महंत योगी रामनाथ अवधूत ने सुनाए 1990 की कारसेवा के प्रेरक प्रसंग
नोहर हनुमानगढ़ भारत माता आश्रम के महंत योगी रामनाथ अवधूत ने 1990 की कारसेवा के हृदयस्पर्शी प्रेरक प्रसंग साझा किए जिन्होंने समाज पर अमिट प्रभाव छोड़ा। समर्पित व्यक्तियों का एक समूह कारसेवक, जो वास्तविक जुनून और राष्ट्र धर्म के प्रति कर्तव्य की भावना से प्रेरित होकर नोहर से महंत योगी जी के साथ निकल पड़ा था है.
महंत योगी रामनाथ अवधूत ने कार सेवा की कुछ दिल को छू लेने वाली कहानियाँ साझा कीं जो आज भी प्रामाणिकता के साथ गूंजती हैं।
1990 की कारसेवा में गए कारसेवकों के जत्थे का नेतृत्व करने वाले महंत योगी रामनाथ अवधूत (उस समय – रामनिवास स्वामी) ने बताया कि नोहर से हम सब कार सेवकों का जत्था 25 अक्टूबर 1990 को श्री गंगानगर दिल्ली ट्रेन से रात्रि 9:00 बजे रवाना हुआ और आगे चलकर के जब हम भादरा पहुंचे तो हजारों की संख्या में वहां के नागरिकों ने हमारा अभिनंदन किया एवं सबको चांदी का एक-एक मेडल एवं मिठाई प्रदान कर भादरा के भी 11 कार सेवक हमारे साथ में इस ट्रेन में रवाना हो गए। सुबह 5:00 बजे हम सब दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरे और वहां से हम सभी 12:00 बजे श्रमजीवी एक्सप्रेस से लखनऊ के लिए रवाना हुए। गाजियाबाद से कुछ ही किलोमीटर चले की कुचेसर रोड रेलवे स्टेशन पर हमारी गाड़ी को रोक दिया गया। वहां चारों ओर सैकड़ो पुलिस के जवान एवम उच्च अधिकारियों ने सभी को गाड़ी से उतार दिया। अजमेर के पूर्व विधायक रतनलाल वर्मा को भी हमारे साथ गिरफ्तार कर लिया गया था। हमें हापुड़ से गाजियाबाद पुलिस लाइन ले जाया गया जहां हमें हरियाणा के पूर्व कैबिनेट मंत्री रामविलास शर्मा मिले और हमें बताया कि हम भी उनके साथ बुलंदशहर भेजे जायेंगे।
कारसेवकों गिरफ्तार कर अस्थाई जेल में डाला
महंत योगी जी ने बताया कि गाज़ियाबाद के समाजसेवी लोग अग्रवाल समाज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल के लोगों ने हम सबको फल एवं भोजन इत्यादि लाकर दिए। हमें 26 अक्टूबर को रात्रि 10:00 बजे सरकारी पुलिस बस से बुलन्दशहर छोड़ा गया जहां किसी तरह की कोई व्यवस्था नहीं थी। वहां बुलंदशहर में डी ए वी ग्रेजुएट कॉलेज के अंदर अस्थाई जेल बना रखी थी, जिसमे हम सबको ले जाकर रखा गया था। हम सब कारसेवक उस अस्थाई जेल में पहुंचे तो देखा कि कई प्रांतों से कारसेवा करने पहुंचे कारसेवक पहले से वहा पर गिरफ्तार कर रखे हुए थे। हम सब कारसेवकों को भी वहां रखा। अगले दिन जेल में व्यवस्था बनाने के लिए सभी कारसेवकों ने मिलकर एक समिति बनाई, जिसके अध्यक्ष प्रोफेसर रामविलास शर्मा को बनाया गया और समिति का यह प्रस्ताव जसवंत सिंह आर्य ने रखा, उसके बाद मौजूद सभी कारसेवकों की सहमति से प्रत्येक जत्थे से दो-दो प्रतिनिधि चुने गए और व्यवस्था को सुधारा गया। 28 अक्टूबर को नोहर जत्थे के रामनिवास स्वामी और सुभाष बंसल ने मिलकर वहां यज्ञ का कार्यक्रम आयोजित करवाया। 29 अक्टूबर को सभी कारसेवकों ने सरकार द्वारा उचित व्यवस्था नहीं मिलने के कारण एकदिवसीय उपवास रखा। उस अस्थाई तौर पर बनाई गई जेल में करीब 1500 कारसेवक को ठहराया गया था।
- अद्भुत संयोग रहा की बुलंदशहर की रामभक्त जनता वहा की प्रशासनिक व्यवस्था में लगे पुलिस जवानों से बचते बचाते हमे सहयोग करते हुए भोजन एवं मूलभूत आवश्यकताओं का प्रबंध करते रहे थे।
महंत योगी रामनाथ अवधूत बताते हैं कि जेल में ढोलक डफली कुछ कारसेवकों के पास होने पर, वही सभी कारसेवको ने राम भजन कीर्तन शुरू कर दिए। उस समय जेल में कई भजन मंडली के लोग भी मौजूद थे जिससे भजनों का सुर संगम गहराता गया। भजन मंडली में हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र सहित कई प्रांत के कारसेवक उपस्थित थे।महंत योगी जी ने कहा की हमारे साथ में जसवंत सिंह आर्य नित्य शाम को आकाशवाणी पर बीबीसी समाचार सुनते थे, कहां क्या हुआ अयोध्या में क्या हुआ, इसका सीधा प्रसारण कारसेवकों को सुनने के लिए मिल जाता था। वही उन्होंने बताया कि बुलंदशहर की जनता का रामभक्तो पर विशेष स्नेह रहा, वहां के लोगों ने हमारी कई तरह की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहे थे।
रामजन्मभूमि क्षेत्र में नरसंहार के बाद छाया शोक
“30 अक्टूबर 1990 को पूरे विश्व का ध्यान भारत के प्राचीन नगरी अयोध्या पर था। राष्ट्र के प्रत्येक हिंदू का मन अयोध्या की घटना के सटीक समाचार प्राप्त करने के लिए द्रवित हो उठा था। देश के प्रत्येक रामभक्त अयोध्या कार सेवा करने गए कारसेवकों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना कर रहे थे। कई रामभक्त कारसेवक वहां के पुलिस प्रशासन को चकमा देते एवं चप्पे पर तैनात पुलिस जवानों से छुपते छुपाते हुए आखिरकार राम मंदिर विवादित स्थान बाबरी मस्जिद विध्वंस कर राम मंदिर राम जन्मभूमि पर भगवा पताका फहरा दिया।
एक तरफ सभी रामभक्त खुशी से झूम उठे तो वही दूसरी ओर पूरे देश को उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सरकार द्धारा दिए गए असीमित दर्द को झेलने पड़े। मुलायम सरकार ने सैकड़ो कारसेवकों को गोलियों से मरवा दिया था। वहा की मुलायम सरकार ने कारसेवा करने आए रामभक्तो का नरसंहार करवाया। देश के कोने कोने से आए सैकड़ों रामभक्तो ने कारसेवा में स्वय को बलिदान कर दिया था।“
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महंत योगी रामनाथ अवधूत जी महाराज ने बताया कि 31 अक्टूबर 1990 को सुबह जेल का माहौल उतेजित सा लग रहा था। कारसेवकों में उदासी छाई हुई थी तो वही गुस्सा भी झलक रहा था। कुछ कार सेवकों ने सरकारी बसों पर गुस्सा उतारा। सुबह 9:00 बजे रामबाग जेल में शोक दिवस मनाया, सरकारी मनमानी के खिलाफ शोक सभा महन्त पंचम नाथ जी की अध्यक्षता में रखी गई थी। हरियाणा के पूर्व मंत्री रामविलास शर्मा ने सभा को संबोधित किया था। उस वक्त कई पूर्व विधायक भी उपस्थित थे।
महंत योगी जी ने बताया कि 1 नवंबर को तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने अपने हथियार डाल दिए और कारसेवकों की रिहाई की घोषणा कर दी और हमें 7:00 बजे शाम को छोड़ा गया और इस समय हम सब बुलंदशहर रेलवे स्टेशन पर आ गए। हम सभी कारसेवको ने तय किया की एक बार रामजन्मभूमि के दर्शन करके ही नोहर लोटेंगे। और फिर बुलंदशहर स्टेशन से कानपुर के लिए रवाना हुए। कानपुर से अवध एक्सप्रेस में बैठकर हम अगले दिन 2 नवंबर को लखनऊ पहुंचे। लखनऊ से शाम को रेलगाड़ी होने के चलते हम दिनभर इधर-उधर भ्रमण करने के बाद में शाम 5:00 बजे लखनऊ से बीटी एक्सप्रेस में बैठकर रवाना हुए। गोरखपुर में हम गाड़ी की छत पर सैकड़ो कारसेवकों के साथ में गोंडा तक पहुंचे थे कि वहां किसी ने रेलगाड़ी की पुलिंग चैन खींच कर गाड़ी रुकवा दी।
हम सब वहीं उतर गए, हम कारसेवक मारवाड़ी धर्मशाला गोंडा में रात रुके, वहां के लोगों ने हमें सब प्रकार से सहयोग किया। हमारे भोजन की व्यवस्था की और हम सबके लिए ठहरने की उचित व्यवस्था की और उसके बाद मनकापुर में पुलिस की नाकाबंदी के कारण जुलाई बस स्टैंड के खेतों से रास्ता होते हुए जुलाई के अनिल तिवारी, विनोद, गोपीचंद सोनी, महेंद्र सिंह, ठाकुर विश्व सिंह, चंद्र प्रकाश तिवारी ने हमें मार्गदर्शन किया और 10 किलोमीटर तक हमारे साथ में खेतों में से होते हुए रास्ता बताते हुए अगले गांव तक ले गए जुलाई से महावापुर के लालू पुरवा गांव के रामेश्वर लाल श्रीवास्तव के घर जलपान किया और वहां से खेतों में होते हुए आगे इस प्रकार से एक गांव से दूसरे गांव होते हुए हम सब कारसेवक हरी कीर्तन करते हुए कहीं रात्रि रुकते और सुबह वहां से रवाना होते और अगले गांव पहुंचते। इस तरह 65 किलोमीटर पैदल यात्रा करते-करते हम अयोध्या के शरीर तट पर पांच और छह नंबर के बीच में पहुंच गए और वहां देखा कि आगे पुल से जाने के लिए पुलिस के अधिकारी इजाजत नहीं दे रहे थे चारों ओर पुलिस के जवान तैनात थे।
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उन्होंने आगे बताया कि आखिर महेशपुर गांव के ही हमारे सहयोगी नाविक वीरेंद्र ने हमें अपनी नाव से अयोध्या में उस पार पहुंचा कर स्फटिक शिला, वासुदेव घाट होते हुए मणिराम छावनी ले गए। वहां से संघ कार्यालय ले गए, जहां राजस्थान के कारसेवकों के लिए व्यवस्था की गई थी। संघ कार्यालय से हम दिगंबर अखाड़े में गए जहां ठहरने की हमारी व्यवस्था थी। हम सभी कारसेवक ऋतंभरा जी, रामचंद्र परमहंस दास जी महाराज, परमानंद जी महाराज सहित कई अनेक साधु संतों से मिले।
अगले दिन हम सब अयोध्या के उन सब धर्म स्थान को देखा उन गलियों को भी देखा, जहां बीकानेर के शहीद शरद कोठारी व राम कोठारी को गोली मारी गई और दूसरे राम भक्तों पर जहां से गोलियां चलाई गई उन स्थानों को भी दूर से देखने का अवसर मिला जहां पर शिलान्यास हुआ। अत्याचारी मुलायम सिंह की पुलिस हर स्थान पर तैनात थी। किसी भी राम भक्त को राम जन्मभूमि के निकट नहीं आने दे रहे थे, फिर भी हम सब लोग इस प्रकार से और दर्शन करते हुए और 7 नवंबर 1990 को अयोध्या से लखनऊ मुरादाबाद ट्रेन से रवाना हुए रात्रि 8:00 बजे हम सब कारसेवक दिल्ली पहुंचे यहां एक दिन दिल्ली में झंडे वाला संघ कार्यालय केशव भवन में हम लोगों ने विश्राम किया और 9 नवंबर 1990 को सुबह 9:00 बजे वापिस नोहर पहुंचे।
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कारसेवा कर नोहर लौटने पर हुआ सम्मान
महंत योगी रामनाथ अवधूत बताते हैं की हमारे अयोध्या से नोहर लौटने पर सैंकड़ों की संख्या में नोहरवासियो ने हमारा स्वागत किया। यह हमारी 15 दिवस की अविस्मरणीय कारसेवा यात्रा भगवान राम जी की प्रेरणा से बहुत ही सफल रही। इस प्रकार से हमारे सभी कार सेवक बंधु सिर पर कफन बांध कर यह सोच कर गए थे की वापिस जिंदा आये या ना भी आये पर प्रभु राम की कृपा से सभी सकुशल अपने अपने स्थान पहुँच गए।
नोहर से यह रहे थे 1990 की कारसेवा में
अक्टूबर 1990 में जो कार सेवा हुई उसमें नोहर से महंत पंचम नाथ जी महाराज डेरा जोगियासन, महंत योगी रामनाथ अवधूत (तब – रामनिवास स्वामी) , बाबूलाल भारती, एडवोकेट जसवंत सिंह आर्य, सुभाष बंसल, ओंकार मल मोची, ठाकुरदास सिंधी, अजय सरिया, पुरुषोत्तम मिश्रा, पुरुषोत्तम दायमा, विद्याधर शर्मा, ओम सारस्वत ड्राइवर, भैराराम पूनिया भगवानसर, चंद्र सिंह भगवानसर, पतराम पूनिया भगवानसर, दल्लू राम पूनिया भगवान सर, रामेश्वर लाल कसवा ढंढेला, धर्मपाल आर्य फेफना, जयनारायण आर्य मलवानी, अमर सिंह मेघवाल जबरासर, इंद्राज सहारण जबरासर, रामेश्वर लाल साहरण जोखासर, शीशपाल सहारन जोखासर, कृष्ण कुमार कुम्हार मंदरपुरा आदि कारसेवा के लिए नोहर जत्थे में शामिल हुए थे।
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