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गेहूं का आयात करने पर सरकार कर रही है विचार

किसानों और आत्मनिर्भर भारत के लिए घातक साबित हो सकता है कदम : शंकर ठक्कर

  • मुम्बई

Lalit Dave
National Correspondent

Lalit Dave, Reporter And National Correspondent - Mumbai Maharashtra

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अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं कॉन्फडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) महाराष्ट्र प्रदेश के महामंत्री शंकर ठक्कर ने बताया सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक भारत सरकार गेहूं आयात करने पर विचार कर रही है।

यह फैसला भविष्य में देश के किसानों के लिए घातक साबित हो सकता है। इसके कारण 11 राज्यों के किसानों को हो सकता है भारी आर्थिक नुकसान। इस वर्ष जलवायु परिवर्तन और प्रतिकूल प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण विश्व भर में गेहूं के उत्पादन पर बहुत प्रभाव पड़ा और सीजन में सर्वकालिक उच्च तापमान वाली गर्मी के कारण अब तक सरकारी खरीद 2 करोड़ 65 लाख टन हुई है।

प्रधानमंत्री अनाज वितरण योजना को क्रियान्वित करने के लिए लगभग 1 करोड़ 70 लाख टन की आवश्यकता है, जिसे यदि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण में परिवर्तित किया जाए तो अति गरीबों यानी बीपीएल (बिलो प्रोवर्ट लेन) को छोड़कर अन्य लोगों को लाभ दिया जा सकता है।

पिछले साल, सरकार ने ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस) में आटा मिलों, बड़ी आटा मिलों विनिर्माण इकाइयों को 90 लाख टन गेहूं जारी करके बाजार की कीमतों को नियंत्रित किया था। इस साल भी ओएमएसएस जुलाई में सरकार शुरू कर सकती है और ऐसी नीति बना सकती है कि बाजार में कीमतें न बढ़ें।

गेहूं के आयात का मतलब है “आत्मनिर्भर भारत” की बात करने वालों के लिए झटका। इतनी महँगी विदेशी मुद्रा बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है। इसके स्थान पर गेहूं पर 8. 60% तक का चौंका देने वाला कर लगाने वाले राज्यों पर लगाम लगाना जरूरी है।

गेहूं की जानी मानी कैनवस्सिंग फर्म फ्रेंडशिप ब्रोकर के देवेंद्र भाई वोरा ने बताया अगर सरकारी आंकड़े सही हैं तो 11 करोड़ टन गेहूं के उत्पादन के बाद भी किसी भी हालत में गेहूं का आयात करना उचित नहीं होगा। यह एक आत्मघाती कदम साबित हो सकता है। इसका सरकारी खजाने, किसानों, व्यापारियों और उपभोक्ताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

शंकर ठक्कर ने आगे कहा यदि प्रधानमंत्री अनाज योजना में अति गरीबों को छोड़ कर सीधे लाभ हस्तांतरण की ओर ले जाएं तो भ्रष्टाचार पूरी तरह रुक जाएगा और किसानों द्वारा डेयरियों और पशुओं के चारे में बड़ी मेहनत से उगाया गया अनाज बर्बाद नहीं होगा और बचत भी हो सकेगी। एफसीआई कर्मचारियों द्वारा जाने-अनजाने में होने वाले नुकसान और अन्य रखरखाव, लागत जैसे नुकसानों से बचा जा सकता है।

अगर सरकार इतने बड़े पैमाने पर खरीद नहीं करती है तो भारतीय खाद्य निगम के गोदामों और कार्यालयों में काम करने वाले लाखों कर्मचारियों को कहीं और काम पर लगाया जा सकता है और गरीबी रेखा से ऊपर के लोग श्री अन्न (मोटे अनाज) पारंपरिक अनाज खरीद सकते हैं। जैसे बाजरा, ज्वार रागी को बाजार से खरीद सकते हैं जिससे बहुत ही स्वस्थ प्रद आहार लेने से लोगों के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।

दूसरी तरफ गेहूं के अत्यधिक उपयोग से लोगों में मधुमेह की दर बढ़ जाती है इससे भी बचा जा सकता है। और अगर किसानों को उचित मूल्य मिले तो श्री अन्न का उत्पादन बढ़ सकता है और गेहूं पर से बोझ घटाया जा सकता है ।

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