गुरु शांतीसूरी निर्वाण दिवस अचलगढ़ मे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा

1943, 23/24 सिंतबर आसोज वदी दसमी रात में २-३०बजे नाड़ी की गति मंद पड़नी शुरू हो गई। रात के २-४५ पर चंपक भाई ने योगीराज का जब पांव स्पर्श किया तो बर्फ की भांति ठंडा लगा। उन्होंने योगीराज से पूछा आपको आराम कब आएगा? कृपा करके हमें बताएं। उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा तुझे कुछ पूछना है? चंपक भाई फिर बोले “आपको आराम कब आएगा, इसके अलावा मुझे कुछ नहीं पूछना है”लगभग ३-२५ बजे उन्होंने(योगीराज) अपना हाथ ऊंचा कर “ॐ श्री सदगुरू देवाय नमः” शब्द बोलने के साथ ही आखिरी सांस ली।
इस प्रकार विक्रम संवत् २००० की आसोज कृष्ण १० (द्वितीय) की रात ३-२५ बजे गुरुदेव ५४ वर्ष की जीवन यात्रा पूर्ण करके परम शांति के साथ नश्वर देह त्याग कर परमधाम सिधार गए। आखरी वक़्त में फूलचंद भाई का हाथ गुरुदेव कि नाड़ी पर था और नवकार मंत्र जप रहे थे।
कैसा अहोभाग्य! सूरजमल श्रीमाल, चंपक भाई, नगीनदास भाई भीआखरी वक्त पर हाजिर थे । दिनांक २४-९- १९४३ के सवेरे भक्तों ने गुरुदेव को अर्ध पद्मासन अवस्था में बैठाया। नेत्र आधे खुले हुए थे। परम ध्यानस्थ दशा का आभास दिला रहे थे।”अग्नि संस्कार मांडोली में”
विक्रम संवत् २००० आसोज कृष्ण १४,(सोमवार, दिनांक २७-९-१९४३) को सूर्य उदय होते ही गुरुदेव की पालकी को करीब ३०००० के जनसमूह के बीच पूर्ण चंदन की चिता में दादा गुरु धर्म विजय की समाधि के पास ही अंतिम संस्कार करने के लिए रखा गया। शांता बेन ने आग देने के लिए तीन बार कोशिश की। रीति रिवाज के अनुसार चिता में आग औरत नहीं देती है।अचानक सेठ किशन चंद को प्रेरणा हुई,और एक ही कोशिश में उन्होंने आग दे डाली। उपस्थित भक्तों के अनुसार अग्नि प्रज्ज्वलित होते ही गुरुदेव का मस्तक दादा गुरुदेव धर्म विजय की छतरी की तरफ नमस्कार हेतु झुककर वापस सीध।
This web page can be a stroll-by way of for all the data you needed about this and didn’t know who to ask. Glimpse right here, and also you’ll undoubtedly discover it.
Hi there! I could have sworn I’ve been to this blog before but after browsing through some of the post I realized it’s new to me. Anyhow, I’m definitely happy I found it and I’ll be bookmarking and checking back often!