
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला होली एक ऐसा पर्व है जो आपसी एकता, भाईचारा, मिठास और सामंजस्य को बढ़ावा देता है। इस पर्व की खासियत यह है की यह गांव की 36 कोम द्वारा सामुहिक रूप से मनाया जाता है। सनातन काल में यह पर्व वासंती नवसस्येष्टि यज्ञ के रूप में मनाया जाता है। आजकल होली इसी सनातन नवसस्येष्टि यज्ञ का ही विकृत रूप है। सामुहिक यज्ञ में नवीन धान्य की आहुतियां दी जाती है, लेकिन आजकल होली कि अग्नि में नवीन धान्य भूना जाता है। इस सामुहिक यज्ञ में किसी के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता। सबकी आहुतियां स्वीकार की जाती है यही इसकी खासियत है।
विनणी का मृहर्त पर जाना
जिस लड़के की शादी होती है उसकी पत्नि पहली बार डिलेवरी के समय पीहर जाती है जिसको बोलचाल की भाषा में मृहर्त पर जाना कहते हैं।
डिलेवरी के दौरान वहीं पर संतान को जन्म देती है तो लडके की मां को पीला ओढ़ाया जाता है। जो इस बात का परिचायक होता है की यह मां बन चुकी है। लड़का होने पर उसका नाना मामा आदि द्वारा लड़के के लिए कपड़े गहने अंगुठी बिछुड़ी कांची की कटोरी खिलोना और साकलीयां (मीठी तली हुई छोटी छोटी रोटीयां) आदि बनाकर भेजते हैं जिसको ढूंढ कहां जाता है।
आजकल साकलीयां की जगह मोतीचूर के लड्डू और दूध के पेड़े भी भेजे जाते हैं।
बच्चे को दुल्हा बनाना
होली दहन के दिन बच्चे को उसके ननिहाल या भुआ के घर से लाये हुए पगड़ी, कपड़े, पांवों के छड़ें, जूते आदि पहनाकर दुल्हे की तरह तैयार करके हाथ में लकड़ी की तलवार दी जाती है। उस दिन गांव के सब लोग स्त्री पुरुष बच्चे वृद्ध सब नाचते, गाते, चंग बजाते, ढोल थाली के साथ गांव से दूर तालाब पर पहुंचते हैं। जिसमें आगे पुरूष और पिछे स्त्रीयों का झुंड होता है जो गीत गाती है। साथ में नवजात बच्चों के चाचा बच्चों को गोद में लेकर होली का दहन को जाते हैं।
चांद की धवल चांदनी में जब सब होली दहन को जाते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी की बरात जा रही हो। गांव के तालाब के पास होली दहन स्थल पर पंडित द्वारा पूजा पाठ करवाया जाता है, फिर गांव का मुख्या या बुजुर्ग व्यक्ति होली के डांडा का रोपण करता है। उसके बाद गांव की स्त्रीया गोबर के कंडे और पुरूष आक की लकड़ी के डडीये उसमें भेंट करते हैं। ये कड़े और आक की लडकीयां यज्ञ की समिधाएं ही कहलाती है इसके बाद गांव का मुख्या उसमे अग्नि प्रज्वलित करता है।
चाचा द्वारा होली की परिक्रमा
होलीका दहन के समय लड़के का चाचा उसको गोद में लेकर होली की परिक्रमा करता है। होली का दहन कर सब गांव वाले फिर नाचते कुदते और औरते गीत गाती वापस गांव को आती है। फिर सब औरतें जिसके घर प्रथम लड़के का जन्म होता है उसके घर जाकर बधाई स्वरूप मंगल गीत गाती है। वहां से गुड़ और साकलीयां लेकर दुसरे के घर जाती है। वहां से तीसरे के घर इस प्रकार गांव में सभी के घरों में जाकर मंगल गीत गाकर बधाई देती है।
होली की गैर और गेरीयां होली दहन के दूसरे दिन ढोल बजाने वाला ढोली, थाली बजाने वाला वादी चंग बजाने वाला चौधरी, जीजा बजाने वाला कोई भी गेरीयां जिसमें गांव का पंडित, मंदिर का पुजारी, वैष्णव, संत, नाई और 36 कौम के युवा होते हैं जो हाथों में डडीयां लेकर चंग की थाप के साथ नाचने कुदते बच्चे के घर पहुंचते हैं।
बच्चे की ढूंढ
बच्चे के घर में बीचो बिच मांडणा करके उस पर बाजोट रखा जाता है बाजोट के चारों पांवों के पास गैंहू गुड़ नारियल आदि रखे जाते हैं फिर उसपर बिस्तर रखकर बच्चें का चाचा उसे गोद में लेकर उसपर बैठता है।
गांव का पंडित और पूजारी एक बड़ी लकड़ी दोनों कोने से पकड़ कर इधर उधर खड़े हो जाते हैं फिर गेरीयें उसका दायें बारे आगे पिछे खड़े होते हैं। उसके बाद पुजारी और पंडित ढूंढ के गीत की एक लाईन बोलते हैं। शेष गेरीयो उस लकड़ी पर डडीये बजाते हुए उस दोहराते हैं जो इस प्रकार है-
हरि हरि रे हरिया वेल, डावे कवलें चम्पा वेल । कोकड़ माय जाड़ बूट, इण घर इतरा घोड़ा ऊंट ॥ इण घर इतरी गायों भैयों, इण घर इतरी टिंगडियों । इण घर जाया लाडल पुत, छोटी कुलड़ी चमक चणा ॥ डावे हाथ लपुकों ले, जीमणे हाथ चंवर ढोलाव । ज्यों ज्यों चम्पो लेहरों ले, डावे हाथ लेहरियो ले i सात हुवा ने जणा पच्चास, गेरीयो रो पूरो हास । इतरो मोटो वेजे..........। हरि हरि रे हरिया वेल ज्यो ज्यो चम्पो लेहरो ले गेरीयां आया थारे द्वार घर धणयोंणी बारे आव, गुडरी भेली लेती आव ॥ साकलियों रो डालो लाव, गेरीयों री आस पुराव । हरि हरि रे हरिया ढूंढ, इतरो मोटो वेजे........।
ये वो मारवाडी शब्दोच्चार है, जो बालक की प्रथम ढूंढ पर बोला जाता है। इस शब्दोच्चार में कई अर्थपूर्ण पंक्तियां हैं, जो भगवान की कृपा और बालक के सुखद भविष्य और मंगल की कामना की जाती है। साथ ही बालक की मां को घर की मालकिन से सम्बोधित करके दक्षिणा स्वरूप गेरीयां गुड़ साकलीयां (तली हुई मिठी रोटी) की मांग करके आर्शीवाद देते है।
आज कल साकलीयां की जगह मोतीचूर के लड्डू या दूध के पेड़े भी देने का चलन हो गया है। लेकिन जो अपनत्व साकलीयां बनाने और वितरण में है वह भाव मोतीचूर के लड्डू और दूध पेड़ों में नहीं होता। क्यों की साकलीयां घर और परिवार की औरतें मिलकर गीत गाती हुई बनाती है। इसलिए उसमें मिठास के अलावा अपनत्व भी होता है । जबकि मोतीचूर के लड्डू या पेड़ा बाजार से खरीदे जाते हैं। ढूंढ के गीत का भाव इस प्रकार है-
“हरि हरि रे हरिया वेल”
“डाले कवले चम्पा वेल”।
गेरीयां हरी भगवान से कहते हैं कि जिस प्रकार हरि वेल जिसको चम्पा वेल भी कहते हैं प्रतिदिन बढ़ती है । उसी प्रकार आपकी कृपा से इस बालक का वंश बढ़ता जावे। जो भगवान की कृपा और आशीर्वाद की कामना करता है।
“कोकड़ माय जाड़ बूट”
“इण घर इतरा घोड़ा ऊंट”
इसमें गेरीये यह मंगल कामना करते हैं की जिस प्रकार जंगल में असंख्य जाड़ बूट अर्थात पैड पोंधे होते हैं । इतने ही इस घर में खेलने और सवारी करने के लिए घोड़ा ऊंट हो। जो बच्चे के लिए अच्छे भविष्य की कामना करता है।
“इण घर इतरी गायों भैयों,
इण घर इतरी टिंगडियों” –
इस घर में घोड़ा ऊंट की तरह तेरे दूध और खाने पीने के लिए असंख्य गायों भेसों हो और इतनी ही खेलने के लिए गायों और भेसों के छोटे छोटे बच्चे हो। यह पंक्ति बच्चे के घर में समृद्धि और सुख की कामना करती है।
“इण घर जाया लाडल पुत,
छोटी कुलड़ी चमक चणा”
इस घर में जिस प्रकार असंख्य घोडे ऊंट गाये भैंसें और उसके बच्चे हो इसी प्रकार इतने ही तेरे लाडले पोते पोतियां हो। जो छोटी कुलड़ी चमक चणा की तरह ऐश्वर्य सम्पन हो।
“डावे हाथ लपुकों ले,
जीमणे हाथ चंवर ढोलाव” –
अर्थात् तेरे ये सब पोते पोतीयां सब तेरी इज्जत करें और चंवर ढोलावे।
यह पंक्ति बच्चे की वंश वृद्धि के लिए सुख और समृद्धि की कामना करती है।
ज्यो ज्यो चम्पो लेहरो ले
डावे हाथ लेहरीयो ले।
जिस प्रकार चम्पा की बेल लहरती जाती है उसी प्रकार तेरी वंश परम्परा बढ़ती जावे।
“सात हुवा ने जणा पच्चास,
गेरीयो रो पूरो हास” –
इतरो मोटो वेजे…..।
तेरे सात पुत्र हो और उन सब के भी सात सात पुत्र हो इस प्रकार तेरे उन्नपचास पोते हो जिससे हर साल तेरे घर में गेरीयो का ठाठ लगा रहे। इत्रों मोटो वेजे……। बोलते समय पुजारी और गेरीयां सब डडीयां उपर करके बच्चे को आर्शीवाद देते हैं की जल्दी इतना बड़ा होजा।
हरी हरी रे हरिया वेल
ज्यों ज्यों चम्पा लेहरो ले
गेरीयां आया थारे द्वार
घर घरयोणी बारे आव
गुडरी भैली लेती आव
इसमें गेरीये कहते हैं कि हरि परमात्मा जिस प्रकार चम्पा की वेल बढ़ती जाती है उसी प्रकार उसका वंश बढ़ता जावे। लड़के की मां को घर की मालकिन के रूप में सम्बोधित करते हुए निवेदन करते हैं की आप बाहर आकर देखो गेरीयां द्वार पर आये हैं। आते समय गेरीयो के लिए गुड़ की भेली (बहुत सारा गुड़) लेकर आना।
साकलियों रो डावों लाव
गेरीयो री आस पुराव।
और साथ में ओडी भरकर साकलीयां लेकर आना और गेरीयो को भरपेट खिलाकर उनकी इच्छा पूर्ण करना।
“गेरिया आया थारे द्वार,
हरि हरि रे हरिया ढूंढ” –
इतरो मोटो वेजे…….।
बच्चे की मां से कहते हैं की गेरीयां तेरे द्वार पर आया है बच्चे की ढूंढ करके आर्शीवाद देने के लिए। वह जल्दी इतना बड़ा हो जावे यह हम सब की मंगल कामना है।
इस प्रकार मारवाड़ी भाषा में बच्चे की ढूंढ करते हैं। बच्चे का दादा पिता गेरीयो को साकलीयां, गुड़ प्रसार आदि वितरण करते हैं इसी प्रकार दादी और माता औरतों को साकलीयां और गुड़ प्रसाद वितरण करती है।
फिर ये सब दुसरे घर में जाते हैं, वहां पर भी इसी प्रकार ढूंढ करते हैं, फिर वहां से तीसरे घर में इस प्रकार गांव में जितने भी घरों में प्रथम बच्चे का जन्म होता है वहां पर जाकर यह परम्परा निभाई जाती है।
कन्याओं का ढूंढोत्सव
शहरों में आजकल समाजों कि अलग-अलग गेर निकाली जाती है और समाज के हर बच्चे का इसी प्रकार ढूंढ किया जाता है। कुछ समाज दिखावे के लिए लड़कीयों का ढूंढ भी करते हैं। भावना यही रहती है कि लड़के लड़की में किसी प्रकार का भेदभाव न हो लेकिन ढूंढ का गीत यही दोहराते हैं जो लड़की पर सटीक नहीं बैठता। क्यों की लड़की को तो एक दिन पराये घर में जाकर पति के घर की वंश वृद्धि में सहायक बनना पड़ता है। हां अगर ढूंढ के गीत में परिवर्तन करके लड़की के योग्य बना दिया जावे तो लडकी का ढूंढ करना भी सार्थक होगा।