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भक्तों की भावनाओं से खिलवाड़ कब तकरू बाबा वायरस से सावधान रहने की जरूरत

रिपोर्ट—कवि दिनेश शर्मा ‘बंटी’

शाहपुरा– हमारे देश में प्राचीन काल से ही मठ, गुरुकुल और आश्रम जैसी संस्थाओं का एक मजबूत संगठन रहा है, जहां से हमारे पूजनीय संत दीक्षा ग्रहण करते हैं और सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करते हैं। इन संतों में मेरी अटूट आस्था है। लेकिन इन फर्जी बाबाओं के कारण मुझे यह लेख लिखने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिनके चक्कर में फंस कर लाखों अंधभक्त इन बाबाओं को भगवान समझने लगते हैं। इनकी टीआरपी इतनी जल्दी बढ़ती है कि कोरोना वायरस की तरह तेजी से फैलने वाले इस श्बाबा वायरसश् से हमें सावधान रहने की जरूरत है।

हाल ही में उत्तर प्रदेश में एक फर्जी बाबा ने 125 लोगों को अपनी जीवन लीला समाप्त करने पर मजबूर कर दिया। फर्जी और ढोंगी बाबाओं से देश कब निजात पाएगा, इसकी कोई निश्चित सीमा नहीं है। यह तो जनसंख्या नियंत्रण वाले विज्ञापन की तरह है कि ष्पहला बाबा कब दूसरा जेल जाए तबष् एक बाबा जेल जाता है, उतने में कोई दूसरा अवतरित हो जाता है।

रोना तो यह है कि ये सभी फर्जी बाबा अपने आप को भगवान का दर्जा देते आए हैं। फर्जी बाबाओं की भारत एवं विश्व में ख्याति फैलाने का श्रेय भारतीय महिलाओं को जाता है। बाबा को बाबा बनाने में उनका अतुल्य योगदान है। एक महिला दूसरी महिला को बाबा की अनुयायी बनाने में मार्केटिंग स्कीम की तरह काम करती है और बाबा को मालामाल बना देती है। बाबा अपना ही आभामंडल तैयार करते हैं, फिर बड़े-बड़े ऑडिटोरियम में समागम करते हैं, जिसमें हजारों की भीड़ होती है। बाबा के चमत्कारों का बखान करने वाले मैच फिक्सिंग की तर्ज पर चयनित 100 भक्त बाबा के स्वयं के सेवादार होते हैं और समागम में बाबा के सामने प्रश्न पूछने एवं उसका समाधान पाने वाले भी इन्हीं के सेवादार होते हैं, जिससे बाबा की टीआरपी में गजब का इजाफा होता है।

तीर में तुक्के की तरह 100 बातों में एक बात सही हो जाए तो वह व्यक्ति 1000 भक्तों को जोड़कर अपना कर्ज उतारने की कोशिश करता है। पीड़ित आदमी ऐसे कई बाबाओं के जाल में फंसता हुआ पहुंच ही जाता है। बाबा का आभामंडल इतना विशाल होता है कि बाबा के छोटे-मोटे अपराधों पर तो प्रशासन आंख मीच लेता है। आंखें मीच लेने पर इनाम में बाबा प्रसाद देते हैं, जिसे पाकर अधिकारी भी बाबा की जय-जयकार करते हैं और जनता के सामने उनसे आशीर्वाद लेकर यह दिखाने की कोशिश करते हैं कि बाबा की छवि बिल्कुल बेदाग है। फिर कोई ऐसा कांड बाबा के कर-कमलों से हो जाता है जिसके बाद बाबा को अंतरध्यान होना पड़ता है। यहां बाबा के लिए हम फरार शब्द का प्रयोग नहीं कर सकते हैं।

इन तथाकथित बाबाओं का प्रमुख कार्य कीर्तन कुचलना, मसलना, शोषण है, जिसे बाबा के अंधभक्तों को भांडाफोड़ होने के बाद ही सुनाई देता है। ठग वाले बाबाओं की संख्या हजारों में है जिन्हें युद्ध स्तर पर चिन्हित करने की आवश्यकता है। बाबा की भूल-भूलाइयों वाली गुफाएं, बाबा के हर शहर में हजारों एकड़ में फैले आश्रम, बाबा की संपत्तियां एवं चढ़ावा जिस पर कोई टैक्स नहीं लगता है, यह सब चिन्हित करना जरूरी है। बाबा के आईसीयू केयर यूनिट वाले हैंडपंप का पानी पीने से मरीज की गंभीर से गंभीर बीमारी का निदान हो जाता है। बाबा के असाध्य रोगों को भी खत्म कर देने के चैलेंज होते हैं।

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समोसा खाया? काले कुत्ते को रोटी दी? बंदर को केला खिलाओ जैसे उपाय बताने वाले बाबा को हम भगवान से भी ऊपर मानने लग जाते हैं। ऐसे कई फर्जी बाबा देश के कोने-कोने में भक्तों की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। सरकार एवं प्रशासन की अब पैनी नजर इनकी संपत्ति एवं इनकी गतिविधियों पर होना आवश्यक है, क्योंकि कृपा वहीं अटकी है।

मूलचन्द पेसवानी शाहपुरा

जिला संवाददाता, शाहपुरा/भीलवाड़ा

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