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वैदिक नायक देवता | श्री महागणपति जी महाराज | लेखक-नरेश बोहरा नाडोल

वेदों, पुराणों, स्मृतियों तथा महाकाव्यों सहित समस्त सनातन ग्रन्थों में श्री गणेश जी का वर्णन है। विश्व की अति प्राचीन संस्कृतियों, सभ्यताओं में भी गणपति पूजन की परम्परा रही है. आज जब संसार के विभिन्न स्थानों पर पुरा महत्व के स्थलों का उत्खनन होता है तो अमेरिका, अफ्रीका से लेकर इंडोनेशिया, रूस तक हमें गणपति वंदना के प्रमाण रूप में उनकी प्रतिमाएं मिलती है।

सनातन धर्म और संस्कृति में अनादिकाल से ही प्रथम पूज्य देवता के रूप में विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी की पूजा आराधना का विधान प्रचलित है।
लेखक- नरेश बोहरा'नरेन्द्र'
नाड़ोल (राजस्थान)

गणपति जी वैदिक देवता है ऋग्वेद में उनका उल्लेख इस मंत्र से किया गया है, ऋग्वेद में उन्हें ब्रह्मणस्पति भी कहा गया है।
||गणांना त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्तम्
जेष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पतआ नःशृण्वत्रूतिभिः सीद सादनम् ||
अर्थात – हे गणों के अधिपति, हे गणनायक, हे, विद्वानों में श्रेष्ठ और ब्रह्म से भी श्रेष्ठ, आप हमारी विनती को, निवेदन को सुने और स्वीकार करें।
शुक्ल यजुर्वेद में एक मंत्र है-
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे |निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ||
अर्थात्- हे परमदेव गणपति जी ! समस्त गणों के अधिपति एवं प्रिय पदार्थों प्राणियों के पालक और समस्त सुखनिधियों के निधिपति आपका हम आवाहन करते हैं । आप सृष्टि को उत्पन्न करने वाले हैं, हिरण्यगर्भ को धारण करने वाले अर्थात् संसार को अपने-आप में धारण करने वाली प्रकृति के भी स्वामी हैं, आपको हम प्राप्त हो।

चारों वेदों के विभिन्न सूक्तों व मंडलों में भी गणपति जी की आराधना व आह्वान किया गया है। हमें गणपति जी को विस्तृत रूप से समझने के लिए इस शब्द को गहराई से समझना होगा, गण का सामान्य अर्थ होता है- समूह, एक श्रेणी, एक वर्ग विशेष। व्याकरण में गण का तात्पर्य धातुओं और शब्दों की उस श्रेणी से होता है, जो किसी विशेष नियम के अनुसार व्यवहार करते हो। गण शिव के अनुचरों को भी कहते हैं, जो गणेश के अधीन रहते हैं। गण का अर्थ व्यक्तियों का समूह भी होता है परन्तु यहां वेदों के ब्रह्मणस्पति सूक्त के गणपति मात्र व्यक्तियों के समूह का अध्यक्ष नहीं है, अपितु विद्वत गणों के अधिष्ठाता है। शब्दों, धातुओं आदि के गणों (समूहों) का अधिपति गणेश की कवींना कवि कहा जा सकेगा।

इस अर्थ में गणपति ब्रह्म से ज्येष्ठ हो सकते है। वाणी (शब्द) एवं अक्षर, नाम एवं रूप दोनों के अधिपति महाज्ञानी ब्रह्मज्ञान कराने में समर्थ ब्रह्म से श्रेष्ठ माना जा सकता है। अत: इस दृष्टि से ऋग्वेद के ब्रह्मणस्पति सूक्त के गण‍पति की व्याख्या को समझा जा सकता है कि उच्च कोटि के गुणों को धारण करने वाले देवता ही श्रेष्ठ गणों (समूहों) के नायक अर्थात ‘गणपति’ हो सकते है।

हमारे मन्त्रदृष्टा ऋषियों ने एक श्रेष्ठतम नायक के रूप में गणपति जी को स्थापित कर उन्हें ही समाज और राष्ट्र का नेतृत्व करने वाले देवता घोषित कर प्रथम पूज्य बताया है, गणेश जी के गुणों की जब विस्तार से विवेचना की जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारे मनीषियों ने राष्ट्रनायकों (नेतृत्वकर्ता) के व्यक्तित्व में किन गुणों व विशेषताओं का समावेश होना आवश्यक माना है। भारतवर्ष युगों से एक सफल गणतांत्रिक व्यवस्था का सूत्रधार रहा है, हमारे गण और उसके तंत्र को सफल बनाने में अनेकों गणनायको का योगदान रहा है।

भगवान गणेश जी को गज स्वरूप माना गया है, सम्पूर्ण विश्व में उनकी प्रतिमाएं इसी रूप में है, इसके पीछे वर्णित कथा को अगर हम अलग रखकर सोचे तो भी बहुत गम्भीर अर्थ निकलता है, वैदिक ऋषियों द्वारा गणपति अर्थात नेतृत्वकर्ता के गुणों की तुलना हाथी के गुणों से करने के कारण ही जब उनकी प्रथम प्रतिमा बनी होगी तो इसी आधार पर उन्हें गजमुख आकार दिया होगा। हाथी वन्य प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ गण प्रमुख होता है, अपने समूह के छोटे-बड़े सभी साथियों की सुरक्षा से लेकर भोजन तक का ध्यान गजराज रखता है, इसी आधार पर हम श्री गणेश जी के गुणों का विवेचन करते है-

  • बड़ा सिर – भगवान गजमुख है, नायक का मस्तिष्क व बुद्धि चातुर्य दीर्घ होनी चाहिये, उसके चिंतन व विचार भी उच्चतम होने चाहिए।
  • लम्बे कान – हमारे गणपति जी गजकर्ण है, वो सभी की सुनते है, मनन करते है तथा बाद में उचित निर्णय लेते है, हमारा नायक कान का कच्चा न होकर लम्बकर्ण होना चाहिए।
  • छोटी आँखें – नायक की दृष्टि सूक्ष्म होनी चाहिए, कार्य व लक्ष्य की छोटी-छोटी बारीकियों पर उसकी नजर होनी चाहिए, वही सच्चा गणपति हो सकता है।(४) लम्बी सूंड- जो नेतृत्व करना चाहता है उसकी सूंघने अर्थात परिस्थितियों का आंकलन करने, सब कुछ भांपने की शक्ति तीव्र हो तभी वह सफल हो सकता है, हमारे विघ्नहर्ता भी ऐसे ही है।
  • बड़ा पेट- जो गण का नेतृत्व करेगा उसे कई प्रकार की बातों को, जानकारियों को , अच्छाइयों को, बुराइयों को देखने सुनने का अवसर मिलेगा, परन्तु जो लम्बोदर है वही उसे पचा सकता है, उन पर समयानुकूल व्यवहार कर सकता है।
  • मूषक वाहन – निश्चित रूप से नेता का बुद्धिमान होना परमावश्यक है, इसलिए ही भगवान गणेश जी को बुद्धि प्रदाता देवता कहा गया है, मूषक तर्क का प्रतीक है, बुद्धि हमेशा एकनिष्ठ न होकर तर्कशील होती है, इसलिए बुद्धि स्वरूप गजानन जी तर्क रूपी मूषक की सवारी करते है जो तथ्यों को कुतरकर सटीक सत्य प्रकट करते है।
  • मोदक प्रियता- मोदक यानी लड्डू जो श्री गणेशजी का प्रिय आहार है, मोदक सामूहिकता और सङ्गठन का प्रतीक है, अनेक कणों को संयुक्त कर मोदक का निर्माण होता है, गणपति यानी नायक कुशल संगठक होना चाहिए, उसके गण (दल) में ऐक्यभाव होना चाहिए तभी वो समाज व राष्ट्र को श्रेष्ठ नेतृत्व दे सकता है। चारु (लड्डू) प्रिय श्री विनायक जी हमें एकता का दिव्य सन्देश युगों-युगों से प्रदान करते आ रहे है।
  • पुष्प दूर्वा प्रियता – प्रथमेश गिरिजानन्दन रक्त पुष्प व दूर्वा अधिक पसंद करते है यह उनका हमें प्रकृति व पर्यावरण की रक्षा का निर्देश है, जिन्होंने भी नेतृत्व किया है वो पर्यावरण के रक्षक रहे है आगे भी जो अग्रणी होगा उसे प्रकृति के ऋण को स्वीकार करना ही होगा।

इसी तरह भगवान गणपति जी अपने दिव्य स्वरूप में मानवजाति को अनेकों सन्देश व ज्ञान प्रदान करते है, महाभारत का लेखन उन्होंने अविराम किया था, हम भी लक्ष्य तक पहुंचे बिना रुके नही, नित्य पूजन के पंच देवताओं में वरद विनायक जल के प्रतीक है, जल ही जीवन है उसे बचाना हमारा प्रथम कर्तव्य होना चाहिए।

महागणपति जी आदर्श गृहस्थ है उनका विवादरहित पारिवारिक जीवन हमें सद्गृहस्थ होने का संदेश देता है। श्री गणेश जी के रिद्धि-सिद्धि नामक दो पत्नियां ऐश्वर्य और सामर्थ्य की प्रतीक है, उनके दो पुत्र लाभ और क्षेम है, सुसंस्कृत पारिवारिक वातावरण में ऐश्वर्य, सामर्थ्य, लाभ और लाभ का संरक्षण करने वाले क्षेम का आगमन होता है तथा मनुष्य का जीवन सुखमय होता है।

उनके चार हाथ पाश, अंकुश, वरदहस्त व अभ्यहस्त युक्त है जो हमारे कष्टों को हर कामनाओं की पूर्ति कर अभय रखते है, उनका चतुर्भुज रूप जीवन के चार पुरुषार्थों का प्रतिबिंब है जो इन चारों को साधता हुआ चलता है वो ही सार्थक जीवन जीता है।

वैदिक देवता महागणपति जी अनन्त, और अनादि है वो समय और काल से परे है, समय-समय पर उनके अंशावतार के रूप में गणपति जी, गणेश जी का प्राकट्य होता रहता है। हम जिन पार्वती नन्दन शिव तनय भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना करते है वो भी इन्ही महागणपति जी के अवतार है। प्रमाण के रूप में बाबा तुलसीदास जी ने श्री रामचरित मानस में शिव विवाह प्रसंग में भगवान शिव-पार्वती जी द्वारा गणपति पूजन का वर्णन करते हुए लिखा है ,
“मुनि अनुशासन गनपति हि पूजेहु शंभु भवानि।
कोउ सुनि संशय करै जनि सुर अनादि जिय जानि”
(विवाह के समय ब्रह्मवेत्ता मुनियों के निर्देश पर शिव-पार्वती ने गणपति की पूजा संपन्न की। कोई व्यक्ति संशय न करें, क्योंकि देवता (गणपति) अनादि होते हैं।)
जगदम्बा ने महागणपति की आराधना की और उनसे वरदान प्राप्त किया कि आप मेरे पुत्र के रूप में अवतार लें, इसलिए भगवान महागणपति गणेश के रूप में शिव-पार्वती के पुत्र होकर अवतरित हुए। जिस प्रकार भगवान विष्णु अनादि हैं और राम, कृष्ण, वामन आदि अनेक अवतार हैं, उसी प्रकार गणेशजी भी महागणपति के अवतार हैं।

आज श्री गणेश चतुर्थी के पवित्र पर्व पर हम आदिदेव श्री महागणपति जी से सिद्धि, बुद्धि और कुशल गणनायक के गुणों का संचार हमारे हृदय व जीवन में करने की विनम्र प्रार्थना करते हुए उन्हें साष्टांग प्रणाम करते है।

 

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