सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी – “लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर असीमित रोक नहीं लगाई जा सकती”

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि लोकतंत्र में नागरिकों की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बिना ठोस कारण के असीमित प्रतिबंध लगाना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में एक याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आई, जिसमें सरकार की आलोचना करने और सोशल मीडिया पर विचार व्यक्त करने को लेकर की गई कानूनी कार्रवाइयों को चुनौती दी गई थी। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि सरकार की नीतियों पर सवाल उठाना या असहमति जताना नागरिकों का मौलिक अधिकार है, इसे देशविरोधी नहीं माना जा सकता।
न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) का उल्लेख करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की रीढ़ है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना राज्य का दायित्व है, लेकिन इसके नाम पर मौलिक अधिकारों का हनन स्वीकार्य नहीं है। यदि किसी वक्तव्य से प्रत्यक्ष रूप से हिंसा, घृणा या अशांति फैलने की आशंका न हो, तो उस पर कठोर कार्रवाई उचित नहीं ठहराई जा सकती।
डिजिटल युग का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पर व्यक्त विचारों को भी संवैधानिक नजरिए से देखा जाना चाहिए। हर आलोचनात्मक पोस्ट या बयान को अपराध की श्रेणी में रखना सही नहीं है। अदालत ने प्रशासन और जांच एजेंसियों को संतुलन और संयम बरतने की सलाह दी।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी नागरिक स्वतंत्रता, प्रेस की आज़ादी और स्वस्थ लोकतांत्रिक संवाद को मजबूती देने वाली है। इससे न केवल आम नागरिकों को राहत मिलेगी, बल्कि निचली अदालतों और प्रशासन को भी स्पष्ट दिशा मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया कि असहमति लोकतंत्र की कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी ताकत है, और इसे दबाना संविधान की भावना के विरुद्ध है।













