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वियतनाम की पारंपरिक चिकित्सा और सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन कर लौटे वैद्य हंसराज चैधरी और लेखक भंवर मेघवंशी

आठ दिवसीय अध्ययन यात्रा में कई स्थानों पर किया अध्ययन


मूलचंद पेसवानी
जिला संवाददाता

मूलचंद पेसवानी वरिष्ठ पत्रकार, जिला संवाददाता - शाहपुरा / भीलवाड़ा 
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  • शाहपुरा-मूलचन्द पेसवानी। श्री नवग्रह आश्रम मोतीबोर का खेड़ा के संस्थापक अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध रंगकर्मी वैद्य हंसराज चैधरी तथा लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी वियतनाम की आठ दिवसीय शैक्षणिक और सामाजिक यात्रा पूरी कर गुरूवार को भारत लौट आए। दोनों प्रतिनिधियों ने वियतनाम की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों, सामाजिक जीवनशैली तथा बौद्ध संस्कृति का गहन अध्ययन किया।

वैद्य हंसराज चैधरी ने बताया कि वियतनाम की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति अत्यंत समृद्ध और वैज्ञानिक है। “हमने हनोई के ग्रामीण क्षेत्रों में प्राकृतिक चिकित्सा की विधियाँ देखीं और डानांग में प्राचीन काय चिकित्सा के प्रयोगों को स्वयं अनुभव किया। इसके साथ ही, हमने हो ची मिन्ह सिटी स्थित ‘इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रेडिशनल मेडिसन’ में शोधकर्ताओं से संवाद कर उनकी पारंपरिक जड़ी-बूटी चिकित्सा प्रणाली को समझा,” चैधरी ने कहा। उन्होंने यह भी बताया कि वियतनाम के मेकोंग डेल्टा के घने जंगलों में की जाने वाली सर्प चिकित्सा देखने का भी अवसर मिला। वैद्य चैधरी के अनुसार, वियतनामी लोग शारीरिक रूप से स्वस्थ और चुस्त होते हैं, जिसका श्रेय उनके संतुलित आहार विशेष रूप से समुद्री भोजन और वनस्पति पर आधारित भोजन को जाता है।

लेखक भंवर मेघवंशी ने बताया कि यह यात्रा उनके बौद्ध देशों की सामाजिक, आध्यात्मिक और चिकित्सा प्रणालियों के अध्ययन का हिस्सा है। उन्होंने कहा, “हम तिब्बत, भूटान और नेपाल में प्रचलित सोवा रिग्पा जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का अध्ययन पहले ही कर चुके हैं। अब वियतनाम की चिकित्सा प्रणाली और सामाजिक ढाँचे ने हमारे ज्ञान को और समृद्ध किया है।”

इस अध्ययन यात्रा के दौरान दोनों प्रतिनिधियों ने वियतनाम के एकीकरण की 50वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में आयोजित स्वर्ण जयंती समारोह में भी भाग लिया। उन्होंने हनोई में स्थित महान नेता और वियतनाम के मुक्तिदाता हो ची मिन्ह की समाधि पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने बताया कि वियतनामी नागरिकों ने अपने प्रिय नेता की देह को संरक्षित कर आज भी सुरक्षित रखा हुआ है।

भंवर मेघवंशी ने बताया कि वियतनाम वास्तव में एक फीनिक्स पक्षी की तरह राख से उठ खड़ा हुआ देश है। “एक हजार वर्षों तक चीन की गुलामी, दशकों तक फ्रांसीसी और जापानी अत्याचारों के बाद, उसने 21 वर्षों तक अमेरिका जैसी महाशक्ति से संघर्ष किया और लाखों नागरिकों की शहादत के बावजूद हार नहीं मानी,” उन्होंने बताया। “आज भी देशभक्ति का वही ज्वार वियतनामी नागरिकों में स्पष्ट झलकता है। यह हम भारतीयों के लिए प्रेरणा लेने योग्य उदाहरण है।”

वियतनाम की सामाजिक संरचना पर चर्चा करते हुए वैद्य हंसराज चोधरी कहा कि यह एक समाजवादी गणराज्य है, जहाँ कम्युनिस्ट शासन होते हुए भी धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता दिखाई देती है। “बौद्ध विहार, ताओ मंदिर, चर्च, हिंदू मंदिर और मस्जिदें यहाँ सहज रूप से साथ दिखाई देती हैं। धर्म या जाति के नाम पर कोई तनाव नहीं है। नागरिक अत्यंत विनम्र, अनुशासित और मेहनती हैं,” मेघवंशी ने बताया।

उन्होंने कहा कि वियतनाम पर्यटन और मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है और उसकी ग्रामीण जीवनशैली, खाद्य प्रणाली, एवं सामाजिक ढाँचा भारत जैसे देशों के लिए अनुकरणीय है। दोनों प्रतिनिधियों ने यह भी कहा कि आयुर्वेद और वियतनामी पारंपरिक चिकित्सा में कई समानताएँ हैं, जिनका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अध्ययन और उपयोग किया जा सकता है।

भीलवाड़ा जिले के इन दोनों विद्वानों की यह यात्रा न केवल चिकित्सा पद्धतियों के आदान-प्रदान का अवसर बनी, बल्कि एशिया की सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को समझने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई।

मूलचन्द पेसवानी शाहपुरा

जिला संवाददाता, शाहपुरा/भीलवाड़ा

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