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विश्वकर्मा पूजा दिवस पर विशेष लेख

विश्वकर्मा पूजा दिवस का महत्व और तिथि


Ghevarchand Aarya
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Ghevarchand Aarya is a Author in Luniya Times News Media Website.

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विश्वकर्मा पूजा दिवस, 17 सितम्बर को मनाया जाता है, लेकिन यह जयन्ति नहीं है। इसका महत्व धार्मिक और सामाजिक उन्नति से जुड़ा हुआ है। भारत में कई महापुरुषों की जयंती मनाने की परंपरा है, जैसे राम नवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, और सीता अष्टमी। इन सभी तिथियों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। उसी तरह, विश्वकर्मा पूजा दिवस का आयोजन भी भारतीय संस्कृति का एक अहम हिस्सा है।

विश्वकर्मा पूजा का आयोजन विशेष रूप से शिल्पाचार्य विश्वकर्मा के जन्म या उनके कार्यों के स्मरण के रूप में किया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से मध्य भारत, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है, लेकिन इसका प्रचलन दक्षिणी भारत, बिहार, बंगाल और आसाम जैसे क्षेत्रों में भी है।

विश्वकर्मा जयंती और तिथियाँ

कई स्थानों पर विश्वकर्मा पूजा विभिन्न तिथियों पर मनाई जाती है। जैसे:

  • कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा: पंजाब और कुछ अन्य प्रदेशों में यह तिथि मनाई जाती है।

  • आश्विन मास में कन्या राशि की संक्रान्ति: यह तिथि बिहार, बंगाल और आसाम में प्रमुखता से मनाई जाती है।

  • माघ शुक्ला त्रयोदशी: यह तिथि उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश और दक्षिण भारत में प्रमुख रूप से मनाई जाती है।

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क्या 17 सितम्बर को विश्वकर्मा की जन्मतिथि है?

17 सितम्बर को विश्वकर्मा की जयंती के बारे में ऐतिहासिक प्रमाण अस्पष्ट हैं। “निर्णय सागर पंचांग” में इसे विश्वकर्मा पूजा दिवस के रूप में उल्लिखित किया गया है, लेकिन इस तिथि को विश्वकर्मा के जन्म के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। दरअसल, 17 सितम्बर का सम्बन्ध अंग्रेजी कैलेंडर से है, जो ईसा मसीह के जन्म से संबंधित है, जबकि विश्वकर्मा का जन्म सृष्टि की उत्पत्ति के बहुत बाद हुआ था।

सम्पूर्ण भारत में प्रचलित तिथियों का अध्ययन करने पर यह प्रमाण मिलता है कि माघ शुक्ला त्रयोदशी को ही विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। इसे पं. जयकृष्ण मणीठिया द्वारा लिखित विश्वकर्मा महापुराण में भी उद्धृत किया गया है। इस दिन को लोक कल्याण के लिए विश्वकर्मा देवता ने अपने कार्यों की शुरुआत की थी।

विश्वकर्मा पूजा का विधि-विधान

विश्वकर्मा पूजा दिवस पर विशेष रूप से शिल्पकारों, भवन निर्माण कार्यकर्ताओं और इंजीनियरों द्वारा पूजा की जाती है। इस दिन, औजारों की सफाई, पूजा और विशेष रूप से विश्वकर्मा से आशीर्वाद प्राप्त करने का कार्य किया जाता है।

पूजा की विधि:

  1. प्रातः स्नान और शुद्धता:
    पूजा से पहले स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद गायत्री मंत्र का जाप करें और बुद्धि की प्रार्थना करें।

  2. हवन और यज्ञ:
    अग्निहोत्र (हवन) करने के बाद, सृष्टि के रचनाकार के रूप में विराट विश्वकर्मा के लिए प्रार्थना करें।

  3. औजारों की पूजा:
    औजारों की सफाई करें और उन्हें पूजा सामग्री से सजाएं। विश्वकर्मा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इन औजारों को उनके समक्ष रखें।

  4. स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना:
    पूजा के बाद स्वास्तिक वाचन या शान्तिकरण मंत्रों का गान करें, ताकि सबके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आए।

किस प्रकार मनाएं विश्वकर्मा पूजा दिवस?

  1. अंग स्पर्श और मार्जन मंत्रों का उच्चारण:
    पूजा के दौरान अंग स्पर्श करें और बल प्राप्ति के लिए मंत्रों का उच्चारण करें।

  2. ज्ञान और श्रम के प्रति आस्था:
    जैसे कि श्री विश्वकर्मा के शिल्प शास्त्र (अर्थवेद) का स्वाध्याय करना और समाज में इसके प्रचार-प्रसार के लिए कार्य करना महत्वपूर्ण है।

  3. आध्यात्मिक साधना:
    पूजा के दौरान ओंकार का जाप करें और मन को शांत करके ध्यान में लगें।

विश्वकर्मा पूजा दिवस का ऐतिहासिक संदर्भ

विश्वकर्मा पूजा का इतिहास भी बहुत गहरा और समृद्ध है। विशेषकर हावड़ा ब्रिज के निर्माण में अंगिरा वंशज शिल्पकार का महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने उस ब्रिज के निर्माण की विधि और तकनीकी जानकारियों को बहुत ही गहरे तरीके से सीखा और उसे छुपाकर रखा। यह एक उदाहरण है कि कैसे शिल्पकारों और इंजीनियरों के योगदान का सही मूल्यांकन नहीं किया गया, और उनके कार्यों को उनके नाम के बिना ही श्रेय दिया गया।

विश्वकर्मा पूजा दिवस केवल एक धार्मिक अवसर नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है, जो शिल्प, विज्ञान और निर्माण के क्षेत्र में योगदान करने वाले लोगों की मान्यता को बढ़ावा देता है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि हम अपनी मेहनत, कला और श्रम से समाज में कैसे योगदान कर सकते हैं।

न्यूज़ डेस्क

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