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विवाह की वर्षगांठ, लेखक: घेवरचन्द आर्य पाली का 1 ज्ञान वर्धक लेख


घेवरचन्द आर्य पाली

विवाह की वर्षगांठ जिसको आजकल अंग्रेजी में मैरिज एनिवर्सरी डे, और कुछ लोग विवाह की सालगिरह कहते हैं। जबकि उसका वैदिक नाम दाम्पत्य दिवस है।

उसका आजकल जन्मदिन की तरह मनाने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। मेरे हिसाब से यह भी एक अच्छी परम्परा है। इसके द्वारा हमारी बहुत सी पुरानी विस्मृतियां नई और ताजा बन जाती है। लेकिन कई लोगों के सामने एक समस्या आती है कि विवाह की वर्षगांठ कैसे मनाई जावे ? इस सम्बंध में कोई विधि उपलब्ध नहीं है ।

अधिकांश पति-पत्नी अपने विवाह की वर्षगांठ पर हिन्दी या अंग्रेजी में बधाई कार्ड से एक दुसरे को बधाई देकर खुशी जाहिर करते हैं। अंग्रेजी पढ़े लिखे लोग होटल या क्लब में खाना खाकर डांस करते हैं । कुछ सभ्य लोग परिचितों, परिवारजनों और रिश्तेदारों को आमंत्रित करते हैं। स्वयं विवाह के समय की तरह सज-धज कर तैयार होते हैं। विशेष कर स्त्रियां श्रृंगार करती है। आगन्तूक परिवार एवं परिचित जन मालाएं पहनाकर विवाह वर्षगांठ की बधाई देते हैं।

विवाह

उसके बाद जन्म दिवस की तरह पति-पत्नी दोनों एक साथ केक काटकर एक दुसरे को खिलाते हैं। उपस्थित सभी जन तालियां बजाकर खुशी जाहिर करते हैं, फिर पति पुरूषों को और पत्नी स्त्रियों को केक खिलाती हैं। जिनके पास खर्च करने को धन होता है वे आने वालों के लिए केक काटने के बाद भोजन आदि की व्यवस्था करते हैं। लेकिन जिनके पास धन का अभाव है वे केवल चाय-नाश्ता करवा कर अपने विवाह की वर्षगांठ मनाते हैं।

प्रश्न उठता है क्या विवाह की वर्षगांठ मनाने की यह सब विधियां भारतीय संस्कृति के अनुरूप है ? अगर नहीं तो विवाह की वर्षगांठ मनाने की कौन सी विधि उचित है ? इसका उत्तर यह है कि कार्डों का आदान प्रदान, क्लब में पार्टी या डांस करना, केक काटकर जन्मदिन या वैवाहिक वर्षगांठ मनाना यह सब विदेशी इसाई संस्कारों की देन है । जो हमारे लिए गुलामी की प्रतीक है, स्वाभिमानी भारतीय और सनातन धर्मी हिन्दू के लिए उचित नहीं है।

जिस प्रकार जन्मदिन पर नया करने का संकल्प या व्रत ग्रहण करते हैं उसी प्रकार विवाह की वर्षगांठ के अवसर पर वैवाहिक समय में की गई प्रतिज्ञाओं और उत्तरदायित्व को स्मरण करना होता है। जिससे पति-पत्नी अपने-अपने कर्त्तव्य का पालन करने के लिए प्रेरित होते हैं । परिवार के स्नेह की डोर सुरक्षित रहती हैं । इस अवसर पर गृहस्थ जीवन को सुखमय, आनन्दायक और स्मृद्ध बनाए रखने का संकल्प व्यक्त किया जाना चाहिए।

इस दिन पति पत्नी को यह याद रखना है कि विवाह ही सृष्टि कर्म की वृद्धि और संचालन का आधार और परिवारिक सुख का द्वार है। विवाह प्रेम तथा नवजीवन का आरम्भ है। इसके द्वारा पति और पत्नी इन दो शब्दों की उत्पत्ति होती है। जैसे पक्षी के दो पंख होने पर वह आसानी से उड़ान भरकर अपना लक्ष्य निर्धारित करता है । वैसे ही गृहस्थ रूप पक्षी के पति-पत्नि दोनों पंख होते हैं। इसलिए दोनों को एक दुसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए।

विवाह

वैवाहिक वर्षगांठ पर पति-पत्नी को यह भी विचार करना है उचित है कि विवाह का मूल उद्देश्य सुख एवं आनन्द के आमोद प्रमोद साथ परिवारिक जीवन व्यतीत करना और बलिष्ठ संतान उत्पन्न करके परिवार समाज देश को सनातन वैदिक (हिन्दू) संस्कृति की और अग्रसर करना है। इस उद्देश्य में हम दोनों कहां तक सफल हुए हैं। इस पर विचार करना चाहिए साथ ही पति-पत्नी को एक पत्नी और एक ही पति व्रत धर्म का पालन करते हुए शेष सभी स्त्री पुरूषों को मातृ-पितृ व्रत भाव की दृष्टि से देखने में कहां तक सफल हुए है इस पर आत्मावलोकन करना चाहिए।

विवाह और गृहस्थ आश्रम से सम्बंधित मानव उपयोगी सारी व्यवस्था का निर्देश और व्यवहार आदि की शिक्षा वेदों में है। हमने उन पर आचरण कर पूर्वजों की भांति सुख शांति धन ऐश्वर्य चक्रवती साम्राज्य को प्राप्त करने के लिए कितना प्रयास किया है ? इस प्रयास में हमे कितनी सफलता मिली है क्या कभी रही है इस पर चिंतन मनन कर आत्मावलोकन करना चाहिए ।

वैवाहिक वर्षगांठ को वैदिक संस्कृति में दाम्पत्य दिवस कहां जाता है। इस अवसर पर पत्नी को चाहिए कि पति अपने नगर में रहें या वन में, भले हों या बुरे, पति मनमाना करने वाला निर्धन ही क्यों न हो, वह मेरे लिए के अपना सर्वस्व हैं। इस बात की गांठ बांध लें ।
पत्नि को अपनी बुद्धि तथा शिक्षा पर अभिमान नहीं करना चाहिए। पति का कहना मान कर उसकी आज्ञा में चलना चाहिए। जो पत्नी अपनी बुद्धि तथा शिक्षा के अभिमान पर पति को अपने अनुसार चलाने पर विवश करती हैं।

वह अपने इस जीवन तथा भविष्य को दुःख मय बनाती हैं। इसलिए भूलकर भी ऐसा आचरण नहीं करना चाहिए। पति को यह इस पर भी ध्यान देना चाहिए की पत्नी (वज्र) तलवार के समान है। यदि तलवार को म्यान में सुरक्षित रखने के समान मैं भी अपनी पत्नी के साथ उचित व्यवहार कर उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करूंगा साथ ही कर्त्तव्य और अधिकारों के साथ गृह में रखा रखूंगा तो मेरी पत्नी भी तलवार के समान समय-समय पर अपनी तथा परिवार की रक्षा का साधन बनेगी।

दाम्पत्य दिवस जिसको बोलचाल की भाषा में वैवाहिक वर्षगांठ कहते हैं उसको सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार मनाने मनाने की विधि इस प्रकार है:-
इस दिन प्रात:काल सूर्योदय के 8:00 से 11:00 बजे तक या सायंकाल 5:00 से 7:00 बजे सुर्यास्त से पहले सुन्दर वस्त्र धारण करके पति पत्नी दोनों यज्ञवेदी पर पूर्वाभिमुख बैठें। आचमन, अंग स्पर्श, ईश्वर, स्तुति प्रार्थना उपासना मंत्रों का अर्थ सहित पाठ करके, स्वास्तिक वाचन शान्ति करण मत्रो का पाठ करके अग्न्याधान आदि करके दैनिक यज्ञ (हवन) करें । पश्चात् विवाह के नीचे लिखे मन्त्रों से विशेष आहुतियां दें-

ओं समञ्जन्तु विश्वे देवाः समापो हृदयानि नो। सं मातरिश्वा सं धाता समुदेष्ट्री दधातु नौ ।।१।।

  • ऋग्वेद १०/८५/४७

इस मंत्र में पति-पत्नी कहते हैं कि इस यज्ञशाला में बैठें हुए विद्वान् भद्र पुरुषों ! आप हम दोनों पति-पत्नी को निश्चय करके जानों कि गृहाश्रम में एकत्र रहने के लिये हमने एक दूसरे को स्वीकार किया हैं। हमारे दोनों के हृदय जल के समान शान्त और एकरूपता से मिले हुए हैं।

जैसे जीवन देने वाली प्राण वायु हमको प्रिय है वैसे ही हम दोनों एक दूसरे से सदा प्रसन्न रहते आये हैं, और सदा प्रसन्न रहेंगे। जो धारण करने हारा परमात्मा सब में व्याप्त हुआ सब जगत् धारण करता है, वैसे ही हम दोनों एक दूसरे को धारण किये हुए हैं। जैसे उपदेश करने वाला श्रोताओं से प्रीति करता है वैसे हम ही हम दोनों का आत्मा एक दूसरे के साथ दृढ़ प्रेम करेगे।

विवाह समय की दो विधियां अति उपयोगी हैं। उनका इस अवसर पर अवलोकन करना है। दम्पति को स्वयं ही एक साथ बैठकर मनन चिन्तन कर आगामी वर्ष के लिये न्यूनताओं और भूलों को सुधारने का संकल्प व्यक्त करना चाहिए।

ओम् मम व्रते ते हृदयम् दधामि मम चित्तमनुचित्तं ते अस्तु ।
मम वाचमेकमना जुषस्व प्रजापतिस्त्वा नियुनक्तु मह्यम् ॥

  • – पार ० १।८।८

पति अपनी पत्नी से कहे- है ! पत्नी मैं तेरे अन्तःकरण और आत्मा को अपने हृदय में धारण करता हूँ। तुम्हारा चित्त सदा मेरे चित्त के अनुकूल रहे। मेरी वाणी को तुम एकाग्रचित्त से सेवन किया करो। प्रजापति परमात्मा ने ही तुम्हें मेरे लिए नियुक्त किया है ।
इसी प्रकार पत्नी भी अपने पति से कहे- हे! प्रिय स्वामीन्।

आपके हृदय, आत्मा और अन्तःकरण को मैं अपने हृदय में धारण करती हूँ। आपका चित्त सदा मेरे चित्त के अनुकूल रहे। आप मेरी बात को एकाग्रचित्त से श्रवण किया करें। आज से परमात्मा ने आपको मेरे अधीन किया है।

यह हृदय-स्पर्श-विधि ही हिन्दू विवाह पद्धति की रजिस्ट्री है। लेकिन आजकल पौराणिक पंडित अज्ञान के कारण विवाह के समय इस विधि का पालन नहीं करते। जिससे विवाह करने वाले पति पत्नी वेद की इस आज्ञा से वंचित रह जाते हैं । इसलिए प्रतिवर्ष वैवाहिक वर्षगांठ पर इसका चिन्तन मनन करना चाहिए। यहां यज्ञमण्डप ही न्यायालय है।


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सबसे बड़ा न्यायाधीश परमात्मा है और उसके प्रतिनिधि के रूप में पुरोहित विद्यमान है। जनता – स्त्रियां और पुरुष गवाह के रूप में उपस्थित हैं। पति पत्नी का हृदय-पटल ही वह काग़ज़ है जिस पर विवाह-सम्बन्धी सभी बातें अंकित की गई हैं । और अंगूठे के स्थान पर यहां पूरी हथेली की छाप लगाई गई है।

विवाह

वैवाहिक वर्षगांठ पर पाणिग्रहण प्रतिज्ञा के सप्तपदी के सातवे मंत्र पर विचार करना चाहिए। सातवा पग सखा मित्र के लिये है इसलिए पति-पत्नि एक दुसरे के कंधे पर हाथ रखकर साथ साथ पांव उठाकर चलते हैं । पाश्चात्य संस्कृति में पहले मित्र बाद में प्रणय सूत्र बन्धन होता है। जबकि वेद की संस्कृति में पहले प्रणय सूत्र बन्धन होता है, और अन्त में मित्र सखा बनता है।

यह मित्र आजीवन बना रहता है। इसमें टूट कभी नहीं होती। मनुष्य जीवन में केवल सखा ही एक ऐसा पात्र है जिस पर गुप्त से भी गुप्त रहस्य खोलकर रख दिये जाते हैं और वह एक दूसरे के लिये जीवन तक न्यौछावर कर देते हैं। इसी अवस्था को लानें के लिये विवाह में सातवा पग रखा है।

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वास्तव में जो दाम्पत्य जीवन सखा (मित्र) रूप में आ जाता है वहां पर दो शरीर एक आत्मा का स्वरूप बन जाता है। जिसका परिणाम जीवन को स्वर्ग बना देता है। इस प्रकार मनन करते हुए अपने जीवन को भी स्वर्ग बनाने का पूर्णा प्रयत्न करना चाहिए। यही विवाह की वर्षगांठ मनाने उदेश्य है ।

अगर हमारे देश में विवाह की वर्षगांठ इस प्रकार सनातन वैदिक हिन्दू परम्परा से मनाई जावे तो देश में आये दिन हो रही महिलाओं की हत्या और टूटते परिवार रूक सकते हैं इससे अपराध का ग्राफ बिल्कुल नीचे उतर सकता है।


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KHUSHAL LUNIYA

KHUSHAL LUNIYA IS A LITTLE CHAMP WHO KNOW WEB DEVELOPMENT AND WEB DESIGN IN CODING LIKE HTML, CSS, JS. ALSO KNOW GRAPHIC DESIGN AND APPOINTED BY LUNIYA TIMES MEDIA AS DESK EDITOR.

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