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केजरीवाल के राजनीति दांव: मौलानाओं और पुजारियों के वेतन पर राजनीति गरमाई, केजरीवाल बोले भाजपा को मौलानाओं के वेतन की चिंता क्यों?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की राजनीति के केंद्र में इस बार धार्मिक स्थलों के धर्मगुरु हैं। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार पर भाजपा ने मौलानाओं के वेतन में देरी को लेकर निशाना साधा है। भाजपा नेताओं का आरोप है कि आम आदमी पार्टी सरकार पिछले डेढ़ साल से दिल्ली की मस्जिदों के मौलानाओं को तय वेतन देने में असफल रही है।

दिलचस्प बात यह है कि वही भाजपा, जिसने पहले केजरीवाल पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया था, अब मौलानाओं के वेतन न मिलने पर सवाल उठा रही है।

पुजारियों और ग्रंथियों को वेतन देने का वादा

फरवरी में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए केजरीवाल सरकार ने अब एक और बड़ा चुनावी वादा किया है। उन्होंने घोषणा की है कि मंदिरों के पुजारियों और गुरुद्वारों के ग्रंथियों को प्रतिमाह ₹18,000 का वेतन दिया जाएगा।

हालांकि, इस योजना को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। सरकार के पास अभी मंदिरों और पुजारियों का कोई ठोस डेटा नहीं है। किस श्रेणी के मंदिरों को शामिल किया जाएगा, यह स्पष्ट नहीं है। गली-मोहल्लों के छोटे मंदिरों के पुजारी भी रजिस्ट्रेशन करवा रहे हैं, जिससे प्रशासनिक चुनौती बढ़ गई है।

भाजपा नेताओं का कहना है कि जब मौलानाओं का वेतन ही समय पर नहीं दिया जा रहा है, तो पुजारियों और ग्रंथियों को वेतन देने का वादा केवल चुनावी रणनीति है।

कांग्रेस का फिर होगा सूपड़ा साफ?

अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को एक बार फिर पूरी तरह खत्म करने की तैयारी कर ली है। पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 70 में से एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।


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केजरीवाल ने साफ कर दिया है कि इस बार भी उनकी लड़ाई भाजपा से है, कांग्रेस से किसी भी तरह का गठबंधन नहीं होगा। केजरीवाल की योजना है कि कांग्रेस का प्रदर्शन पहले से भी बदतर हो और वह दिल्ली की राजनीति में अप्रासंगिक हो जाए।

राजनीतिक विशेषज्ञों का विश्लेषण

विशेषज्ञ मानते हैं कि अरविंद केजरीवाल राजनीतिक रणनीति के माहिर खिलाड़ी हैं। उन्होंने भाजपा को मौलानाओं के वेतन की चिंता करने पर मजबूर कर दिया है। साथ ही, धार्मिक मुद्दों को केंद्र में लाकर वह हर समुदाय के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं।फरवरी का चुनाव यह तय करेगा कि केजरीवाल की यह रणनीति कितनी सफल होती है।

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