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मानव जब अधर्म के पक्ष में खड़ा हो जाय तो उसका व्यवहार पशुवत…श्रीदुर्गा सप्तशती

श्री दुर्गा सप्तशती में वर्णित है कि युद्ध के समय मायावी महिषासुर ने भैंसे का रूप धारण कर लिया। मां ने पाश में बांधा तो वह सिंह का रूप धारण कर निकल गया। फिर उन्होंने सिंह को वश में किया तो वह पुनः रूप बदल कर गजराज हो गया। तब माता ने उसकी सूंढ़ काट दी तो वह पुनः भैंसे के स्वरूप में आ गया। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि उसका मूल स्वरूप मानव का ही था, पर वह बार बार पशु रूप में आ जाता था।
अधर्म की यही मूल शक्ति है, वह मनुष्य को पशु बना देता है। मानव जब अधर्म के पक्ष में खड़ा हो जाय तो उसका व्यवहार पशुवत हो ही जाता है। वह स्वरूप बदलने का प्रयास भी करे तो बदल नहीं पाता, बल्कि महिषासुर की भांति ही भैंसे से सिंह, सिंह से गज में बदलता रहता है। वह चाह कर भी मनुष्य नहीं हो पाता। वह तबतक पशु की भांति ही व्यवहार करता रहता है, जबतक कि पुनः धर्म के मार्ग पर न चलने लगे।
युद्ध के अंतिम क्षण में महिषासुर ने एक बार फिर माया से स्वयं को भैंसे से मानव रूप में बदलना चाहा। अभी उसका आधा शरीर ही मानव का हुआ था कि उसकी छाती में माता का शूल लग गया और वह मारा गया। अर्थात मरते समय महिषासुर न मनुष्य रहा, न पशु ही रह सका।
पशुओं की भी अपनी मर्यादा होती है, वे कभी अपने प्रकृतिक नियमों को भंग नहीं करते। भैंसा बलशाली होता है पर मांस नहीं खाता। हाथी सबसे बड़ा होता है, पर मांस नहीं खाता। वहीं शेर का कर्म मांस खाने का है तो वह भूखों मर जाय पर घास नहीं खायेगा। पशु कभी अपनी मर्यादा, अपने नियम नहीं छोड़ते। पर जब मनुष्य अधर्मी हो जाता है तो वह हर नियम, हर मर्यादा को ध्वस्त कर देता है। यह अधर्म ही उसे पतन तक पहुँचाता है।
अधर्म मनुष्य में बहुत अधिक नकारात्मक शक्ति भर देता है। वह तबतक शक्तिशाली ही दिखता है, जबतक पराजित नहीं हो जाता। अधर्म में भौतिक आकर्षण भी बहुत होता है, और वह पराजय के समय तक आकर्षक ही बना रहता है। पर अंतिम सत्य यही है कि अधर्म की शक्ति और आकर्षण दोनों पराजित ही होते हैं।
हम महिषासुर की सैन्य शक्ति को देखें तो लगता है कि उसकी पराजय असम्भव थी। लाखों की सेना, देवताओं तक को पराजित कर चुके असँख्य बलशाली असुर सेनानायक, ऊपर से अनेकों वरदान की शक्ति भी। और वह महिषासुर एक अकेली स्त्री से पराजित हुआ। क्यों? क्योंकि अधर्म को अंततः पराजित होना ही होता है। महिषासुर की कथा यह विश्वास देती है कि अधर्मी कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, उसका नाश अवश्य होगा। इस नवरात्रि शप्तशती का पाठ करें, मां जीवन में आने वाली हर कठिनाई का अंत करेंगी।

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