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. श्राद्धविधि क्या है? अंधविश्वास या शास्त्रसम्मत विज्ञान – जानिए सही तथ्य

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श्राद्धविधि : अंधविश्वास नहीं, शास्त्रसम्मत सत्य

प्रस्तावना

हिन्दू धर्म में पूर्वजों की सद्गति और वंश की शुद्धि के लिए श्राद्धविधि का महत्व बताया गया है। लेकिन अज्ञानवश और धर्मशिक्षा के अभाव में कुछ लोग इसे अंधविश्वास कहकर नकारते हैं। जैसे –

  • “श्राद्ध ब्राह्मणों का पेट भरने का साधन है।”
  • “श्राद्ध दिखावा है।”
  • “श्राद्ध की बजाय अस्पताल या विद्यालय को दान करें।”
  • “जीवित रहते माता-पिता की सेवा ही पर्याप्त है।”

ये भ्रांतियां सनातन परंपराओं की समझ के अभाव से उत्पन्न होती हैं। पितरों की शांति और परिवार की उन्नति हेतु श्राद्ध श्रद्धा से करना आवश्यक है।

श्राद्धविधि से पितरों को ऊर्जा मिलती है

हिन्दू धर्म कहता है कि आत्मा अमर है। मृत्यु के बाद कर्मानुसार पुनर्जन्म मिलता है।

जिन पितरों को सद्गति नहीं मिलती, उन्हें श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है।

मत्स्यपुराण में वर्णन है कि पिंडोदक क्रिया से पितरों की तृप्ति होती है।

ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार, “देवकार्य से अधिक महत्वपूर्ण पितृकार्य है।”

हर शुभ कार्य से पहले नांदी श्राद्ध का विधान इसी कारण से है।

🔹 उदाहरण: जैसे भारत से अमेरिका पैसे भेजते समय रुपया डॉलर में परिवर्तित होता है, वैसे ही श्राद्ध से उत्पन्न ऊर्जा पितरों तक पहुँचती है।

श्राद्ध और दान में अंतर

  • श्राद्ध और दान अलग-अलग संकल्पनाएं हैं।
  • श्राद्ध से पितरों को आहार और संतोष मिलता है।
  • केवल दान करने से पितरों तक उसका फल नहीं पहुँचता।
  • श्राद्ध किए बिना केवल दान से पितर प्रसन्न नहीं होते।

भावनात्मक षड्यंत्रकारी संदेश

पितृपक्ष में अक्सर कहा जाता है – “जीवित रहते माता-पिता की सेवा करो, श्राद्ध की आवश्यकता नहीं।”

लेकिन हिन्दू धर्म कहता है –

  • मातृदेवो भव
  • पितृदेवो भव
  • आचार्यदेवो भव
  • अतिथिदेवो भव

जीवित रहते सेवा करना और मृत्यु के बाद श्राद्ध करना – दोनों ही कर्तव्य हैं।

इतिहास में श्राद्ध के प्रमाण

श्रीराम ने पिता दशरथ की मृत्यु पर श्राद्ध किया। राजा भगीरथ ने तपस्या कर गंगा को लाकर पूर्वजों को मुक्त किया। इसलिए श्राद्ध परंपरा प्राचीन और शास्त्रसम्मत है, न कि ब्राह्मणों का साधन।

कुलधर्म और वंशशुद्धि, पितर वंशरक्षक हैं। श्राद्ध से वंशशुद्धि होती है। श्राद्ध न करने से मातृदोष और पितृदोष उत्पन्न होते हैं।

पितृदोष के लक्षण

  • घर में लगातार कलह
  • नौकरी न लगना, आर्थिक अस्थिरता
  • गंभीर रोग
  • विवाह में बाधा
  • गर्भपात या संतान सुख न मिलना
  • विकलांग या मंदबुद्धि संतान
  • परिवार में व्यसन

इससे बचाव हेतु श्राद्धविधि और ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का नामस्मरण आवश्यक है।

हिन्दू धर्म के आचार अंधविश्वास नहीं, बल्कि शास्त्र और विज्ञानसम्मत सत्य हैं। आधुनिक विज्ञान जहाँ Multiverse Theory की बात करता है, वहीं हिन्दू धर्म ने इसे सहस्रों वर्ष पहले ही बताया।

शास्त्र शाश्वत हैं और उन पर श्रद्धा रखने से मानव का कल्याण होता है।

इसलिए –

हर व्यक्ति को पितृपक्ष में श्राद्ध करना चाहिए, नामस्मरण करना चाहिए और साधना द्वारा आत्मकल्याण करना चाहिए।

न्यूज़ डेस्क

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