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राजस्थान में हरित न्याय पर ऐतिहासिक सम्मेलन

जयपुर। राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के संयुक्त तत्वावधान में राजसमंद के ग्राम पिपलांत्री और नाथद्वारा में दो दिवसीय ‘हरित न्याय’ आधारित कार्यक्रम आयोजित किए गए। पिपलांत्री में ‘वन संरक्षण एवं बालिका संरक्षण – विधिक चेतना शिविर’ और नाथद्वारा में ‘हरित न्याय – हरित एवं स्वच्छ वातावरण, सतत विकास के लिए विधिक सेवा संस्थाओं की भूमिका’ विषयक कॉन्फ्रेंस संपन्न हुई।

इस अवसर पर सर्वोच्च न्यायालय और राजस्थान उच्च न्यायालय के कई न्यायाधीशों की उपस्थिति में वातावरण संरक्षित करने का संदेश दिया गया। मंच पर पहुँचते ही न्यायाधीशों ने वृक्षारोपण कर आयोजन की शुरुआत की।

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पिपलांत्री से प्रेरणा लेते हुए

कार्यक्रम के दौरान न्यायमूर्ति गवई ने संत तुकाराम के दोहे उद्धृत करते हुए पेड़-पौधों को सजीव प्राणी की तरह सहेजने का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि हैदराबाद में 400 में से 100 एकड़ जंगल की कटाई पर न्यायपालिका ने हस्तक्षेप कर संरक्षण सुनिश्चित किया।

ग्राम पिपलांत्री को उन्होंने तीर्थ यात्रा समान बताते हुए कहा कि देश के हर नागरिक को समान अधिकार हैं। उन्होंने पर्यावरण रक्षक श्याम सुंदर पालीवाल के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यहाँ से बेटियों के साथ-साथ प्रकृति को भी संरक्षित करने का सशक्त संदेश गया है।

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प्रधानमंत्री का संदेश और भावविभोर पल

न्यायमूर्ति मेहता ने प्रधानमंत्री द्वारा भेजा गया संदेश पढ़कर सुनाया और कहा कि पिपलांत्री जैसे ग्राम को वैश्विक मंच से सराहा जाना अत्यंत गर्व की बात है। उन्होंने भारत को विकसित राष्ट्र की दिशा में अग्रसर बताते हुए इसे प्रेरणादायक पल करार दिया।

कर्मयोग का प्रतीक बना पिपलांत्री

केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री मेघवाल ने कबीर के भजन के माध्यम से प्रकृति संरक्षण का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि जब पालीवाल की पुत्री का निधन हुआ, तब उन्होंने हार नहीं मानी और पूरे क्षेत्र को उसकी स्मृति में हराभरा कर दिया। यह कर्मयोग और प्रेरणा का सशक्त उदाहरण है।

वितरण एवं जन कल्याण

कार्यक्रम में दिव्यांगजन को ट्राईसाइकिल, श्रमिकों के बच्चों को छात्रवृत्ति, वयोवृद्धों को प्रधानमंत्री वय वंदना योजना के कार्ड वितरित किए गए।

नाथद्वारा में हरित न्याय पर मंथन

नाथद्वारा में आयोजित सम्मेलन में न्यायमूर्ति गवई ने विधिक सेवा संस्थाओं की भूमिका का उल्लेख करते हुए पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कई निर्णयों पर प्रकाश डाला। उन्होंने सावित्रीबाई और ज्योतिबा फुले के उदाहरण से महिला शिक्षा और सामाजिक न्याय का महत्व बताया।

उन्होंने कहा कि यदि एक पेड़ कटे तो दस नए पेड़ अवश्य लगाए जाएं। अंबेडकर द्वारा सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय को समान महत्व देने की बात भी उन्होंने दोहराई।

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स्थायी संस्था की आवश्यकता

न्यायमूर्ति श्रीवास्तव ने पर्यावरण प्रदूषण के प्रभावों पर चिंता जताई और न्यायपालिका, प्रशासन व गैर-सरकारी संगठनों की साझेदारी से एक स्थायी संस्था गठित करने का सुझाव दिया।

प्रेरक वक्तव्य एवं विमोचन

कार्यक्रम में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के वर्ष 2025-26 के एक्शन प्लान, ‘आशा’ नामक बाल विवाह उन्मूलन पुस्तक और संस्था की यात्रा पर आधारित दस्तावेज़ का विमोचन हुआ। पर्यावरणविद् पालीवाल और बाल विवाह उन्मूलन में अग्रणी कृति भारती ने अनुभव साझा किए।

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यह सम्मेलन हरित न्याय की दिशा में एक मील का पत्थर सिद्ध हुआ, जिससे समाज में जागरूकता और संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों को नई दिशा मिली।

 

न्यूज़ डेस्क

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