कारसेवक: तब दिल में जुनून था…आज रामलला मंदिर प्राण प्रतिष्ठा ने लाई आंखों में चमक
कारसेवक बोले- कारसेवा के लिए जब अयोध्या के लिए कूच किया था तब पुलिस और प्रशासन की नजरो से खुद को बचाते हुए कई किलोमीटर चले पैदल थे, श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा अपनी आखो के सामने देखेंगे तब अब जाकर असीम खुशी मिलेगी।
कार सेवा के दौरान आई कठिनाइयों के किस्से सुनने को लोग भी खासे उत्साहित है. इनके त्याग और बलिदान का ही परिणाम है कि आज अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है। हाल ही बाली में सर्वसमाज की ओर से 23 कारसेवकों का सम्मान किया गया था।
फालना राम मंदिर आन्दोलन में सहयोग करने वाले कार सेवकों की आंखों में चमक लौट आई है। इस खुशी को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है, २२ जनवरी को होने वाले रामलला मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर कारसेवक इतने उत्साहित है कि तब भोगी गई कठिनाइयां भी आज उन कारसेवकों को गौरव का एहसास करवा रही है।
त्याग और बलिदान का मीठा फल: मदनसिंह राव
ऐसे ही कार सेवक है मदनसिंह राव, जिनकी उम्र उस समय करीब 22 वर्ष थी। वे कहते हैं कि आज भी उस घटना को याद करते हैं तो रोगटे खड़े हो जाते हैं। जगह-जगह पर पुलिस का जाप्ता तैनात था। भगवान राम ने ही भगवान राम विरोधी कसों का नाश किया है। आज मंदिर प्रतिष्ठा महोत्सव को लेकर उत्साह है। उस समय किया गया स्थान और बलिदान का आज मीठा फल मिल पाया है। मंदिर में होने वाली प्रतिष्ठा को लेकर वे खासे उत्साहित है।
कारसेवक बोलते ही खूब मिलता सम्मान
अयोध्या पहुंचे तो गोलीबारी की घटना को सुनकर जुनून सवार हो गया। 27 कार सेवक में से हम पाँच लोग ही निकल सके। हमारे पास सिर्फ कार सेवक का पहचान कार्ड था। इसे बताने पर लोग हमारी सेवा करते थे। इतना ही नहीं, रेलगाड़ी में बैठने पर रेलवे के टीटी हम सीट देते थे। घर में संपर्क के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं था. सिर्फ भगवान के प्रति समर्पण भाव था जिसकी बदौलत आज हम प्रभु श्रीराम के अयोध्या मंदिर निर्माण के सपने को साकार होते देखेंगे। इस कार सेवा में जाने वाले हमारे साथी हेमाराम कसाराम चौधरी साल पहले देवलोक हो गए।
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यूपी बॉर्डर पर पुलिस से बचकर भागे थे कानपूर
फालना निवासी कैलाशसिंह राजपुरोहित 27 अक्टूबर 1990 को पार्सल सवारी गाड़ी से राम मंदिर की आधारशिला के लिए कार सेवा करने अयोध्या रवाना हुए। उन्होंने कहा कि ये जन्म प्रभु राम के लिए मिला हुआ है। अपने कर्तव्य को ध्यान में रखकर प्रभु श्रीराम के मंदिर की आधारशिला रखने के लिए रवाना हुए लेकिन, सवारी गाड़ी पार्सल में जगह नहीं मिलने पर आगे की तरफ लगे एसी के कोच में जैसे जैसे प्रवेश कर दिल्ली पहुंचे जहाँ से कालका एक्सप्रेस में रचना हुए। उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर पुलिस व प्रशासन ने थापाई की छिपते हुए पुलिस से बचकर भाग गए। कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद पुलिस से बचते हुए कानपुर पहुंचे। वहां सिर्फ तीन जने एक साथ थे। वहां एक आश्रम में हमें सम्मान मिला। वहां से निकले तो रास्ते में जगह-जगह स्वागत हुआ।
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