News

आज विलुप्त हो गये बहुत पुराने खेल

लेखक: जनप्रिय कवि छैलबिहारी शर्मा

Ghevarchand Aarya
Author

Ghevarchand Aarya is a Author in Luniya Times News Media Website.

Call

आज विलुप्त से हो गये, थे बहुत पुराने खेल।
गिडाडोट, सितोलिया, अब कहां हीकडी “छैल”।

सुरमुन्या, गुटकांकरा, गोली, कंचे, अंटे वाह।
गिल्ली डंडा, चाकना, गुलाम लकडी आह।।

चकचक मूंन्यों घी की दाड, दियो बडे सुंदर की पाड।
आsरे कागला हांडी चबोड,देखो आंख्यां फाड।।

तीतरियो- बालाहरियो, छैल कबड्डी यार।
कलामुंडी,भैंसा कूद, रडक पोंगडा रडके की मार।।

रग रग चूंच्यो, भडू-डूडू, कोई घोडे बनते यार।
माचिस डिब्बी धागा बांध,बतियाते जैसे तार-बेतार।।

तेरी घोडी क्या चरे, होती रस्साकशी भी एक।
चम्मच में नींबू,अंटी, खो-खो स्पर्धा देख।।

लंगडी दौड के साथ में, होती थी मटका दौड।
चंगा पौ, सोलह श्यार में,मचती शतरंज सी होड।।

नाल उठाना, कुश्ती करना, चढो पेड पर जा’र।
चोर सिपाही, छुपम छुपाई, थपकी पडती आर।।

लट्टू ,भौंरा,चकरी घुमा, होती थी रस्सी कूद।
भागदौड़, गतिविधि करके, घर आकर पीते दूध।।

ऊंची कूद के साथ में, होती थी लंबी कूद।
कॉन्फिडेंस, विश्वास से, खेल खेलते आंखें मूंद।।

चिडिया उड, लड्डू खायेंगे, पागल हाथी बनते।
रूंगट बिलाई खाता कोई, सब उस पर ही तनते।।

मौजी खाते मस्ती से, हम बिठा पीठ पर यार।
उन खेलों के आगे अबके,सभी खेल लगते बेकार।।

न्यूज़ डेस्क

"दिनेश लूनिया, एक अनुभवी पत्रकार और 'Luniya Times Media' के संस्थापक है। लूनिया 2013 से पत्रकारिता के उस रास्ते पर चल रहे हैं जहाँ सत्य, जिम्मेदारी और राष्ट्रहित सर्वोपरि हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
05:43