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आदि महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि ड़ाकू नहीं

  • @ घेवरचन्द आर्य पाली
    पाली गुरूवार 17 अक्टूबर।

अश्विनी शुक्ल पूर्णिमा के दिन ऋषि वाल्मीकि जी का अवतरण जन्म हुआ था। क्या वाल्मीकि जी डाकू थे ? इसका उत्तर यह है कि महर्षि वाल्मीकि जी डाकू नहीं थे।

किन्तु कुछ स्वार्थी लोगों ने एक कपोल- कल्पित कथा घड़-कर ऋषि वाल्मीकि जी को डाकू कहकर प्रचारित किया है । जिससे वाल्मिकी जी रचित महाकाव्य रामायण का महत्व निम्न हो जाये। और अन्य मिलावटी राम कथाओं को प्रचारित किया जा सके। जैसा की आजकल पौराणिक कथा वाचक मोरारी बापू और रामस्नेही सम्प्रदाय के वैष्णव करते हैं।

रामायण में महर्षि वाल्मीकि जी के सम्बन्ध में एक घटना उपलब्ध होती है। जब सीताजी की पवित्रता की साक्षी देते हुए ऋषि वाल्मीकि जी ने कहा था―
प्रचेतसोऽहं दशम: पुत्रो राघवनन्दन।
मनसा कर्मणा वाचा भूतपूर्वं न किल्बिषम्।।

अर्थात् … हे राम ! मैं प्रचेतस मुनि का दसवाँ पुत्र हूँ। मैंने मन, वचन और कर्म से कभी कोई पाप का आचरण नहीं किया है। इस श्लोक में महर्षि वाल्मीकि जी स्पष्ट घोषणा करते हैं कि मैंने मन वचन कर्म से कभी कोई पाप पूर्ण आचरण नहीं किया। अगर वे ड़ाकू होते तो ऐसी घोषणा कदापि नहीं करते।

दुसरी बात यह है कि इस श्लोक के विद्यमान रहते हुए महर्षि वाल्मीकि के सम्बन्ध में यह कैसे कहा जा सकता है कि वे युवा-अवस्था में डाकू रहे होंगे। या लम्बे काल खंड में वाल्मीकि नाम का कोई दूसरा व्यक्ति हो सकता हैं। जैसा कि एक ही नाम के अनेक व्यक्तियों का होना असम्भव नहीं है। लेकिन रामायण के रचयिता आदि कवि महर्षि वाल्मीकि डाकू नहीं थे।

एक बार महर्षि वाल्मीकि अपने आश्रम में बैठे थे। घूमते हुए नारद मुनि वहां आ पहुंचे। तब वाल्मीकि ने नारद जी से पूछा? इस संसार में वीर, धर्म को जानने वाला, कृतज्ञ, सत्यवादी, सच्चरित्र, सब प्राणियों का हितकारी, विद्वान, उत्तम कार्य करने में समर्थ, सब के लिए प्रिय दर्शन वाला, जितेन्द्रिय , क्रोध को जीतने वाला, तेजस्वी, ईष्र्या न करने वाला, युद्ध में क्रोध आने पर देव भी जिससे भयभीत हों ऐसा श्रेष्ठ मनुष्य कौन है? यह जानने की मुझे उत्सुकता है। तब नारद मुनि ने ऐसे बहुत से दुर्लभ गुणों वाले महाराजा दशरथ पुत्र श्री श्रीराम का वृत्तान्त सुनाया और कहा कि इन सभी गुणों से सम्पन्न व्यक्ति श्रीराम ही हैं।

इसी कालखंड में एक घटना घटी जिसने ऋषि हृदय द्रवित हुआ और वे महामानव मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के उज्जवल चरित्र पर रामायण जैसा विश्व का सर्वोत्तम महाकाव्य रामायण लिखने हेतु प्रेरित हुए।

मा निषाद प्रतिषठां त्वमगम: शाश्वती: समा:।
यत् क्रौंचमिथुननादेकमवधी: काम मोहितम्।।

बालकाण्ड, सर्ग २ श्लोक १४।

अर्थात् हे! निषाद (शिकारी) तुमको जीवन में कभी शान्ति नहीं मिलेगी क्यों कि मैथुन रत क्रौंच के काम मोहि जोड़े में से एक पक्षी की तुने हत्या कर दी है। रामायण में सीता हरण का प्रसंग इसी से प्रेरित प्रतित होता है।

ऋषिवर वाल्मीकि जी ने रामायण में महामानव भगवान श्रीराम का वर्णन इस प्रकार किया है। श्री राम सुन्दर शरीर, बल, न्यायिक कौशल, मातृ पितृ आज्ञापालन- आदर्श भ्रातृ प्रेम, पति पत्नी के प्रति प्रेम, और कर्तव्य की भावना सभी प्रेरक हैं, इसलिए श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम तथा विग्रह वान धर्म के मूर्तरूप कहे गये है।

जब महाराजा दशरथ ने श्री राम को युवराज बनाने का अपना विचार सारी सभा के सामने रखा। तब सभा ने इस प्रस्ताव का स्वीकार करते हुए श्री राम के गुणों का वर्णन इस प्रकार किया- प्रजा को सुख देने में श्री राम चन्द्रमा की तरह हैं। वे धर्म पालक, सत्यवादी, शांत स्वभाव, ईष्र्या से रहित, दुखियों के दुख दूर करने वाले, मधुर भाषी, कृतज्ञ, और जितेन्द्रिय हैं। मनुष्यों पर कोई आपत्ति आने पर वे स्वयं दुःखी होते हैं और उत्सव के समय पिता की भांति प्रसन्न होते हैं। उनका क्रोध और प्रसन्नता कभी व्यर्थ नहीं होती। वे मारने योग्य को मारते हैं और निर्दोषों पर कभी क्रोध नहीं करते।

 

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