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भायंदर (मुंबई) में श्री शांतियोगी जैन ट्रस्ट द्वारा आयोजित

श्री विजय शांतिसुरी महाराज साहेब की 10वीं वर्षगांठ समारोह हर्षोल्लास से सम्पन्न


विक्रम बी राठौड़
रिपोर्टर

विक्रम बी राठौड़, रिपोर्टर - बाली / मुंबई 

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भायंदर (पश्चिम), ईदरा कॉम्प्लेक्स, 60 फुट रोड स्थित श्री विजय शांतिसुरी महाराज साहेब मंदिर में 16 मई 2025, शुक्रवार को श्री शांतियोगी जैन ट्रस्ट द्वारा पूज्य गुरुदेव युगप्रधान आचार्य सम्राट श्री श्री श्री 1008 विजय शांतिसुरी महाराज साहेब की 10वीं वर्षगांठ बड़े ही श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाई गई।

इस भव्य आयोजन की शुरुआत प्रातः 7:15 बजे गुरुदेव के पाद प्रक्षालन, फूल पूजा एवं वासक्षेप पूजा से हुई, जिसका लाभ लाभार्थी परिवारों द्वारा लिया गया। पूजा के पश्चात बुंदी एवं सेव का प्रसाद भक्तों में वितरित किया गया।

प्रातः 9:00 बजे मंगल आरती और दीप प्रज्वलन किया गया। इसके पश्चात 10:15 बजे अष्टप्रकारी पूजा का आयोजन हुआ, जो मंत्रोच्चार और भक्तिभाव से सम्पन्न की गई।

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महा प्रसादी का आयोजन दोपहर 12:39 बजे किया गया। यह प्रसादी मातुश्री शांतिदेवी गणेशमल श्री श्री माल परिवार (भीनमाल निवासी) द्वारा कियाना यश के जन्मदिन के उपलक्ष्य में रखवाई गई थी।

दोपहर 2:07 बजे शांति जाप एवं 2:30 बजे ऊं शांति महिला मंडल द्वारा सामूहिक सामायिक आयोजित की गई।

सांयकाल 8:00 बजे विराट गुरुभक्ति सभा का आयोजन हुआ, जिसमें भक्तों ने भक्ति रस में सराबोर होकर गुरुदेव को स्मरण किया। गुरुभक्ति के पश्चात पुनः आरती एवं मंगल दीप प्रज्वलन सम्पन्न हुआ।

ट्रस्ट मंडल द्वारा जानकारी दी गई कि वर्तमान में श्री शांतिसुरी महाराज साहेब के मंदिर (जिणोद्वार) का कार्य प्रगति पर है। मंदिर के विस्तारीकरण एवं भव्य निर्माण हेतु ट्रस्ट मंडल दिन-रात परिश्रम कर रहा है। शीघ्र ही गुरुदेव के चमत्कार से और भी लाभार्थी परिवार आगे आएंगे।

ट्रस्ट द्वारा सभी गुरु भक्तों को इस पावन अवसर पर महा प्रसादी का लाभ लेने हेतु आमंत्रित किया गया था।

गुरुदेव का संक्षिप्त जीवन परिचय:

जन्म: 25 जनवरी 1890 (वसंत पंचमी), स्थान: मणादर (सिरोही जिला)

पिता का नाम: श्री भीम तोला

माता का नाम: श्रीमती वसुदेवी

जाति: अहीर

बाल्यकाल का नाम: सगतोजी

दीक्षा: 9 फरवरी 1905, रामसीन (जालोर) में तीर्थ विजय म.सा. से प्राप्त की

दादा गुरु: धर्म विजय महाराज साहेब

आचार्य पदवी प्राप्ति: 20 नवम्बर 1933

निर्वाण: 23 सितम्बर 1943, अचलगढ़ (माउंट आबू)

अग्नि संस्कार: 27 सितम्बर 1943

समाधि मंदिर प्रतिष्ठा: माणडोली नगर, वसंत पंचमी के शुभ दिन

गुरुदेव यद्यपि अजैन जाति से थे, परंतु उन्होंने जैन धर्म को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित किया और जैन ध्वजा को गौरवपूर्ण ऊँचाइयों पर पहुँचाया।

ट्रस्ट मंडल वसंत पंचमी महोत्सव को विशेष बनाने के लिए भव्य पुष्प सजावट, लाइटिंग, गुरुदेव की आकर्षक आंगी एवं लाभार्थी परिवारों के सम्मान हेतु विशेष तैयारियों में जुटा है।

न्यूज़ डेस्क

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