए राष्ट्र विकास के लिए संकल्पित करना। वह भारत के गौरवशाली अतीत से प्रेरणा ले विकसित भारत के लिए युवाओं को तैयार करने के संवाहक थे। आइए, स्वामी विवेकानंद जयंती पर हम उनके आदर्शों से प्रेरणा लें और आगे बढ़ें।

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