राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक धर्मनारायण शर्मा का देवलोक गमन, भीलवाड़ा में शोक की लहर

भीलवाड़ा। पेसवानी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक, तपस्वी जीवन के प्रतीक, ओजस्वी वक्ता और राष्ट्र चिंतक श्री धर्मनारायण शर्मा का शुक्रवार रात्रि 8:45 बजे नई दिल्ली स्थित विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय कार्यालय में निधन हो गया।
उनके निधन की सूचना जैसे ही भीलवाड़ा पहुंची, पूरे संघ परिवार, विश्व हिंदू परिषद और अन्य सामाजिक संगठनों में शोक की लहर छा गई। उनके अंतिम दर्शन हेतु ओमप्रकाश की बुलिया, बद्रीलाल सोमानी, शिव नुवाल सहित अनेक कार्यकर्ता रात्रि में ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए।

धर्मनारायण शर्मा का भीलवाड़ा से विशेष जुड़ाव रहा है। वे 1970 के दशक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भीलवाड़ा जिला प्रचारक के रूप में नियुक्त हुए थे। उनका कार्यकाल आपातकाल के कठिन दौर से गुजरा, परंतु उन्होंने संगठन की मजबूती में कोई कमी नहीं आने दी। उनके सान्निध्य में तैयार हुए अनेक स्वयंसेवक आज विभिन्न सामाजिक और राष्ट्रीय संगठनों में महत्वपूर्ण दायित्व निभा रहे हैं।
जीवन परिचय एवं प्रचारक यात्रा
धर्मनारायण जी का जन्म 20 जून 1940 को उनके ननिहाल में हुआ था, जबकि उनका बाल्यकाल उदयपुर की पवित्र भूमि पर बीता। वे बचपन में ही संघ से जुड़ गए थे और मात्र 19 वर्ष की आयु में, 1959 में, उन्होंने प्रचारक जीवन का व्रत ले लिया। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र, धर्म, संस्कृति और मानबिंदुओं की रक्षा हेतु समर्पित कर दिया।
संघ में वे नगर प्रचारक, तहसील प्रचारक, जिला प्रचारक, अजमेर विभाग प्रचारक, जोधपुर संभाग प्रचारक और महाकौशल प्रांत प्रचारक जैसे विभिन्न दायित्वों पर रहे। इसके बाद उन्होंने विश्व हिंदू परिषद में पूर्वांचल क्षेत्र के मंत्री और फिर केंद्रीय मंत्री के रूप में अत्यंत सक्रिय भूमिका निभाई।
साहित्यिक योगदान एवं विचारशीलता
शर्मा जी न केवल संगठनात्मक दृष्टि से सशक्त थे, बल्कि वे एक गंभीर चिंतक और लेखक भी थे। उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन किया, जिनमें धार्मिक और सांस्कृतिक विषयों पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया। मनुस्मृति के पश्चात उन्होंने संतों के मार्गदर्शन में “नई स्मृति” नामक हिंदू आचार्य संहिता का लेखन किया, जो उनके चिंतन और ज्ञान का अद्वितीय उदाहरण है।
भीलवाड़ा से अटूट जुड़ाव
भीलवाड़ा की भूमि से उनका गहरा भावनात्मक रिश्ता था। जब वे 75 वर्ष के हुए, तो 26 अप्रैल 2015 को भीलवाड़ा में उनके अमृत महोत्सव का आयोजन तीन दिवसीय समारोह के रूप में किया गया। इस अवसर पर विभिन्न सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों ने मिलकर महाराणा प्रताप सभागार में उनका शॉल ओढ़ाकर, अभिनंदन कर सम्मान किया था। यह आयोजन भीलवाड़ा के सामाजिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बन गया।
अंतिम यात्रा एवं श्रद्धांजलि
उनके निधन का समाचार भीलवाड़ा में जैसे ही फैला, संघ और परिषद के कार्यकर्ताओं में शोक की लहर दौड़ गई। देर रात ही अनेक कार्यकर्ता दिल्ली के लिए रवाना हो गए। नई दिल्ली स्थित विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय कार्यालय में शनिवार दोपहर 3 बजे अंतिम दर्शन हेतु कार्यक्रम रखा गया है, जिसके बाद यमुना किनारे स्थित निगम बोध घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
उनकी स्मृति को नमन करते हुए संघ के वरिष्ठजनों ने कहा कि धर्मनारायण जी का जीवन त्याग, सेवा और राष्ट्रभक्ति की अद्भुत मिसाल है। वे सदैव युवाओं को प्रेरणा देते रहेंगे। संघ, परिषद और सभी राष्ट्रनिष्ठ संगठनों के लिए यह अपूरणीय क्षति है।भीलवाड़ा सहित पूरे राष्ट्र में उनके असामयिक निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया गया है। उनके सिद्धांत, विचार और सेवा कार्य सदैव सभी को मार्गदर्शन प्रदान करते रहेंगे।