सम्यग् ज्ञान की महिमा – जैनाचार्यश्री का प्रेरक प्रवचन

- चित्रकूट नगर (उदयपुर)
जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वरजी म. सा. की शुभ निश्रा में श्री महावीर विद्यालय – चित्रकूट नगर में भद्रंकर परिवार द्वारा आयोजित सामूहिक उपधान तप बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ चल रहा है।
धर्मसभा में प्रवचन देते हुए आचार्यश्री ने सम्यग् ज्ञान की महिमा का सुंदर वर्णन करते हुए कहा—
“जितना बड़ा प्लॉट होता है, उतना चौड़ा मकान नहीं होता; मकान के चारों ओर खाली स्थान आवश्यक होता है।
- जितना बड़ा मकान होता है, उतना बड़ा दरवाजा नहीं होता।
- जितना बड़ा दरवाजा होता है, उतना बड़ा ताला नहीं होता।
- और जितना बड़ा ताला होता है, उतनी बड़ी चाबी नहीं होती।
- एक छोटी सी चाबी विशाल महल के द्वार खोल सकती है।
- वैसे ही प्रभु के मुखारविंद से निकली त्रिपदी वह ‘चाबी’ है जो गणधर भगवंतों के भीतर श्रुत के अपार खजाने को खोल देती है।”
आचार्यश्री ने आगे कहा कि जिस प्रकार डॉक्टर, पायलट या हथियार रखने वाले व्यक्ति को अपनी-अपनी योग्यता के अनुरूप डिग्री या लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक होता है, वैसे ही जिनागमों का अध्ययन भी केवल योग्य साधु भगवंतों द्वारा ही किया जा सकता है।
“जिनागम आचार्यों की अमूल्य पेटी हैं—इन्हें ‘गणि पिटक’ कहा गया है। जब किसी साधु में योग्यता विकसित होती है, तब गुरु-आचार्य उन्हें सूत्रों के योगोद्वहन का अधिकार प्रदान करते हैं,”
आचार्यश्री ने समझाया


उन्होंने कहा कि आग यदि योग्य व्यक्ति के हाथ में है तो रसोई बनती है, अन्यथा वही आग विनाश का कारण बन जाती है। उसी प्रकार शास्त्र भी योग्य व्यक्ति के लिए कल्याणकारी और अयोग्य के लिए अहितकारी सिद्ध हो सकते हैं।
इस अवसर पर उपधान तप स्वर्ण स्तंभ सहयोगी कांताबेन मगराज जी कंकू चोपड़ा (हस्ते सुनीता बेन निलेश जी जैन, मलाड) का सम्मान किया गया।
सभा के अंत में घोषणा की गई कि आगामी वर्ष 2026 का वर्षावास चातुर्मास जयोत्सव पिंडवाड़ा संघ की विनती पर स्वीकार किया जाएगा।













