ArticleReligious

पेशवाई: नागा साधुओं की वीरता और धर्मरक्षा की अलौकिक परंपरा

प्रयागराज। भारत की सनातन संस्कृति में कुंभ पर्व का विशेष महत्व है। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होने वाला यह पर्व न केवल आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है, बल्कि धर्मरक्षा और संस्कृति के संरक्षण का भी इतिहास समेटे हुए है। कुंभ के दौरान निकाली जाने वाली ‘पेशवाई’ नागा साधुओं की इसी अद्वितीय परंपरा की स्मृति है। यह शोभायात्रा उन साधुओं के पराक्रम और त्याग को सम्मानित करती है, जिन्होंने मुगलों और विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध युद्ध छेड़कर धर्म और संस्कृति की रक्षा की।

पेशवाई का ऐतिहासिक महत्व

पेशवाई का प्रारंभ मुगल शासक जहांगीर के अत्याचारों के खिलाफ नागा साधुओं के पराक्रम से जुड़ा हुआ है। 1605 में जहांगीर ने प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) का शासक बनते ही सनातन धर्म के प्रति विद्वेषपूर्ण नीतियां लागू कीं। उसने अक्षय वट को बार-बार नष्ट करने और कुंभ पर्व को खंडित करने के प्रयास किए। साधु-संतों के कुंभ में एकत्र होने पर प्रतिबंध लगाकर उनके समूहों पर आक्रमण करना उसकी रणनीति थी।

एक बार जहांगीर की सेना ने कुंभ में जा रहे 60 साधुओं की हत्या कर दी। यह समाचार सुनकर नागा साधु आक्रोशित हो उठे। उन्होंने संगठित होकर प्रयागराज की ओर कूच किया। कौशांबी में जहांगीर की सेना ने साधुओं को रोकने का प्रयास किया, लेकिन नागा साधुओं ने 15 दिन तक चले इस घमासान युद्ध में मुगल सेना को परास्त कर कुंभक्षेत्र में विजय के साथ प्रवेश किया।

पेशवाओं के राजकाल में इस वीरता के सम्मान में नागा साधुओं की भव्य शोभायात्रा निकाली गई। यहीं से पेशवाई की परंपरा आरंभ हुई, जो आज कुंभ पर्व का एक अभिन्न और भव्य आयोजन है।

शोभायात्रा का स्वरूप

पेशवाई में हर अखाड़े की अपनी विशिष्टता झलकती है। यह शोभायात्रा अखाड़े के इष्टदेवता की पालकी से प्रारंभ होती है। इष्टदेवता की पालकी के पीछे अखाड़े का निशान (ध्वज) होता है, जो अखाड़े की पहचान और गौरव का प्रतीक है। इसके बाद अखाड़ों के महामंडलेश्वर और अन्य संत भव्य रथों पर विराजमान होते हैं।

शोभायात्रा का मुख्य आकर्षण नागा साधु होते हैं। वे परंपरागत हथियार जैसे तलवार, भाला, त्रिशूल आदि लेकर अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते हैं। यह प्रदर्शन इस बात का प्रतीक है कि यह राजसिक वैभव साधुओं को भिक्षा में नहीं मिला, बल्कि अपने पुरुषार्थ और पराक्रम के बल पर उन्होंने इसे अर्जित किया है।

नागा साधुओं की वीरता के अन्य उदाहरण

नागा साधुओं का पराक्रम केवल जहांगीर तक सीमित नहीं रहा। 1664 में जब औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण किया, तब नागा साधुओं ने हथियार उठाकर उसकी सेना को खदेड़ दिया। इसी प्रकार, 1757 में जब अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली ने मथुरा पर आक्रमण किया, तब नागा साधुओं ने अफगान सेना का डटकर सामना किया और उसे पराजित किया। इस युद्ध में दो हजार नागा साधु शहीद हुए, लेकिन उन्होंने धर्म की रक्षा के अपने संकल्प को निभाया।

आज की पेशवाई

आज की पेशवाई अतीत के उन गौरवशाली क्षणों की स्मृति है। इसमें घोड़े, बग्गी, हाथी, पारंपरिक वाद्य, और राजसी छत्रियों का भव्य प्रदर्शन होता है। नागा साधुओं के शौर्य और त्याग को देखकर हर सनातनी गौरव से भर उठता है।

पेशवाई केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और साहस की एक जीवंत कहानी है। नागा साधुओं की वीरता, त्याग और धर्मरक्षा के प्रति समर्पण हर भारतीय को प्रेरित करता है। कुंभ पर्व के दौरान निकाली जाने वाली यह शोभायात्रा न केवल इतिहास का सजीव चित्रण है, बल्कि वर्तमान पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत भी है। हर सनातनी को इस अद्वितीय परंपरा का अनुभव अवश्य करना चाहिए।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button