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महाकुंभ में स्वामी अवधेशानंद ने सुनाई श्रीमद्भागवत कथाः कहा- प्रथम साधन है श्रवण, महाकुंभ और कथा की महत्ता पर दिया जोर

जेठमल राठौड़
रिपोर्टर

जेठमल राठौड़, रिपोर्टर - मुंबई / बाली 

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प्रयागराज।  महाकुंभ में अन्नपूर्णा मार्ग सेक्टर-18 में आज सोमवार को पहले दिन श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के प्रमुख जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि महाराज ने श्रीमदभागवत कथा सुनाई।

कथा के प्रथम दिवस उपस्थित श्रद्धालुओं को कथा श्रवण कराते हुए स्वामी अवधेशानंद ने कहा मनुष्य में अज्ञान के कारण ही वह इदम (यह) और अहम (मैं) का भास रहता है। निरंतर द्वैत की स्थिति बनी रहती है। यह भागवत कथा उसी अज्ञान का भंजन करती है, जिसके श्रवण मात्र से उस एक परम तत्व का साक्षात्कार होता है।

कथा सुनने से एकात्मकता का अनुभव

उन्होंने कहा कि इस दिव्य कथा की फल श्रुति वही अद्वैत है जो समस्त प्रकार के भ्रम, भय, संशय का निवारण कर हमें एकात्मकता के अनुभव करती है। भगवान का साकार रूप संत ही हैं। देव और पितरों का आशीर्वाद, मनुष्य के पुण्य कर्म जब फलित होते हैं, तब ही जीवन में संत अथवा गुरु का आगमन होता है। कथा के प्रथम स्कंध में प्रवेश करते हुए गुरुदेव ने कहा कि प्रणाम, लोकाचार, शिष्टाचार और सदाचार की प्रथम अभिव्यक्ति है, इसलिए आओ सब मिलकर गुरु को प्रणाम करें।

सत्संग का महत्व परिभाषित करते हुए कहा कि सत्संगत्वे निस्संगत्वं, निस्संगत्वे निर्मोहत्वं। निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः ।।

सत्संग से वैराग्य, वैराग्य से विवेक, विवेक से स्थिर तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति अथवा जीवन की मुक्ति होती है।

एक साधक के लिए आध्यत्मिक गलियारे में प्रथम साधन श्रवण है। सर्वप्रथम हमें श्रोत्रिय ब्रम्हानिष्ठ सदपुरुषों को सुनना आना चाहिए। मानव देह प्राप्त होना भगवदीय अनुग्रह ही है, उस के बाद यदि आप मुमुक्षु हैं और आप को कृपा से गुरु का सानिध्य प्राप्त है तो निःसंदेह आप का कल्याण निश्चित है।

गुरु अनुग्रह से मिला ज्ञान महत्वपूर्ण : शरणानंद महाराज

कथा का शुभारंभ काष्र्णिपीठाधीश्वर गुरु शरणानंद जी महाराज ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। कथा की भूमिका के रूप में अपने उद्बोधन के माध्यम से उन्होंने सभी के लिए मंगलकामना और शुभेच्छा की अभिव्यक्ति की तथा तत्वज्ञान का परिचय कराते हुए कहा कि ज्ञाता ज्ञान और ज्ञेय के त्रिपुटी का लय हो जाता है। जिस प्रकार लवण का एक कण सागर में घुल कर सागर ही बन जाता है उसी प्रकार गुरु अनुग्रह से जब ज्ञान प्राप्त होता है तो फिर ज्ञाता ज्ञान और ज्ञेय सब एक ही हो जाता है।

इस अवसर पर प्रभु प्रेमी संघ की अध्यक्षा महामंडलेश्वर स्वामी नैसर्गिका गिरि, कथा यजमान किशोर काया, न्यासीगण विवेक ठाकुर, महेंद्र लाहौरिया, प्रवीण नरुला, रोहित माथुर, सुरेंद्र सर्राफ, मालिनी दोषी, सांवरमल तुलस्यान, देवेष त्रिवेदी सहित बड़ी संख्या में प्रभु प्रेमी गण उपस्थित रहे।

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