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भगवान बुद्ध वेद, ब्राह्मण और सनातन धर्म के विरोधी नहीं थे


Ghevarchand Aarya
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Ghevarchand Aarya is a Author in Luniya Times News Media Website.

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आज बुध पूर्णिमा है, अनजान लोग इसे बुद्ध-पूर्णिमा बतला रहे हैं।


इसका सम्बन्ध गौतम बुद्ध से जोड़कर देख रहे हैं। भगवान बुद्ध का जन्म लुम्बिनीं में और निर्वाण कुशीनगर में हुआ था। बुध पुर्णिमा को उनके जन्म-ज्ञान-निर्वाण के साथ इस दिन को जोड़ कर एक दुसरे को बधाई और शुभकामनाएं भी दे रहे हैं। ऐसा करके वे परोक्ष रूप में बौद्ध-मत को पोषित कर रहे हैं। अर्थात् प्रचार-प्रसार कर रहे हैं । जिसका कभी भगवान शंकराचार्य ने जोरदार विरोध कर शास्त्रार्थ करके जोरदार-खण्डन किया था।

शास्त्रों के अनुसार आज का दिन बुद्ध-पूर्णिमा नहीं, बुध- पूर्णिमा है । गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) के पूर्वज भी इस पूर्णिमा को मनाते थे। उस समय भी इसका नाम बुध- पूर्णिमा ही था।

संस्कृत व्याकरण के अनुसार बुध अवगमने धातु से *बुध* शब्द सिद्ध होता है । *यो बुध्यते बोध्यते वा स बुध:* जो स्वयं बोध स्वरूप और सब जीवों के बोध का कारण है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम बुध है । (सत्यार्थ प्रकाश, प्रथम समुल्लास, महर्षि दयानन्द कृत)

अपने आपको मूल-निवासी कहने और मानने वाले तथाकथित बुद्ध समर्थक (बामसेफ) वाले लोग प्राय: ब्राह्मणों को कोसते हैं। उनकी निंदा करते हैं। साथ ही वेद एवं संस्कृत का भी विरोध करते हैं । इन सबको विदेशी कहते हैं, और गालियां बकते हैं। जबकि महात्मा बुद्ध और भीमराव अम्बेडकर ने आर्यधर्म को महान कहा है। डॉ भीमराव अंबेडकर आर्यों को विदेशी नहीं मानते थे। अपितु आर्यों के विदेशी होने की बात को कपोल कल्पना मानते थे।

महात्मा बुद्ध ब्राह्मण, धर्म, वेद, सत्य, अहिंसा , यज्ञ, यज्ञोपवीत आदि में पूर्ण विश्वास रखने वाले थे। महात्मा बुद्ध के उपदेशों का संग्रह धम्मपद मे ब्राह्मण वग्गो 18 में ऐसे अनेक प्रमाण मिलते है। जिसको पढ़ने ज्ञात होता है की महात्मा बुद्ध के ब्राह्मणों के प्रति क्या विचार थे। यहां कुछ उदाहरण दिये जा रहे हैं जिसको पाठक पढ़ें और विचार करें महात्मा बुद्ध आजकल के वामपंथियों और बामसेफ ईसाईयों की तरह हिन्दूओ के विरोधी नहीं थे।

 

ब्राह्मण पर वार नहीं करना

न ब्राह्नणस्स पहरेय्य नास्स मुञ्चेथ ब्राह्नणो।
धी ब्राह्नणस्य हंतारं ततो धी यस्स मुञ्चति।। 
                    (ब्राह्मणवग्गो श्लोक ३)

‘ब्राह्नण पर वार नहीं करना चाहिये। और ब्राह्मण को प्रहारकर्ता पर कोप नहीं करना चाहिये। ब्राह्मण पर प्रहार करने वाले पर धिक्कार है।’

वर्ण व्यवस्था का समर्थन

यस्स कायेन वाचाय मनसा नत्थि दुक्कतं।
संबुतं तीहि ठानेहि तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
                    (ब्राह्मणवग्गो श्लोक ५)

‘जिसने काया,वाणी और मन से कोई दुष्कृत्य नहीं करता,जो तीनों कर्म पथों में सुरक्षित है उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं। अर्थात् मानता हूं।

ब्राह्मण के गुण

अक्कोधनं वतवन्तं सीलवंतं अनुस्सदं।
दंतं अंतिमसारीरं तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
अकक्कसं विञ्ञापनिं गिरं उदीरये।
याय नाभिसजे किंचि तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
निधाय दंडभूतेसु तसेसु थावरेसु च।
यो न हंति न घातेति तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
                 (ब्राह्मणवग्गो श्लोक ७ से ९)

‘जो क्रोध रहित, व्रती, शीलवान, वितृष्ण है और दांत है, जिसका यह देह अंतिम है; जिससे कोई न डरे इस तरह अकर्कश , सार्थक और सत्य-वाणी बोलता हो; जो चर अचर सभी के प्रति दंड का त्याग करके न किसी को मारता है। न मारने की प्रेरणा करता है- उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूं।

जन्म से नहीं कर्म से ब्राह्मण

न जटाहि न गोत्तेन न जच्चा होति ब्राह्मणो।
यम्हि सच्च च धम्मो च से सुची सो च ब्राह्मणो।।
                     (ब्राह्मणवग्गो श्लोक ११)

अर्थात् न जन्म कारण है, न गोत्र कारण है, न जटा धारण से कोई ब्राह्मण होता है। जिसमें सत्य है, जो पवित्र है, वही ब्राह्मण होता है।

आर्य धर्म के प्रति विचार:-

धम्मपद, अध्याय ३ सत्संगति प्रकरण: प्राग संज्ञा:-
साहु दस्सवमरियानं सन् निवासो सदा सुखो।
                      (धम्मपद  श्लोक ५)

आर्यों का दर्शन सदा हितकर और सुखदायी है।

धीरं च पञ्ञं च बहुस्सुतं च धोरय्हसीलं वतवन्तमरियं।
तं तादिसं सप्पुरिसं सुमेधं भजेथ नक्खत्तपथं व चंदिमा।
                        (धम्मपद श्लोक ७)

अर्थात् जैसे चंद्रमा नक्षत्र पथ का अनुसरण करता है, वैसे ही सत्पुरुष का जो धीर, प्राज्ञ, बहुश्रुत, नेतृत्वशील, व्रती आर्य तथा बुद्धिमान है उसका अनुसरण करें।।

तादिसं पंडितं भजे।
      (धम्मपद श्लोक ८)

वाक्ताड़न करने वाले पंडित की उपासना भी सदा कल्याण करने वाली है।।

एते तयो कम्मपथे विसोधये आराधये मग्गमिसिप्पवेदित
              (धम्मपद ११ प्रज्ञायोग श्लोक ५)
अर्थात् तीन कर्म पथों की शुद्धि करके ऋषियों
के कहे मार्ग का अनुसरण करे।

धम्मपद के पंडित प्रकरण १५ में और ७७ पंडित लक्षणम् में इस प्रकार लिखा है। श्लोक १:- “अरियप्पवेदिते धम्मे सदा रमति पंडितो।”

सज्जन लोग आर्योपदिष्ट धर्म में रत रहते हैं। उपर वर्णित बोद्ध धर्म ग्रंथों से ज्ञात होता है की महात्मा गौतम बुद्ध वेद एवं ब्राह्मणों के विरोधी नहीं अपितु समर्थक थे इसलिए ही उन्होंने इतनी स्तुति की है। तथा आर्य वैदिक धर्म का खुले रूप से गुणगान किया है।

इसलिये बुद्ध के कहे उपदेशों अनुसार अनुसार भीम सैनिको को भी ब्राह्मणों और आर्यों का सम्मान करना चाहिये। दूसरों विदेशी वामपंथी और बामसेफ ईसाईयों के कहने में आकर बहकना नहीं चाहिए। अपितु महात्मा बुद्ध के धर्म शास्त्र पढ़कर अपना और देश का हित करना चाहिए। सलंग्न चित्र- महात्मा बुद्ध यज्ञोपवीत धारण किये हुए हैं जो इस बात का प्रमाण है कि वे वेद गौ ब्राह्मण सबके हितेषी थे न कि विरोधी।

Khushal Luniya

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