National News

अंतरंग शत्रुओं को जीतना अति कठिन है जैनाचार्य श्रीमद् विजयरत्नसेनसूरीश्वर

  • पोसालीया

  • WhatsApp Image 2024 10 01 at 21.46.23

विक्रम बी राठौड़
रिपोर्टर

विक्रम बी राठौड़, रिपोर्टर - बाली / मुंबई 

emailcallwebsite

प्रवचन देते हुए कहा कि :-

युद्ध के मैदान में हजारों शत्रुओं को हथियार के बल पर जीत लेना आसान है, परंतु आत्मा के अंतरंग शत्रुओं पर विजय पाना अत्यंत ही कठिन है। बाहर के लाखों शत्रुओं को जीतने वाला योद्धा भी आत्मा के भीतरी शत्रुओं के सामने हार खा जाते है। बाहर के शत्रुओं को पहिचानना आसान है, जबकि अंतरंग शत्रु को शत्रु के रुप में मानना और पहिचानना ही कठिन है, तो पहिचान कर उसके सामने लड़ना और निष्प्रकंपता से लड़कर जीत पाना और भी ज्यादा कठिन है।

WhatsApp Image 2024 08 01 at 17.19.23
आत्मा का सबसे बड़ा और भयंकर शत्रु है ‘काम’ । सुंदर स्पर्श, स्वादिष्ट रस, मनोहर सुगंध, श्रृंगार सहित गोरा रुप एवं मधुर संगीत ये पाँचों पांच इन्द्रियों के विषय भोग है। इन विषयों का भोग करना ही काम है। पैसे को पाने के लिए जो मेहनत करता है, उसका लक्ष्य तो पांच इन्द्रिय के विषय भोगों को पाना ही होता है। इन पांच भोगों की प्राप्ति को ही हम सुख मानते है, जबकि ये पांच भोग ही आत्मा को अनंत दुःखों के गर्त में ले जाने वाले हैं। पांच इन्द्रिय के विषय भोग जहरीले मीठे फल के समान है। उन फलों को खाते समय स्वाद तो मीठा लगता है और पेट भी भर जाता है, परंतु उसका परिणाम अत्यंत खतरनाक है। परिणाम में मात्र करुण मृत्यु ही है।


विषय के भोग प्रारंभ में मीठे होते है लेकिन परिणाम में अति दुःखदायी एवं भयंकर है। पांच इन्द्रिय के विषय भोग हमारे मन में रागभाव पैदा करते है। जहाँ भी राग भाव होगा, उससे विपरीत वस्तु पर अवश्य द्वेष पैदा होगा । राग और द्वेष दोनों को जीतना कठिन है। क्षमा भाव से व्यक्ति द्वेष को जीत सकता है परंतु राग को जीतना अति कठिन है। प्रारंभ में मधुर लगने वाले विषयभोग की आसक्ति के कारण आत्मा इस संसार में भटकती है, और गर्भावास की भयंकर पीड़ाएँ सहन करती हैं। एक मानव-जन्म को पाने के लिए भी इस जीवात्मा को नौ-नौ मास तक गर्भ की कितनी भयंकर कैद सहन करनी पडी है। जन्म के बाद जीवन में रोग-शोक, आधि-व्याधि और उपाधि के कितने ही दुःख मजबूरी से सहन करने पड़ते हैं।


भौतिक सुख की चाह में व्यक्ति दर-दर भटकता रहता है, परंतु अंश मात्र भी सुख की प्राप्ति नहीं होती है, और अपार दुःखों का अनुभव होता है। जिस प्रकार आकाश में ऊंचाई पर उड़ने पर भी गिद्ध की नजर तो श्मशान में रहे किसी मुर्दे पर ही होती है। बस, इसी प्रकार कामी व्यक्ति भी हमेशा काम का पिपासु बना रहता है और काम के निमित्तों को पाते ही उसकी जागृति हो जाती है। जिस प्रकार ईंधन से अग्नि को तृप्ति नहीं होती है, उसी प्रकार भोग द्वारा कामी व्यक्ति को तृप्ति नहीं होती है। संसार के भोग सुखों की विचित्रता है कि ज्यों-ज्यों उन सुखों का भोग किया जाता है, त्यों-त्यों भोग संबंधी भूख बढ़ती जाती है। क्रोध कषाय प्रत्यक्ष और परोक्ष में हानिकारक है। क्रोध के सेवन से शरीर में ताप पैदा होता है, अतः प्रत्यक्ष नुकसान है। क्रोध की विद्यमानता में दुर्गति के आयुष्य का बंध होता है, अतः परलोक को बिगाड़ता है। क्रोध का अनुबंध भव की परंपरा को बढ़ानेवाला है।

Khushal Luniya

Meet Khushal Luniya – A Young Tech Enthusiast, AI Operations Expert, Graphic Designer, and Desk Editor at Luniya Times News. Known for his Brilliance and Creativity, Khushal Luniya has already mastered HTML and CSS. His deep passion for Coding, Artificial Intelligence, and Design is driving him to create impactful Digital Experiences. With a unique blend of technical skill and artistic vision, Khushal Luniya is truly a rising star in the Tech and Media World.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button