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भगवान श्रीकृष्ण का प्रेरक जीवन की रौचक बाते बदल सकती है जिंदगी, कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष आलेख

लेखक-विजय सिंह माली प्रधानाचार्य
श्रीधनराज बदामिया राजकीय बालिका
उच्च माध्यमिक विद्यालय सादड़ी (पाली)

आज जन्माष्टमी है यानी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन।जनमान्यता है कि भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को माता देवकी और वसुदेव की आठवीं संतान के रुप में मथुरा के कारागार में भगवान विष्णु ने पृथ्वी को कंस के आतंक से छुटकारा दिलाने के लिए श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया।नंद बाबा और यशोदा ने श्रीकृष्ण का लालन-पालन किया।

भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के पूर्णावतार माने जाते हैं।10अवतारों में इन्हें 8वां अवतार माना जाता है। कन्हैया, श्याम, गोपाल, द्वारकेश, वासुदेव, जगन्नाथ के नाम से विख्यात श्रीकृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ, देवी संपदा से सुसज्जित, योग विद्या में पारंगत चमत्कारी महापुरुष हैं। संदीपनी के मृत पुत्र को यमराज के पास से लाना, मथुरा की कुबडी कुब्जा को ठीक करने, गोवर्धन पर्वत को अंगुली पर उठाने, द्रोपदी के चीर को लंबा करने जैसे कई चमत्कार भी श्रीकृष्ण ने ही किए।
श्रीकृष्ण का संपूर्ण व्यक्तित्व कृतित्व हमारे लिए अनुकरणीय है। श्रीकृष्ण ने कर्म करने का संदेश दिया – कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
उन्होंने वर्तमान क्षण में जीने तथा भविष्य के प्रति सचेत रहने को कहा। उन्होंने क्रोध पर नियंत्रण रखने तथा त्याग का संदेश दिया। वे नम्र थे, सच्चे मित्र थे। सुदामा से उनकी मित्रता आज भी आदर्श है। कोई भी काम छोटा नही होता। अर्जुन के सारथी बनकर समाज के सामने आदर्श रखा।
श्रीकृष्ण जीवन दर्शन के पुरोधा बनकर आए थे। उनका अथ से इति तक का पूरा सफर पुरुषार्थ की प्रेरणा है। उनके चरित्र में किसी बात का निषेध नहीं है, जीवन के प्रत्येक पल को, प्रत्येक पदार्थ को प्रत्येक घटना को समग्रता के साथ स्वीकार करने का भाव है। 14विद्या, 16आध्यात्मिक कलाओं और 64 सांसारिक कलाओं से परिपूर्ण श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया गीता का संदेश आज भी प्रासंगिक हैं।
हमारे लिए उनकी ये शिक्षाएं भी अनुकरणीय है –

  • आत्म विनाश और नरक के तीन द्वार है -वासना, क्रोध और लालच 
  • मनुष्य अपने विश्वासों से बनता है, जैसा उसका मानना है, वह बन जाता है
  • जो कोई भी अच्छा काम करता है उसका कभी भयानक अंत नहीं होता
  • खुशी की कुंजी इच्छाओं में कमी है
  • इंद्रियों से प्राप्त सुख पहले तो अमृत के समान लगता है लेकिन अंत में विष के समान खट्टा हो जाता है

आज जन्माष्टमी पर हम श्रीकृष्ण के संदेश को आत्मसात करने का संकल्प लें।

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