अपने नियम उदेश्यों से भटकते अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा दिल्ली के वर्तमान पदाधिकारी

पाली। आजकल जांगिड़ समाज के ग्रुपों में अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा दिल्ली के नवगठित कार्यकारिणी के शपथग्रहण समारोह का आमंत्रण पत्र भेजा जा रहा है। जिसको देखकर वर्तमान पदाधिकारियों के बौद्धिक एवं वैचारिक हास पर आश्चर्य होता है। ऐसा लगता है कि अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा की सभी समस्याओं के समाधान में, महासभा के पूर्वजों के पदचिन्हों का अनुकरण करने वाले महासभा में विराजित हमारे भाई-बहन ही सहायक सिद्ध हो सकते हैं और कोई रास्ता नहीं है।
महासभा के नियम उदेश्यो के अनुभवी जानकार एवं वरिष्ठ वैदिक विद्वान दयानन्द जी शर्मा के अनुसार ब्रह्मर्षि अंगिरा जी के हृदय पटल में प्रगट अथर्ववेद वैदिक धर्म एवं महासभा के प्राण है। ब्रह्मर्षि अंगिरा जी का जीवन चरित्र और शिक्षाएं ही महासभा के नियम उद्देश्य है। जो हमारे समाज व अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा की आत्मा है I तभी तो ब्रह्मर्षि अंगिरा जी और वैदिक धर्म संस्कृति दोनों से हमारी महासभा का और महासभा के सभी पूर्वज पितरों का नक्ष और मांस की तरह जन्म-जन्मान्तर का अटूट संबंध रहा है I और आगे भी रहेगा।
महासभा इतिहास से ज्ञात होता है कि जिन पूज्य पितर ब्रह्मर्षि अंगिरा जी, देव शिल्पाचार्य भगवान् विश्वकर्मा जी, उन्हीं के पदचिन्हों का अनुकरण कर लोकोपकार करने वाले महर्षि मनु, महर्षि मय, महर्षि त्वष्टा, महर्षि शिल्पी, और महर्षि देवज्ञ ने अपना कर्तव्य निर्वहन कर विविध ज्ञान, विज्ञान, कला कौशल और अध्यात्म का प्रकाश फैलाया। वर्तमान में इन्हीं के वैदिक ग्रंथों और ऋषियों को पढ़कर पंडित इन्द्रमणि जी, पं. पालाराम जी और पं. गोरधनलाल जी के मन में समाज का संगठन बनाने का भाव जागृत हुआ।
इन तीनों संस्थापकों को पढ़कर उनके जीवन से शिक्षा ग्रहण कर समाज के अनगिनत वैदिक विद्वानों ने अपना सर्वस्व समाज के लिए आहुत करके वैदिक धर्म स्तम्भ पितृ पुरुष ब्रह्मर्षि अंगिरा जी और आराध्य देव विश्वकर्मा जी को महासभा के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का स्तुत्य कार्य किया। जिसमें पंडित डालचंद जी शर्मा, गुरूदेव जयकृष्ण जी मणिठीया, पं. हरिकेशदत्त जी शास्त्री, पं नेमीचंद जी शर्मा, पं. ताऊ शेखावाटी जी, के अलावा महासभा की स्थापना से 2000 तक निर्विरोध निर्वाचित सभी प्रधान वैदिक विद्वान ही थे।
वर्तमान में पंडित दयानन्द जी शर्मा, पं. मोहनलाल जी गांधीधाम, पं. सुखदेव जी शर्मा इन्दौर, पं. सत्यपाल जी वत्स बहादुर गढ सहित अनगिनत वैदिक विद्वान हैं जो चाहते हैं कि महासभा अपना खोया वैभव हासिल कर पुनः पूर्वज पितरों का अनुकरण करे और “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः” जैसे सर्व कल्याणकारी ईश्वर प्रदत्त धर्म मार्ग के अनुसरण के लिए महासभा में ब्रह्मर्षि अंगिरा जी और आराध्य देव विश्वकर्मा जी को प्रतिष्ठित करें।

बताया जाता है कि वर्षों से महासभा के पदों पर विराजमान और हर बार महासभा के संविधान, नियम, उद्देश्यों की शपथ लेने वाले वर्तमान पदाधिकारियों ने महासभा नियम उदेश्यों के विपरित आमंत्रण पत्र छपवाकर वितरण कर रहे हैं ऐसा करके वे समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं ? यह तो वे ही जानें हमारी महासभा के मुखपत्र जांगिड ब्राह्मण मासिक के मुखपृष्ठ पर ब्रह्म ऋषि अंगिरा जी और शिल्पाचार्य ऋषि विश्वकर्मा जी का दो हाथ वाला फोटो 120 वर्ष से प्रकाशित हो रहा है। और प्रधान जी के शपथग्रहण कार्यक्रम के निमंत्रण पत्र पर महासभा के नियम, उदेश्यों के विपरित काल्पनिक चार हाथ वाला फोटो प्रकाशित किया गया है। जबकि पितृ पुरूष ब्रह्म ऋषि अंगिरा जी को पुरी तरह भुला दिया गया है , आखिर क्यों??
विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि वर्तमान प्रधानजी की कार्यकारिणी मे 95 प्रतिशत सदस्यों की अखिल भारतीय जांगिड़ ब्राह्मण महासभा के नियम उदेश्यो के प्रति श्रद्धा और आस्था नहीं है। इसलिए वे पूर्वज पीतरो की तरह महासभा के सिद्धांतों पर खरे नहीं उतरते हैं। इसलिए ही ऐसी गलतीया करके अपने मूल उद्देश्य और लक्ष्य से भटक रहे है। जो निश्चित ही महासभा के पतन का कारण बनेगा। शास्त्रों का कथन है कि धर्म का निर्णय भीड़ से नहीं नियमों के पालन अनुशासन और मर्यादा से होता है, यह बात हमारी महासभा के पदाधिकारी जितनी जल्दी समझें उतना ही अच्छा है। लाखों तारों की अपेक्षा एक चन्द्रमा ही सारे आकाश का अंधेरा दूर कर सकता है।
एक कविता पदाधिकारियों के लिए प्रस्तुत कर रहा हूं –
- “सुन लो इतनी विनती, महासभा के वर्तमान कर्णधारों।
- अंगिरा वंशज विशुद्ध जांगिड़ ब्राह्मण हो तुम।
- ऋषि अंगिरा संध्या करते, क्या संध्या करते हो तुम।
- पूर्वज पितर वैदिक धर्मानुरागी, क्या अनुकरण करते हो तुम।।
- ऋषि विश्वकर्मा जी पवित्र यज्ञोपवीत धारण करते।
- यज्ञोपवीत धारण कर, उसका अनुकरण करते हो तुम।।
- धन्य हो अंगिरा वंशजों कृपा तुम्हारी, कृपा ही बरसाना I
- वैदिक ज्ञान विज्ञान की राह दिखाकर सत्य पथ पर चलाना।।
- ब्रह्मर्षि अंगिरा जी को पढ़कर महासभा सदस्य बन जाओ।
- पांचजन्य का शंखनाद कर, सबको अंगिरा वंशज बनाओ I।
- सुन लो इतनी विनती अंगिरा वंशजों, ऐसी ज्योति जगा दो I
- अंगिरा का हर जांगिड़ से संबंध, यह समाज को समझा दो I।
- अंगिरा वंशजों यह, जांगिड़ समाज को समझा दो II
पं. घेवरचंद आर्य, पाली, राजस्थान