2025 वर्षों की गौरवशाली गाथा: संस्कृति, युद्ध, राजनीति और आध्यात्म से भारत की अद्वितीय महाशक्ति बनने की कहानी – (भाग 1)

"खुशाल लूनिया एक ऐसा नाम है जो युवा ऊर्जा, रचनात्मकता और तकनीकी समझ का प्रतीक है। एक ओर वे कोड की दुनिया में HTML, CSS से शुरुआत कर JavaScript और Python सीखने की ओर बढ़ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर ग्राफिक डिज़ाइन में भी उनका टैलेंट कमाल का है। बतौर डेस्क एडिटर, लूनिया टाइम्स में वे अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं।"
भारत का सम्पूर्ण वैभव: युद्ध, इतिहास, संस्कृति, विज्ञान, अर्थव्यवस्था, राजनीति, परंपराएँ, वैश्विक संबंध और आधुनिक विकास की अद्भुत गाथा
भारत एक प्राचीन और महान सभ्यता वाला देश है, जिसकी पहचान इसकी विविध भाषाओं, धर्मों, संस्कृति, और परंपराओं से होती है। यहाँ का इतिहास समृद्ध है जिसमें महान प्राचीन शासकों, युद्धों और विश्व युद्धों की गाथाएँ जुड़ी हैं। भारत का भौगोलिक स्वरूप, जैव विविधता, और पर्यावरण इसे विश्व में विशिष्ट बनाते हैं। राजनीति, अर्थव्यवस्था, और वैदेशिक संबंधों में भारत वैश्विक मंच पर प्रभावी भूमिका निभाता है।
भारत की सैन्य शक्ति, अंतरिक्ष विज्ञान, सूचना प्रौद्योगिकी और डिजिटल इंडिया जैसे अभियान देश को आधुनिक शक्ति बना रहे हैं। यहाँ की कृषि, व्यापार, स्वास्थ्य, और चिकित्सा व्यवस्था जीवन का आधार हैं। भारत की दर्शन, आध्यात्म, और परंपराएं इसे दुनिया में विशिष्ट पहचान दिलाती हैं। भारत का साहित्य, विरासत, और महापुरुषों की जीवनी विश्व को प्रेरित करती है। आज का भारत आधुनिक विकास, रणनीतिक रिश्तों, और समसामयिक घटनाओं के साथ तेज़ी से वैश्विक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है।
प्राचीन भारत के युद्ध ( Wars of Ancient India )
कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व)
मौर्य सम्राट अशोक और कलिंग राज्य के बीच लड़ा गया यह युद्ध भारत के इतिहास में सबसे भीषण और प्रभावशाली युद्ध माना जाता है। लाखों लोगों की जान गई, जिसके बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया।
मौर्य साम्राज्य के उत्तर पश्चिमी संघर्ष
मौर्य साम्राज्य ने यूनानी आक्रमणों का भी सामना किया। सिकंदर के सेनापतियों से संघर्ष हुए, जिनमें चंद्रगुप्त मौर्य ने विजय पाई।
हूण आक्रमण और गुप्त साम्राज्य का प्रतिरोध (5वीं शताब्दी)
हूण आक्रमणों ने गुप्त साम्राज्य को कमजोर किया लेकिन सम्राट स्कंदगुप्त ने वीरता से हूणों को हराया।
मध्यकालीन भारत के युद्ध
सिंध विजय (711 ईस्वी)
मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में अरबों ने सिंध पर हमला किया और विजय प्राप्त कर इस्लामी शासन की नींव रखी।
तराइन का पहला युद्ध (1191 ईस्वी)
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच लड़ा गया। इसमें पृथ्वीराज चौहान विजयी रहे।
तराइन का दूसरा युद्ध (1192 ईस्वी)
मोहम्मद गौरी ने पुनः आक्रमण किया और पृथ्वीराज चौहान को हराकर दिल्ली सल्तनत की स्थापना की।
पानीपत का पहला युद्ध (1526 ईस्वी)
बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच लड़ा गया यह युद्ध भारत में मुगल साम्राज्य की नींव का कारण बना।
पानीपत का दूसरा युद्ध (1556 ईस्वी)
अकबर और हेमू के बीच लड़ा गया। अकबर ने इस युद्ध में विजय प्राप्त कर अपना साम्राज्य मजबूत किया।
पानीपत का तीसरा युद्ध (1761 ईस्वी)
मराठों और अहमद शाह अब्दाली के बीच लड़ा गया यह युद्ध भारत के इतिहास का सबसे बड़ा और निर्णायक युद्ध था। मराठा शक्ति को गहरी क्षति पहुंची।
मैसूर युद्ध (1767-1799 ईस्वी)
हैदर अली और टीपू सुल्तान ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ संघर्ष किया। चौथे युद्ध में टीपू सुल्तान शहीद हो गए।
मराठा और अंग्रेजों के बीच एंग्लो-मराठा युद्ध
तीन चरणों में लड़े गए इन युद्धों में अंततः मराठों की हार हुई और भारत में ब्रिटिश शक्ति मजबूत हुई।
औपनिवेशिक भारत के युद्ध
प्लासी का युद्ध (1757 ईस्वी)
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराया और भारत में अपने प्रभुत्व की शुरुआत की।
बक्सर का युद्ध (1764 ईस्वी)
ब्रिटिश सेना ने बंगाल, अवध और मुग़ल बादशाह की संयुक्त सेना को हराया और बंगाल पर पूर्ण अधिकार कर लिया।
1857 का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहेब जैसे वीरों ने नेतृत्व किया। यह भारत का पहला बड़ा स्वतंत्रता संग्राम था।
विश्व युद्ध – प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918)
भारतीय सेना की भागीदारी
भारत ने ब्रिटेन की तरफ से लगभग 13 लाख सैनिक भेजे, जिनमें से हजारों सैनिक यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका में शहीद हुए। भारतीय सैनिकों ने फ्रांस, बेल्जियम और गैलीपोली में लड़ाई लड़ी।
विश्व युद्ध – द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945)
भारत की भागीदारी
भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य के साथ मिलकर लगभग 25 लाख सैनिक युद्ध में भेजे। भारतीय सैनिकों ने यूरोप, अफ्रीका और बर्मा में लड़ाई लड़ी।
आजाद हिंद फौज का गठन (1943)
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज बनाई और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया। ‘दिल्ली चलो’ का नारा इसी दौरान दिया गया।
स्वतंत्र भारत के युद्ध
1947-48 का भारत-पाकिस्तान युद्ध (पहला कश्मीर युद्ध)
कश्मीर रियासत के भारत में विलय के बाद पाकिस्तान समर्थित कबायलियों ने हमला किया। भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई कर श्रीनगर और घाटी का बड़ा हिस्सा बचाया।
1962 का भारत-चीन युद्ध
सीमा विवाद के कारण चीन ने भारत पर हमला किया। भारत को इस युद्ध में सैन्य नुकसान उठाना पड़ा।
1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध
कश्मीर को लेकर हुआ यह युद्ध टैंक युद्ध के रूप में जाना जाता है। भारत ने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया।
1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश का निर्माण
पाकिस्तान के अत्याचारों से त्रस्त होकर भारत ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में सैन्य हस्तक्षेप किया और पाकिस्तान को हार माननी पड़ी। इसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बना।
1999 का कारगिल युद्ध
पाकिस्तानी सेना ने कारगिल की चोटियों पर कब्जा कर लिया था। भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ चलाकर दुश्मनों को खदेड़ा और अपनी भूमि मुक्त कराई।
भारत की वैश्विक सैन्य भूमिका और अन्य अभियान
गोवा मुक्ति संग्राम (1961)
भारत ने पुर्तगाल से गोवा को आजाद कराया और इसे भारत का हिस्सा बनाया।
श्रीलंका में ऑपरेशन पवन (1987-1990)
भारतीय शांति सेना (IPKF) ने श्रीलंका में लिट्टे (LTTE) के खिलाफ अभियान चलाया।
उरी हमला और सर्जिकल स्ट्राइक (2016)
पाकिस्तान समर्थित आतंकियों के उरी हमले के जवाब में भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की।
पुलवामा हमला और बालाकोट एयर स्ट्राइक (2019)
आतंकी हमले में 40 भारतीय जवान शहीद हुए। भारत ने जवाब में पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर आतंकी ठिकानों को तबाह किया।
भारत की साइबर और डिजिटल सैन्य शक्ति (2020-2025)
साइबर वारफेयर में मजबूती
भारत ने साइबर हमलों और रक्षा के लिए विशेष इकाइयों का गठन किया। डिजिटल सुरक्षा को लेकर बड़े कदम उठाए गए।
गलवान घाटी संघर्ष (2020)
लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच खूनी झड़प हुई जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हुए।
भारत का युद्ध इतिहास विविध और प्रेरणादायी है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक भारत ने कई आक्रमण झेले, बड़ी लड़ाइयाँ लड़ीं और अपनी रक्षा के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। भारत न केवल एक परमाणु शक्ति संपन्न देश है, बल्कि वैश्विक शांति अभियानों में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
शब्द-साधन ( Etymology )
भारत में भाषाई व्युत्पत्ति का प्राचीन काल (1 ईसा पूर्व – 500 ईस्वी)
वैदिक और संस्कृत भाषा का विकास
- संस्कृत भाषा का उद्भव भारत में सबसे महत्वपूर्ण भाषाई घटना मानी जाती है।
- वैदिक काल में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की रचना हुई, जो संस्कृत में थीं।
- “संस्कृत” शब्द का अर्थ है – परिष्कृत या सुधरी हुई भाषा।
- महर्षि पाणिनि ने ‘अष्टाध्यायी’ के माध्यम से संस्कृत व्याकरण को व्यवस्थित किया।
- ‘निरुक्त’ में यास्क ने शब्दों की उत्पत्ति और अर्थ स्पष्ट किए, जो भारत में व्युत्पत्ति विज्ञान की आधारशिला है।
प्राकृत भाषाओं का विकास
- संस्कृत से ही विभिन्न प्राकृत भाषाओं का जन्म हुआ, जिनमें अर्धमागधी, शौरसेनी, पैशाची और मागधी प्रमुख थीं।
- जैन और बौद्ध धर्म ग्रंथ मुख्यतः प्राकृत में रचे गए।
- पाली भाषा में ही गौतम बुद्ध के उपदेश ‘त्रिपिटक’ संकलित हुए।
मध्यकालीन भारत में भाषाई व्युत्पत्ति (500 ईस्वी – 1700 ईस्वी)
अपभ्रंश का विकास और क्षेत्रीय भाषाओं की नींव
- प्राकृत से अपभ्रंश भाषाओं का जन्म हुआ, जिसे भाषाई संक्रमण का काल माना जाता है।
- अपभ्रंश काव्य का उदाहरण – ‘पउमचरिउ’ (पद्मपुराण) है।
- यही अपभ्रंश आगे चलकर हिंदी, गुजराती, मराठी, बंगाली जैसी भाषाओं की जननी बनी।
फारसी और अरबी का प्रभाव
- मुस्लिम शासकों के आगमन से भारत में फारसी और अरबी भाषाओं का आगमन हुआ।
- मुगल काल में फारसी दरबारी भाषा बनी और इसका व्यापक प्रभाव हिंदी, उर्दू, पंजाबी, सिंधी और कश्मीरी तक पड़ा।
- ‘दीवान-ए-ग़ालिब’, ‘आइन-ए-अकबरी’, ‘बाबरनामा’ जैसी रचनाएं फारसी में ही लिखी गईं।
औपनिवेशिक काल में भाषाई व्युत्पत्ति (1700 ईस्वी – 1947 ईस्वी)
अंग्रेजी का आगमन और प्रभाव
- ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आगमन के साथ अंग्रेजी भाषा का प्रवेश हुआ।
- अंग्रेजी शिक्षा नीति (मैकाले मिनिट्स – 1835) के तहत अंग्रेजी भारत में प्रशासन और शिक्षा की प्रमुख भाषा बनी।
- ‘इंडियन पेनल कोड’, ‘सिविल प्रोसीजर कोड’ जैसे अंग्रेजी कानूनी दस्तावेज बने, जिससे भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी शब्द घुलने लगे।
हिंदी, उर्दू और आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास
- 18वीं और 19वीं शताब्दी में हिंदी और उर्दू साहित्य का पुनर्जागरण हुआ।
- भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी को ‘भारतीय राष्ट्रभाषा’ बनाने का आह्वान किया।
- मीर, ग़ालिब, प्रेमचंद, टैगोर, भारती जैसे लेखकों ने आधुनिक भारतीय भाषाओं को सशक्त किया।
- प्रकाशन और मुद्रण युग की शुरुआत से हिंदी, बंगाली, मराठी, तमिल सहित अन्य भाषाओं में शब्दकोश, व्याकरण और व्युत्पत्ति ग्रंथ बनने लगे।
स्वतंत्र भारत में भाषाई व्युत्पत्ति (1947 – 2025)
भारतीय संविधान और भाषाई संरचना
- 1950 में भारतीय संविधान में ‘हिंदी’ को राजभाषा घोषित किया गया।
- अनुच्छेद 343 और 351 ने हिंदी के प्रचार-प्रसार और विकास का मार्ग प्रशस्त किया।
- भारत में 22 अनुसूचित भाषाओं को मान्यता मिली, जिनमें संस्कृत, तमिल, तेलुगु, मराठी, गुजराती, बंगाली प्रमुख हैं।
हिंदी का व्याकरणिक और व्युत्पत्ति विकास
- भारत सरकार ने ‘केंद्रीय हिंदी निदेशालय’ की स्थापना की, जिसने हिंदी में व्युत्पत्ति संबंधी शब्दकोश और व्याकरण ग्रंथ तैयार किए।
- विदेशी शब्दों के हिंदीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई, जिससे फारसी, अरबी, अंग्रेजी मूल के शब्द हिंदी में व्युत्पन्न होने लगे।
- ‘समाचार’, ‘दूरदर्शन’, ‘दूरभाष’, ‘संचार’ जैसे नवीन शब्द गढ़े गए।
वैश्वीकरण और तकनीक युग में व्युत्पत्ति
- 1990 के बाद आईटी और इंटरनेट क्रांति से ‘ई-मेल’, ‘मोबाइल’, ‘वेबसाइट’, ‘ऑनलाइन’, ‘डिजिटल’ जैसे शब्द भारतीय भाषाओं का हिस्सा बने।
- हिंग्लिश का जन्म हुआ, जिसमें हिंदी और अंग्रेजी मिश्रित रूप में प्रयोग होने लगे।
- सोशल मीडिया और गूगल ट्रांसलेशन के कारण भाषाई सीमाएं धुंधली हुईं और शब्दों की व्युत्पत्ति का दायरा बढ़ा।
भारतीय भाषाओं में Artificial Intelligence और AI व्युत्पत्ति
- 2020 के बाद एआई और मशीन लर्निंग के क्षेत्र में तेजी आई, जिससे व्याकरण और व्युत्पत्ति स्वचालित प्रणाली में विकसित होने लगे।
- ChatGPT, DeepSeek जैसे मॉडल हिंदी, तमिल, मराठी, उर्दू सहित कई भारतीय भाषाओं में व्युत्पत्ति संबंधी जानकारी देने में सक्षम हुए।
- AI द्वारा बनाए गए हिंदी शब्दकोश, अनुवाद प्रणाली और व्युत्पत्ति शोध ने एक नई क्रांति लाई।
भारत में व्युत्पत्ति विज्ञान केवल भाषाई अध्ययन ही नहीं, बल्कि सभ्यता और संस्कृति की गहराई से जुड़ा विषय है। वैदिक संस्कृत से लेकर हिंग्लिश और एआई युग तक, भारतीय भाषाएं सतत विकास की प्रक्रिया में हैं। भविष्य में व्युत्पत्ति विज्ञान भारत में तकनीकी नवाचार, डिजिटल शिक्षा और भाषा संरक्षण का महत्वपूर्ण साधन बनेगा।
जैव विविधता ( Biodeversity )
भारत एक जैव विविधता सम्पन्न देश है, जहां हिमालय से लेकर समुद्र तक विभिन्न प्रकार की पारिस्थितिकी और अनूठी प्रजातियां पाई जाती हैं। लेकिन समय के साथ मानव गतिविधियों और प्राकृतिक कारणों से भारत की जैव विविधता में गंभीर क्षति हुई। इस लेख में 1 ईसा पूर्व से 2025 तक भारत में जैव विविधता हानि का क्रम, कारण और प्रभाव विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।
प्राचीन भारत में जैव विविधता(1 ईसा पूर्व से 700 ईस्वी)
कृषि सभ्यता और मानव हस्तक्षेप की शुरुआत
प्राचीन भारत में कृषि का प्रारंभ होते ही जंगलों की कटाई और भूमि उपयोग में परिवर्तन शुरू हुआ। हालांकि यह हानि सीमित थी, लेकिन मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की नींव रखी गई।
- ग्रामीण बसाहटों के विस्तार के लिए जंगलों का धीरे-धीरे सफाया किया गया।
- सिंधु घाटी और गंगा यमुना घाटी में बड़े पैमाने पर कृषि आरंभ हुई, जिससे कुछ क्षेत्रों में स्थानीय जैव विविधता प्रभावित हुई।
- प्राचीन शिकार परंपराएं विकसित हुईं, हालांकि धार्मिक मान्यताओं के कारण अधिकांश वन्य जीव संरक्षित रहे।
धार्मिक और सांस्कृतिक संरक्षण प्रभाव
भारत की संस्कृति और धर्म में प्रकृति पूजन की परंपरा रही, जिससे जैव विविधता पर तत्काल प्रभाव सीमित रहा। लेकिन शाही खेल और कुछ रियासतों में शिकार की प्रवृत्ति ने आंशिक नुकसान पहुंचाया।
मध्यकालीन भारत में जैव विविधता(700 ईस्वी से 1700 ईस्वी)
साम्राज्य विस्तार और शाही शिकार का दौर
मध्यकाल में साम्राज्यों के विस्तार के साथ जंगलों का विनाश बढ़ा और शाही शिकार ने कई वन्य प्रजातियों की संख्या घटाई।
- दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य के दौरान शाही शिकार आम हो गया, जिससे बाघ, चीता, हिरण आदि प्रजातियां शिकार का शिकार बनीं।
- वनों की कटाई कर सैनिक मार्ग, किले और राजमहलों का निर्माण हुआ।
- गंगा और यमुना के मैदानी इलाकों में कृषि विस्तार ने दलदली भूमि और प्राकृतिक आवास नष्ट किए।
खेती का विस्तार और जल संसाधनों पर दबाव
मध्यकाल में सिंचाई और कृषि व्यवस्था बढ़ने से नए क्षेत्रों में खेती शुरू हुई, जिससे पारिस्थितिकी में असंतुलन पैदा हुआ।
ब्रिटिश उपनिवेश काल में जैव विविधता (1700 ईस्वी से 1947 ईस्वी)
वनों का दोहन और शिकार कानून
ब्रिटिश काल में भारत के प्राकृतिक संसाधनों का संगठित दोहन शुरू हुआ, जिससे जैव विविधता को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा।
- रेलवे निर्माण, जहाज निर्माण और इमारतों के लिए सागौन, साल, चंदन आदि की बड़े पैमाने पर कटाई हुई।
- जंगलों को व्यवस्थित तरीके से खत्म कर व्यावसायिक खेती शुरू कराई गई।
- शिकार अधिनियम लागू कर शाही शिकार को कानूनी संरक्षण मिला, जिससे बाघ, हाथी, गेंडा आदि का शिकार बढ़ा।
- चाय, कॉफी और रबर जैसे नकदी फसलों के लिए जंगलों की सफाई हुई।
वन्यजीवों की तस्करी और विलुप्ति की शुरुआत
इस दौर में शिकार और तस्करी चरम पर रही, जिससे कई प्रजातियां संकट में आ गईं।
स्वतंत्रता के बाद भारत में जैव विविधता (1947 से 1990)
औद्योगीकरण और बड़े विकास प्रोजेक्ट्स
आज़ादी के बाद भारत में औद्योगीकरण और आधारभूत संरचना निर्माण तेजी से हुआ, जिससे बड़े पैमाने पर जैव विविधता नष्ट हुई।
- भाखड़ा नंगल, हीराकुंड और टिहरी जैसे बड़े बांध बने, जिससे लाखों हेक्टेयर जंगल डूब गए और वन्य जीव विस्थापित हुए।
- रेलवे, सड़क और खनन परियोजनाओं ने वनों का बड़े पैमाने पर दोहन किया।
- शहरीकरण बढ़ने से कई पारंपरिक पारिस्थितिकी तंत्र खत्म हुए।
हरित क्रांति और रासायनिक प्रदूषण
हरित क्रांति के कारण रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग हुआ, जिससे मिट्टी और जल जीवों की जैव विविधता प्रभावित हुई।
- गेहूं और धान की एकल फसल प्रणाली बढ़ने से जैव विविधता में गिरावट आई।
- मिट्टी के सूक्ष्म जीव और कीटों की कई प्रजातियां खत्म हुईं।
प्रारंभिक संरक्षण प्रयास
1972 में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम बना और प्रोजेक्ट टाइगर शुरू हुआ, जिससे बाघों के संरक्षण की पहल हुई।
आर्थिक उदारीकरण के बाद जैव विविधता (1991 से 2025)
आर्थिक विकास और शहरी विस्तार
1991 के बाद भारत में आर्थिक उदारीकरण ने औद्योगीकरण और शहरीकरण को तीव्र किया, जिससे प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव बढ़ा।
- नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट्स, स्मार्ट सिटी मिशन और औद्योगिक कॉरिडोर में लाखों हेक्टेयर जंगल नष्ट हुए।
- शहरी विस्तार के लिए दलदली भूमि और जल स्रोत खत्म किए गए।
खनन और जल परियोजनाओं का असर
खनन और जल संसाधनों के अति दोहन ने पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित किया और जैव विविधता हानि को बढ़ाया।
- कोयला, बॉक्साइट और लौह अयस्क खनन के लिए जंगल उजाड़े गए।
- नदी जोड़ परियोजनाओं और रेत खनन से जलीय पारिस्थितिकी खत्म हुई।
जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ
ग्लोबल वार्मिंग और प्राकृतिक आपदाओं ने जैव विविधता को नए खतरों में डाला।
- मानसून चक्र में बदलाव, बाढ़-सूखा, समुद्री जलस्तर में वृद्धि ने कई प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा बढ़ाया।
- हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने से जल स्रोत और उससे जुड़ी जैव विविधता प्रभावित हुई।
आक्रामक विदेशी प्रजातियों का असर
विदेशी आक्रामक प्रजातियों ने स्थानीय जैव विविधता को नुकसान पहुंचाया।
- जलकुंभी, नीलगिरी और अफ्रीकी कैटफ़िश ने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बर्बाद किया।
- कई देशी प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच गईं।
भारत में प्रमुख जैव विविधता के कारण (1 ईसा पूर्व से 2025)
वन कटाई और भूमि उपयोग परिवर्तन
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कृषि, औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण बड़े पैमाने पर वन क्षेत्र घटा।
शिकार और अवैध तस्करी
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वन्यजीवों का शिकार और तस्करी जैव विविधता हानि का प्रमुख कारण बनी।
प्रदूषण और रासायनिक प्रभाव
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जल, वायु और भूमि प्रदूषण ने कई प्रजातियों के आवास खत्म किए।
जलवायु परिवर्तन
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बढ़ता तापमान, बदलते मौसम और प्राकृतिक आपदाओं ने जैव विविधता पर असर डाला।
विलुप्त और संकटग्रस्त प्रजातियाँ
- भारतीय गिद्ध
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
- हिम तेंदुआ
- गंगा डॉल्फिन
- बाघ और हाथी जैसी करिश्माई प्रजातियाँ
जैव विविधता संरक्षण के प्रयास
राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य
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काजीरंगा, सुंदरबन, गिर, कान्हा जैसे पार्कों में संरक्षण प्रयास हुए।
महत्वपूर्ण संरक्षण परियोजनाएँ
- प्रोजेक्ट टाइगर (1973)
- प्रोजेक्ट एलिफेंट (1992)
- जैव विविधता अधिनियम (2002)
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
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भारत ने जैव विविधता पर वैश्विक संधियों में भागीदारी की और संरक्षण के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास किए।
भारत में 1 ईसा पूर्व से 2025 तक जैव विविधता हानि एक गंभीर चुनौती बन चुकी है। विकास और आधुनिकता की दौड़ में भारत ने अपनी कई अनमोल प्राकृतिक धरोहरें खो दीं। हालांकि सरकार और समाज ने समय-समय पर संरक्षण के प्रयास किए, लेकिन आबादी, लालच और विकास की तीव्रता के आगे जैव विविधता संकट में आ गई है। अब समय आ गया है कि जैव विविधता संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए, ताकि आने वाली पीढ़ियां इस धरोहर का अनुभव कर सकें।
विदेश संबंध ( Foreign Relation )
भारत का विदेशी संबंधों का इतिहास अत्यंत प्राचीन, विविध और समृद्ध रहा है। व्यापार, संस्कृति, धर्म, युद्ध, उपनिवेशवाद और कूटनीति के जरिए भारत ने दुनिया के अनेक देशों से संबंध बनाए। यह संबंध समय के साथ बदलते रहे, जिनका असर भारत की राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज पर पड़ा।
प्राचीन भारत में विदेशी संबंध (1 ईसा पूर्व से 700 ईस्वी)
व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध
प्राचीन भारत में विदेशी संबंध मुख्यतः व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के रूप में विकसित हुए। समुद्री मार्ग और स्थल मार्गों से भारत का संपर्क मध्य एशिया, रोमन साम्राज्य, चीन और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से हुआ।
- भारत-रोम व्यापार के प्रमाण मिलते हैं, जहां सोने-चांदी के सिक्के, मसाले और रेशमी वस्त्रों का आदान-प्रदान हुआ।
- चीन के साथ रेशम मार्ग के जरिए व्यापार और बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ।
- दक्षिण भारत के चोल और पांड्य राज्यों ने श्रीलंका, सुमात्रा, जावा आदि से समुद्री व्यापारिक संबंध स्थापित किए।
धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव
बौद्ध भिक्षु और विद्वान चीन, तिब्बत और दक्षिण-पूर्व एशिया में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए गए, जिससे भारत का सांस्कृतिक प्रभाव व्यापक हुआ।
मध्यकालीन भारत में विदेशी संबंध (700 ईस्वी से 1700 ईस्वी)
इस्लामी और मध्य एशियाई संपर्क
मध्यकाल में भारत का संपर्क अरब, तुर्क और मध्य एशियाई शक्तियों से बढ़ा। व्यापार के साथ-साथ सैन्य आक्रमणों ने भी विदेशी संबंधों को नई दिशा दी।
- अरब व्यापारी भारत के पश्चिमी तटों पर बसे और व्यापार बढ़ाया।
- महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी जैसे हमलावरों ने भारत में आक्रमण किए, जिससे मध्य एशिया से संबंध स्थापित हुए।
- दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य के दौर में भारत का संबंध फारस, तुर्की, अफगानिस्तान और उज़्बेकिस्तान जैसे क्षेत्रों से मजबूत हुआ।
यूरोपीय संपर्क की शुरुआत
16वीं शताब्दी में पुर्तगाली, डच, फ्रेंच और अंग्रेज भारत पहुंचे, जिससे भारत का यूरोप से सीधा संपर्क शुरू हुआ।
- वास्को-डी-गामा के आगमन के साथ पुर्तगालियों ने समुद्री व्यापारिक ठिकाने बनाए।
- डच, फ्रेंच और अंग्रेज कंपनियों ने व्यापारिक समझौते किए और धीरे-धीरे राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ाया।
ब्रिटिश उपनिवेश काल में विदेशी संबंध (1700 ईस्वी से 1947 ईस्वी)
ब्रिटिश साम्राज्य के तहत विदेश नीति
ब्रिटिश काल में भारत की विदेश नीति पूरी तरह ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन थी, और भारत का उपयोग एशिया, अफ्रीका और यूरोप के हितों के लिए किया गया।
- भारत से चीन को अफीम निर्यात कर ब्रिटिश व्यापार का विस्तार किया गया।
- भारत से सैनिकों को विश्व युद्धों में ब्रिटिश सेना के लिए भेजा गया।
- अफगानिस्तान, तिब्बत और फारस में भारत को रणनीतिक रूप से इस्तेमाल किया गया।
वैश्विक युद्धों में भारत की भूमिका
भारत प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना का अहम हिस्सा बना, जिससे भारत का संपर्क विश्व मंच पर बढ़ा।
- लाखों भारतीय सैनिक ब्रिटिश सेना में शामिल होकर यूरोप, अफ्रीका और एशिया के मोर्चों पर लड़े।
- भारत ने युद्धकालीन कूटनीति में अप्रत्यक्ष भूमिका निभाई।
स्वतंत्र भारत में विदेशी संबंध (1947 से 1990)
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM)
आजादी के बाद भारत ने 'गुटनिरपेक्ष आंदोलन' में अहम भूमिका निभाई, जिससे शीत युद्ध के दौरान भारत की स्वतंत्र विदेश नीति बनी।
- भारत ने अमेरिका और सोवियत संघ दोनों से संतुलित संबंध बनाए।
- नेहरू, नासिर, टीटो और सुकर्णो जैसे नेताओं के साथ भारत ने तीसरी दुनिया के देशों का नेतृत्व किया।
चीन और पाकिस्तान के साथ रिश्ते
स्वतंत्र भारत के शुरुआती वर्षों में पड़ोसी देशों से संबंध सबसे महत्वपूर्ण बने।
- 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद चीन से रिश्ते खराब हो गए।
- पाकिस्तान के साथ 1947, 1965 और 1971 में युद्ध हुए और कूटनीतिक संबंधों में उतार-चढ़ाव आया।
- बांग्लादेश निर्माण में भारत की निर्णायक भूमिका रही।
BRICS क्या है?
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Brazil (ब्राज़ील)
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Russia (रूस)
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India (भारत)
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China (चीन)
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South Africa (दक्षिण अफ़्रीका)
- इसे मूल रूप से BRIC (ब्राजील, रूस, भारत, चीन) कहा जाता था और इसका गठन 2006 में हुआ था। दक्षिण अफ्रीका 2010 में इसमें शामिल हुआ, जिससे यह BRICS बन गया।
- ये देश व्यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी और वैश्विक शासन जैसे क्षेत्रों में सहयोग करते हैं।
- वे आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए वार्षिक ब्रिक्स शिखर सम्मेलन आयोजित करते हैं।
- ब्रिक्स का अपना वित्तीय संस्थान है जिसे न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) कहा जाता है, जो बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं को वित्तपोषित करता है।
आर्थिक उदारीकरण और वैश्विक कूटनीति (1991 से 2025)
वैश्विक मंच पर भारत का उदय
1991 के बाद आर्थिक उदारीकरण से भारत के विदेशी संबंधों में व्यापक बदलाव आया और भारत वैश्विक शक्ति के रूप में उभरा।
- भारत ने अमेरिका, यूरोप, रूस और जापान के साथ व्यापारिक और रणनीतिक साझेदारी बढ़ाई।
- दक्षिण एशियाई सहयोग संगठन (SAARC), ब्रिक्स, G-20 और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में भारत की सक्रिय भागीदारी रही।
रक्षा और परमाणु संबंध
भारत ने परमाणु शक्ति बनने के साथ-साथ वैश्विक रक्षा समीकरणों में अपनी भूमिका मजबूत की।
- 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद भारत की वैश्विक स्थिति बदली।
- अमेरिका, रूस, फ्रांस और इज़राइल से रक्षा समझौते हुए और अत्याधुनिक हथियारों की खरीद बढ़ी।
भारत-चीन और भारत-पाक संबंध
- कारगिल युद्ध (1999) और बालाकोट एयरस्ट्राइक (2019) के बाद पाकिस्तान से तनाव बढ़ा।
- डोकलाम (2017) और गलवान घाटी संघर्ष (2020) के बाद चीन से भी रिश्ते तनावपूर्ण हुए।
रणनीतिक और आर्थिक साझेदारियाँ
- भारत-अमेरिका रक्षा और व्यापार साझेदारी नई ऊंचाइयों पर पहुंची।
- भारत ने ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत आसियान देशों से संबंध मजबूत किए।
- अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसे वैश्विक पर्यावरण प्रयासों में नेतृत्व किया।
वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका (2020 से 2025)
कोरोना महामारी में कूटनीति
- भारत ने वैक्सीन मैत्री कार्यक्रम के तहत दर्जनों देशों को वैक्सीन भेजी।
- WHO और संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका मजबूत हुई।
G-20 और वैश्विक आर्थिक भागीदारी
- भारत ने 2023 में G-20 की अध्यक्षता कर वैश्विक मंच पर नेतृत्व दिखाया।
- क्वाड समूह (Quad) के तहत अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक साझेदारी मजबूत हुई।
ऊर्जा और पर्यावरणीय कूटनीति
- भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अक्षय ऊर्जा, क्लाइमेट चेंज और सतत विकास को प्राथमिकता दी।
- सऊदी अरब, यूएई और रूस जैसे देशों से ऊर्जा सुरक्षा के समझौते हुए।
भारत का विदेशी संबंधों का इतिहास अत्यंत विस्तृत और विविध है। व्यापार, संस्कृति, युद्ध और कूटनीति के जरिए भारत ने विश्व से अपने संबंधों को समय-समय पर मजबूत किया। स्वतंत्रता के बाद भारत ने संतुलित विदेश नीति अपनाकर विश्व मंच पर अपनी पहचान बनाई। 2025 तक भारत वैश्विक राजनीति, रक्षा, व्यापार और पर्यावरणीय कूटनीति में एक सशक्त राष्ट्र के रूप में उभरा है।
रणनीतिक संबंध ( Strategic Relation )
भारत का सामरिक इतिहास अत्यंत विस्तृत और महत्वपूर्ण रहा है। यह देश प्राचीन काल से आधुनिक समय तक विभिन्न युद्धों, संधियों और रणनीतिक गठबंधनों का केंद्र रहा है।
प्राचीन काल (1 ईसा पूर्व – 1000 ई.)
मौर्य और गुप्त साम्राज्य के कूटनीतिक संबंध
- चंद्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस की संधि
- मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य और ग्रीक शासक सेल्यूकस निकेटर के बीच संधि हुई थी।
- इस संधि के तहत सेल्यूकस ने पश्चिमोत्तर भारत के कुछ क्षेत्र चंद्रगुप्त को सौंप दिए थे।
- बदले में, चंद्रगुप्त ने उन्हें 500 हाथियों की सहायता प्रदान की थी।
- अशोक का धम्म और अंतर्राष्ट्रीय संबंध
- सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका, म्यांमार, चीन और ग्रीस तक अपने दूत भेजे।
- उन्होंने कई देशों के साथ शांति और मैत्री संबंध स्थापित किए।
गुप्त काल और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
- गुप्त वंश के व्यापारिक और कूटनीतिक संबंध
- गुप्त काल में भारत का व्यापार रोम, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया तक फैला हुआ था।
- गुप्त शासकों ने चीन के तांग राजवंश और मध्य एशियाई देशों के साथ अच्छे संबंध स्थापित किए।
मध्यकाल (1000 ई. – 1757 ई.)
दिल्ली सल्तनत और बाहरी शक्तियों से संबंध
- खिलजी और तुगलक वंश के अंतर्राष्ट्रीय संबंध
- अलाउद्दीन खिलजी ने मंगोल आक्रमणों से निपटने के लिए रणनीतिक नीतियां अपनाईं।
- मुहम्मद बिन तुगलक ने पश्चिम एशिया और अफ्रीका तक संपर्क बढ़ाने का प्रयास किया।
- मुगलों का फारस, तुर्की और यूरोपीय देशों से संपर्क
- मुगल साम्राज्य के दौरान भारत और फारस के बीच घनिष्ठ संबंध थे।
- अकबर ने ओटोमन साम्राज्य और यूरोपीय व्यापारियों से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए।
मराठा और अंग्रेजों से संघर्ष
- मराठों का अफगानों और अंग्रेजों से कूटनीतिक संबंध
- पानीपत की तीसरी लड़ाई (1761) में मराठों और अफगानों के बीच संघर्ष हुआ।
- अंग्रेजों से मराठों के संबंध समय-समय पर युद्ध और संधियों के रूप में बदलते रहे।
ब्रिटिश शासन (1757 – 1947)
प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की भूमिका
- प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918)
- ब्रिटिश सरकार के अधीन भारतीय सैनिकों ने यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका में युद्ध लड़ा।
- भारतीय नेताओं ने ब्रिटिश सरकार से स्वतंत्रता की मांग को आगे बढ़ाया।
- द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945)
- भारतीय सेना ने मित्र राष्ट्रों की ओर से जर्मनी और जापान के खिलाफ युद्ध लड़ा।
- नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फौज बनाकर जापान और जर्मनी से सहयोग लिया।
स्वतंत्रता संग्राम और कूटनीति
- गांधीजी और अंतर्राष्ट्रीय समर्थन
- महात्मा गांधी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अहिंसा का प्रचार किया।
- ब्रिटेन पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ता गया, जिससे 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली।
स्वतंत्रता के बाद (1947 – 2025)
भारत-पाकिस्तान संबंध
- 1947, 1965, 1971 और 1999 के युद्ध
- भारत और पाकिस्तान के बीच कई युद्ध हुए, जिनमें 1947, 1965, 1971 और 1999 का कारगिल युद्ध शामिल है।
- 1971 में बांग्लादेश का निर्माण भारत की सामरिक सफलता थी।
- शांति प्रयास और कूटनीतिक पहल
- अटल बिहारी वाजपेयी की बस यात्रा और शांति वार्ता के प्रयास हुए।
- हाल ही में, कश्मीर मुद्दे को लेकर संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं।
भारत-चीन संबंध
- 1962 का भारत-चीन युद्ध
- भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर 1962 में युद्ध हुआ।
- इसके बाद दोनों देशों के बीच संबंध कई बार तनावपूर्ण रहे।
- आर्थिक और सामरिक सहयोग
- 1990 के बाद भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत हुए।
- हाल के वर्षों में गलवान घाटी संघर्ष (2020) के कारण तनाव बढ़ा।
भारत-अमेरिका संबंध
- शीत युद्ध और भारत की गुटनिरपेक्ष नीति
- भारत ने शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आंदोलन में भाग लिया।
- 1990 के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में सुधार हुआ।
- रणनीतिक और रक्षा सहयोग
- 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौता हुआ।
- भारत क्वाड (QUAD) समूह का हिस्सा बना, जिससे अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ सुरक्षा सहयोग बढ़ा।
भारत-रूस संबंध
- सोवियत संघ और भारत का सहयोग
- 1971 में भारत और सोवियत संघ ने मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए।
- भारत ने रक्षा क्षेत्र में रूस से बड़े पैमाने पर सहयोग लिया।
- नवीनतम सैन्य समझौते
- भारत रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीद रहा है।
- दोनों देशों के बीच ऊर्जा और व्यापारिक संबंध मजबूत बने हुए हैं।
वर्तमान और भविष्य की रणनीतिक नीतियां (2025 तक)
- ‘मेक इन इंडिया’ और रक्षा उत्पादन
- भारत आत्मनिर्भर रक्षा प्रणाली पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- स्वदेशी हथियारों और रक्षा उपकरणों का निर्माण बढ़ रहा है।
- साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष नीति
- भारत ने अंतरिक्ष और साइबर सुरक्षा में अपनी स्थिति मजबूत की है।
- ISRO और DRDO के नए प्रोजेक्ट भविष्य में भारत की रक्षा क्षमता को बढ़ाएंगे।
भारत का सामरिक इतिहास कई युद्धों, गठबंधनों और कूटनीतिक संबंधों का साक्षी रहा है। वर्तमान में, भारत वैश्विक शक्ति बनने की दिशा में बढ़ रहा है और अपनी सुरक्षा और कूटनीति को और मजबूत कर रहा है।
आर्थिक संबंध ( Economic Relation )
भारत का आर्थिक इतिहास अत्यंत विस्तृत और महत्वपूर्ण रहा है। यह देश प्राचीन काल से आधुनिक समय तक विभिन्न व्यापारिक, औद्योगिक और कूटनीतिक आर्थिक संबंधों का केंद्र रहा है।
प्राचीन काल (1 ईसा पूर्व – 1000 ई.)
प्राचीन भारत का व्यापारिक नेटवर्क
- सिल्क रोड और भारतीय व्यापार
- भारत का चीन, रोम, फारस और मध्य एशिया के साथ व्यापारिक संबंध थे।
- भारत से मसाले, कपड़ा, रत्न और धातु निर्यात किए जाते थे।
- सिल्क रोड के माध्यम से चीन से रेशम और अन्य वस्तुएं आयात की जाती थीं।
- रोमन साम्राज्य के साथ आर्थिक संबंध
- रोम से भारत में सोना, चांदी और शराब आयात होती थी।
- भारतीय व्यापारियों ने रोम में काली मिर्च और मसालों की आपूर्ति की।
गुप्त और मौर्यकालीन आर्थिक व्यवस्था
- मौर्यकाल में आर्थिक नीतियां
- सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के समय में व्यापारिक मार्गों को सुरक्षित बनाया गया।
- कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कराधान, व्यापार और आर्थिक नीतियों का विस्तार से वर्णन किया गया।
- गुप्तकाल में व्यापार और समृद्धि
- गुप्त साम्राज्य के दौरान व्यापार और कृषि क्षेत्र में भारी वृद्धि हुई।
- समुद्री व्यापार दक्षिण-पूर्व एशिया, अरब और यूरोप तक फैला।
मध्यकाल (1000 ई. – 1757 ई.)
दिल्ली सल्तनत और व्यापारिक संपर्क
- अरब, फारस और मध्य एशिया के साथ व्यापार
- दिल्ली सल्तनत के दौरान भारत का अरब देशों, फारस और मध्य एशिया के साथ व्यापार जारी रहा।
- घुड़सवारी, कपड़ा और मसाले प्रमुख व्यापारिक वस्तुएं थीं।
मुगल साम्राज्य और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
- यूरोप और मुगलों के बीच व्यापार
- मुगलों के समय भारत के यूरोप के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत हुए।
- भारत से यूरोप को कपड़ा, मसाले और आभूषण निर्यात किए जाते थे।
- ईस्ट इंडिया कंपनी और भारतीय अर्थव्यवस्था
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1600 ई. में भारत में व्यापार करना शुरू किया।
- धीरे-धीरे, उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण कर लिया।
ब्रिटिश शासन (1757 – 1947)
औद्योगिक क्रांति और भारत पर प्रभाव
- कच्चे माल का शोषण
- भारत को ब्रिटिश औद्योगिक क्रांति के लिए कच्चे माल के स्रोत के रूप में प्रयोग किया गया।
- कपास, चाय, मसाले और नील का बड़े पैमाने पर निर्यात हुआ।
- ब्रिटिश कर नीति और भारतीय किसान
- ब्रिटिश सरकार ने भारतीय किसानों पर भारी कर लगाए।
- इस कर नीति के कारण किसानों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई।
स्वतंत्रता संग्राम और स्वदेशी आंदोलन
- स्वदेशी आंदोलन और आर्थिक स्वतंत्रता
- 1905 के बंगाल विभाजन के बाद स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ।
- भारतीयों ने विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा दिया।
स्वतंत्रता के बाद (1947 – 2025)
समाजवादी आर्थिक नीतियां (1947-1991)
- योजना आयोग और पंचवर्षीय योजनाएं
- 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना लागू की गई।
- इस दौरान कृषि, उद्योग और बुनियादी ढांचे पर ध्यान दिया गया।
- रूस और भारत के आर्थिक संबंध
- सोवियत संघ ने भारत को भारी उद्योग और रक्षा क्षेत्र में सहायता दी।
- इस सहयोग के तहत इस्पात संयंत्र और भारी मशीनरी उद्योग स्थापित हुए।
उदारीकरण और वैश्वीकरण (1991-2025)
- 1991 का आर्थिक सुधार
- भारत ने आर्थिक उदारीकरण की नीति अपनाई और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित किया।
- इस दौरान आईटी उद्योग, सेवा क्षेत्र और विदेशी व्यापार में वृद्धि हुई।
- भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंध
- भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध तेजी से बढ़े।
- आईटी, फार्मास्यूटिकल्स और रक्षा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग हुआ।
- चीन के साथ व्यापारिक संबंध
- चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।
- हालांकि, 2020 के बाद व्यापारिक संतुलन और सीमा विवाद के कारण संबंध जटिल हो गए।
डिजिटल और स्टार्टअप क्रांति
- मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया
- 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसी योजनाएं शुरू की गईं।
- इन योजनाओं से नए उद्यमों और स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा मिला।
- डिजिटल इंडिया और कैशलेस अर्थव्यवस्था
- डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए UPI और अन्य भुगतान प्रणालियां लागू की गईं।
- भारत में ई-कॉमर्स और डिजिटल स्टार्टअप्स तेजी से उभरे।
भारत का आर्थिक इतिहास व्यापार, उदारीकरण और वैश्वीकरण की दिशा में विकसित होता रहा है। 2025 तक, भारत वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है और डिजिटल तथा औद्योगिक क्रांति के माध्यम से आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बढ़ रहा है।
भूगोल ( Geography )
भारत का भूगोल सदियों से परिवर्तनों, जलवायु परिवर्तनों, भौगोलिक खोजों और राजनीतिक सीमाओं में बदलाव का साक्षी रहा है। इसका प्रभाव न केवल पर्यावरण पर पड़ा, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर भी देखने को मिला।
प्राचीन काल (1 ईसा पूर्व – 1000 ई.)
भारत की भौगोलिक संरचना और जलवायु
- प्राचीन भारत की जलवायु और प्राकृतिक संसाधन
- प्राचीन भारत की जलवायु समशीतोष्ण थी, जिसमें प्रमुख नदियां सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र सभ्यताओं के विकास में सहायक बनीं।
- हिमालय पर्वत ने उत्तर से आने वाली ठंडी हवाओं को रोका, जिससे उत्तर भारत की जलवायु अनुकूल रही।
- सिंधु घाटी सभ्यता और जलवायु परिवर्तन
- सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1300 ईसा पूर्व) नदियों के किनारे विकसित हुई।
- माना जाता है कि जलवायु परिवर्तन और नदियों के प्रवाह में बदलाव के कारण यह सभ्यता समाप्त हो गई।
भौगोलिक खोजें और व्यापार मार्ग
- सिल्क रोड और समुद्री व्यापार मार्ग
- भारत का व्यापार चीन, मध्य एशिया, रोम और फारस के साथ भूमि और समुद्री मार्गों से होता था।
- दक्षिण भारत से मसाले, रत्न, कपड़ा और धातुएं निर्यात की जाती थीं।
मध्यकाल (1000 ई. – 1757 ई.)
जलवायु परिवर्तन और कृषि
- दिल्ली सल्तनत और कृषि विकास
- इस समय कृषि पर जलवायु का गहरा प्रभाव पड़ा, और सिंचाई प्रणालियों में सुधार किए गए।
- तुगलक वंश ने कृषि को बढ़ावा देने के लिए नए जल प्रबंधन तकनीकों को अपनाया।
भौगोलिक विस्तार और सीमाएं
- मुगल साम्राज्य और भारत का भौगोलिक विस्तार
- मुगलों के शासनकाल में भारत की भौगोलिक सीमाएं अफगानिस्तान से बंगाल तक और दक्षिण भारत तक फैली हुई थीं।
- इस काल में भारत के विभिन्न हिस्सों में भौगोलिक विविधता को ध्यान में रखते हुए विभिन्न कृषि और निर्माण कार्य किए गए।
ब्रिटिश शासन (1757 – 1947)
भारत का मानचित्र और प्रशासनिक विभाजन
- ब्रिटिश शासन में भारत की भौगोलिक सीमाएं
- ब्रिटिशों ने भारत के विभिन्न हिस्सों का नक्शा तैयार किया और उसे प्रशासनिक रूप से विभाजित किया।
- उन्होंने रेलवे, सड़कें और नहरें बनवाईं, जिससे भारत की भौगोलिक गतिशीलता बढ़ी।
पर्यावरणीय बदलाव और वनों की कटाई
- औद्योगीकरण और पर्यावरण पर प्रभाव
- ब्रिटिश काल में वनों की अंधाधुंध कटाई हुई, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा।
- कोयला और लौह अयस्क खनन से भौगोलिक परिदृश्य में बदलाव आया।
स्वतंत्रता के बाद (1947 – 2025)
राज्यों का पुनर्गठन और सीमाओं में परिवर्तन
- 1956 का राज्य पुनर्गठन अधिनियम
- भारत को भाषाई आधार पर पुनर्गठित किया गया, जिससे राज्यों की नई सीमाएं बनीं।
- इससे भारत के भौगोलिक प्रशासन में बड़ा परिवर्तन आया।
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय नीतियां
- भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
- ग्रीनहाउस गैसों और औद्योगीकरण के कारण जलवायु परिवर्तन भारत में तेजी से हुआ।
- ग्लेशियर पिघलने, समुद्री स्तर में वृद्धि और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं बढ़ीं।
- पर्यावरण संरक्षण और सरकारी प्रयास
- 1972 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम लागू किया गया।
- 2015 में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ और 2016 में ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण’ (NGT) की स्थापना हुई।
आधुनिक बुनियादी ढांचा और भौगोलिक विकास
- स्मार्ट सिटी और नगरीय विकास
- 2015 में ‘स्मार्ट सिटी मिशन’ के तहत शहरीकरण को बढ़ावा दिया गया।
- नए बुनियादी ढांचे में राजमार्ग, रेलवे और बंदरगाहों का निर्माण किया गया।
- अंतरिक्ष से भारत का भूगोल अध्ययन
- इसरो (ISRO) के उपग्रहों के माध्यम से भारत के भौगोलिक बदलावों की निगरानी की जा रही है।
- कृषि, मौसम और जलवायु के अध्ययन के लिए पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों का उपयोग किया जा रहा है।
भारत का भूगोल समय के साथ बदलता रहा है, जिसमें जलवायु परिवर्तन, प्रशासनिक सुधार, व्यापार मार्गों का विकास और पर्यावरणीय चुनौतियां शामिल हैं। 2025 तक, भारत सतत विकास की दिशा में अग्रसर है और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए नई नीतियां लागू कर रहा है।
इतिहास ( History )
भारत का इतिहास अत्यंत समृद्ध और विविधतापूर्ण रहा है। यह देश प्राचीन सभ्यताओं से लेकर आधुनिक लोकतांत्रिक व्यवस्था तक कई परिवर्तनों का साक्षी रहा है। यहां प्रमुख युद्धों, सामाजिक बदलावों और राजनीतिक घटनाओं का विस्तृत वर्णन किया गया है।
प्राचीन भारत (1 ईसा पूर्व – 1000 ई.)
प्राचीन साम्राज्य और उनके प्रभाव
- मौर्य और गुप्त साम्राज्य
- मौर्य साम्राज्य (321-185 ईसा पूर्व) का पतन होते ही भारत में कई छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ।
- गुप्त साम्राज्य (319-550 ई.) को “भारत का स्वर्ण युग” कहा जाता है। इसमें विज्ञान, कला, साहित्य और गणित में महत्वपूर्ण प्रगति हुई।
- दक्षिण भारत के साम्राज्य
- दक्षिण भारत में चोल, चेर और पांड्य वंशों का प्रभुत्व रहा।
- समुद्री व्यापार और मंदिर निर्माण में इनका विशेष योगदान था।
सांस्कृतिक और धार्मिक विकास
- बौद्ध और जैन धर्म का प्रभाव
- इस काल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म का प्रसार हुआ।
- अजन्ता और एलोरा की गुफाएं इस युग की महान स्थापत्य कला को दर्शाती हैं।
मध्यकालीन भारत (1000 ई. – 1757 ई.)
विदेशी आक्रमण और इस्लामी शासन
- दिल्ली सल्तनत की स्थापना
- 1206 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुलाम वंश की स्थापना की।
- इसके बाद तुगलक, खिलजी और लोदी वंशों ने भारत पर शासन किया।
- मुगल साम्राज्य और उसकी विरासत
- 1526 में बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर मुगल साम्राज्य की स्थापना की।
- अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनाई, जबकि शाहजहां ने ताजमहल जैसी अद्भुत इमारतों का निर्माण कराया।
मराठा और सिख शक्ति का उदय
- मराठा साम्राज्य का विस्तार
- छत्रपति शिवाजी महाराज (1630-1680) ने मराठा साम्राज्य की नींव रखी।
- मराठों ने मुगलों के पतन के बाद भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया।
- सिख साम्राज्य और महाराजा रणजीत सिंह
- 1799 में महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब में एक शक्तिशाली सिख साम्राज्य की स्थापना की।
- उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया।
ब्रिटिश शासन (1757 – 1947)
भारत में ब्रिटिश राज की स्थापना
- प्लासी और बक्सर के युद्ध
- 1757 में प्लासी की लड़ाई में अंग्रेजों ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराया।
- 1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने भारत में अपना प्रभाव बढ़ा लिया।
- 1857 की क्रांति
- इसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है।
- रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे और बहादुर शाह जफर जैसे नेताओं ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राष्ट्रीय आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम
- कांग्रेस और मुस्लिम लीग का उदय
- 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई।
- 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई, जिसने आगे चलकर विभाजन की नींव रखी।
- महात्मा गांधी और अहिंसक आंदोलन
- 1915 में गांधीजी भारत लौटे और उन्होंने सत्याग्रह और असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया।
- 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरू किया गया।
स्वतंत्रता के बाद (1947 – 2025)
विभाजन और नया भारत
- भारत और पाकिस्तान का विभाजन
- 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ, लेकिन इसके साथ ही विभाजन भी हुआ।
- विभाजन के दौरान भारी हिंसा और शरणार्थी संकट उत्पन्न हुआ।
- संविधान का निर्माण
- 26 जनवरी 1950 को भारत गणराज्य बना और संविधान लागू हुआ।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया।
प्रमुख युद्ध और संघर्ष
- भारत-पाक युद्ध (1947, 1965, 1971, 1999)
- 1947 में कश्मीर को लेकर पहला युद्ध हुआ, जिसमें जम्बूद्वीप ने नियंत्रण बनाए रखा।
- 1971 के युद्ध में बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
- 1999 में कारगिल युद्ध हुआ, जिसमें जम्बूद्वीप ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ दिया।
- भारत-चीन युद्ध (1962)
- चीन ने 1962 में जम्बूद्वीप पर आक्रमण किया और अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया।
- यह युद्ध जम्बूद्वीप के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ।
आर्थिक सुधार और वैश्विक पहचान
- 1991 के आर्थिक सुधार
- जम्बूद्वीप ने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति अपनाई।
- इससे भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज़ी से वृद्धि हुई।
- डिजिटल और स्टार्टअप युग
- 2014 में ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाएं शुरू की गईं।
- जम्बूद्वीप आईटी और स्टार्टअप क्षेत्र में वैश्विक पहचान बना रहा है।
जम्बूद्वीप का इतिहास संघर्ष, वीरता और परिवर्तन का गवाह रहा है। 2025 तक, जम्बूद्वीप वैश्विक स्तर पर एक उभरती हुई शक्ति के रूप में अपनी पहचान बना रहा है और नई तकनीकों और विकास योजनाओं के साथ आगे बढ़ रहा है।
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अर्थव्यवस्था ( Economy )
हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक कई बदलावों से गुजरी है। व्यापार, कृषि, उद्योग और वित्तीय सुधारों ने इसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस दस्तावेज़ में हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।
प्राचीन हिंदुस्तान (1 ईसा पूर्व – 1000 ई.)
व्यापार और वाणिज्य
- सिंधु घाटी और वैदिक काल का व्यापार
- सिंधु घाटी सभ्यता में व्यापार मुख्य रूप से वस्तु विनिमय प्रणाली पर आधारित था।
- इस काल में अनाज, धातु और वस्त्रों का व्यापार होता था।
- मौर्य और गुप्त काल की आर्थिक समृद्धि
- मौर्य काल में कर प्रणाली को संगठित किया गया और कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई।
- गुप्त काल में व्यापार का विस्तार हुआ और हिंदुस्तान सोने-चांदी के सिक्कों के लिए प्रसिद्ध था।
कृषि और सिंचाई प्रणाली
- सिंचाई तकनीकों का विकास
- प्राचीन काल में कुओं, तालाबों और नहरों द्वारा सिंचाई की जाती थी।
- गुप्त काल में भूमि कर (भूमिधार) प्रणाली लागू की गई थी।
मध्यकालीन हिंदुस्तान (1000 ई. – 1757 ई.)
इस्लामी शासन के दौरान अर्थव्यवस्था
- दिल्ली सल्तनत और मुगलकालीन आर्थिक नीतियां
- दिल्ली सल्तनत के दौरान जमींदारी व्यवस्था और कर संग्रह प्रणाली लागू की गई।
- मुगल साम्राज्य में व्यापार का विस्तार हुआ और हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था वैश्विक स्तर पर प्रभावशाली बनी।
व्यापार और उद्योग
- मुगल काल में व्यापार और विदेशी संबंध
- हिंदुस्तान से यूरोप और एशिया के देशों को मसाले, वस्त्र और हीरे निर्यात किए जाते थे।
- अंग्रेज, पुर्तगाली, डच और फ्रांसीसी व्यापारियों ने इस दौरान हिंदुस्तान में व्यापारिक केंद्र स्थापित किए।
- हथकरघा और हस्तशिल्प उद्योग
- कश्मीरी शॉल, बनारसी सिल्क और कालीन उद्योग फल-फूल रहे थे।
- मुगल काल में कारीगरों को संरक्षण दिया गया, जिससे हस्तशिल्प उद्योग विकसित हुआ।
ब्रिटिश शासन (1757 – 1947)
औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था
- कृषि और कच्चे माल का शोषण
- ब्रिटिशों ने हिंदुस्तान को एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में बदल दिया और यहां से कच्चा माल इंग्लैंड भेजा जाने लगा।
- भारतीय किसानों को नकदी फसलें (जैसे – नील, कपास और चाय) उगाने के लिए मजबूर किया गया।
- रेलवे और संचार का विकास
- ब्रिटिश सरकार ने रेलवे, टेलीग्राफ और डाक सेवाओं का विस्तार किया, जिससे व्यापार को बढ़ावा मिला।
- हालांकि, यह विकास मुख्य रूप से ब्रिटिश व्यापारिक हितों के लिए किया गया था।
आर्थिक असमानता और गरीबी
- अंग्रेजों की नीतियों से भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- ब्रिटिश शासन के दौरान हिंदुस्तान की औद्योगिक संरचना ध्वस्त हो गई।
- भारी कर और आर्थिक नीतियों के कारण भारतीय कारीगर और किसान अत्यधिक गरीब हो गए।
स्वतंत्रता के बाद (1947 – 2025)
समाजवादी आर्थिक नीतियां (1947-1991)
- योजना आयोग और पंचवर्षीय योजनाएं
- 1951 में पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत हुई, जिसका उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देना था।
- कृषि, बिजली और भारी उद्योगों में निवेश किया गया।
- बैंकों और सार्वजनिक क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण
- 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।
- इस नीति का उद्देश्य ग्रामीण विकास और कृषि ऋण को बढ़ावा देना था।
आर्थिक उदारीकरण (1991-2010)
- 1991 में आर्थिक सुधार
- मनमोहन सिंह के नेतृत्व में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीति अपनाई गई।
- इससे विदेशी निवेश बढ़ा और भारतीय अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ी।
- सूचना प्रौद्योगिकी और सेवा क्षेत्र का विकास
- 2000 के दशक में हिंदुस्तान का आईटी और बीपीओ उद्योग वैश्विक स्तर पर उभरा।
- हिंदुस्तान दुनिया की प्रमुख सॉफ्टवेयर कंपनियों का केंद्र बन गया।
21वीं सदी की अर्थव्यवस्था (2010-2025)
- डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्टार्टअप क्रांति
- 2016 में ‘स्टार्टअप इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी योजनाएं शुरू की गईं।
- हिंदुस्तान का ई-कॉमर्स और डिजिटल भुगतान क्षेत्र तेज़ी से विकसित हुआ।
- मेक इन इंडिया और विनिर्माण क्षेत्र
- 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के तहत विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा दिया गया।
- इससे हिंदुस्तान में कई वैश्विक कंपनियों ने अपने संयंत्र स्थापित किए।
- हरित और सतत विकास की पहल
- हिंदुस्तान सौर ऊर्जा और अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश कर रहा है।
- 2025 तक, हिंदुस्तान वैश्विक जलवायु समझौतों के तहत सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में कार्यरत है।
हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक निरंतर विकसित हुई है। कृषि, उद्योग, व्यापार और डिजिटल प्रगति के साथ, हिंदुस्तान 2025 तक एक वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है।
राजनीति और सरकार ( Politics and Goverment )
आर्यावर्त की राजनीति और शासन प्रणाली समय के साथ बदलती रही है। प्राचीन काल से आधुनिक लोकतंत्र तक, विभिन्न राजवंशों, विदेशी शासन और स्वतंत्रता के बाद की सरकारों ने आर्यावर्त के राजनीतिक परिदृश्य को आकार दिया।
प्राचीन हिंदुस्तान (1 ईसा पूर्व – 1000 ई.)
राजतंत्रीय शासन प्रणाली
- महाजनपद और उनकी प्रशासनिक व्यवस्था
- 16 महाजनपदों में गणराज्य और राजतंत्र दोनों प्रकार की शासन प्रणालियां प्रचलित थीं।
- मगध, कौशल और अवंती सबसे शक्तिशाली महाजनपद थे।
- मौर्य और गुप्त शासन प्रणाली
- मौर्यकाल में चाणक्य द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ प्रशासन का प्रमुख मार्गदर्शक था।
- गुप्त शासन विकेन्द्रीकृत था, जिसमें स्थानीय प्रशासन की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
धार्मिक और कानूनी प्रभाव
- धर्म और राजनीति का संबंध
- अशोक ने बौद्ध धर्म को अपनाकर धर्म आधारित शासन प्रणाली को बढ़ावा दिया।
- मनुस्मृति और धर्मशास्त्रों ने सामाजिक और कानूनी व्यवस्थाओं को प्रभावित किया।
मध्यकालीन हिंदुस्तान (1000 ई. – 1757 ई.)
दिल्ली सल्तनत और मुगल शासन
- दिल्ली सल्तनत की प्रशासनिक व्यवस्था
- दिल्ली सल्तनत ने केंद्रीकृत प्रशासनिक प्रणाली अपनाई।
- सुल्तानों ने इक्ता प्रणाली लागू की, जिससे स्थानीय प्रशासन को मजबूत किया गया।
- मुगल साम्राज्य की प्रशासनिक प्रणाली
- अकबर ने मनसबदारी प्रणाली लागू की, जिससे प्रशासनिक दक्षता बढ़ी।
- शाहजहां और औरंगजेब के शासनकाल में साम्राज्यीय प्रशासन मजबूत हुआ।
क्षेत्रीय शक्तियों का उदय
- मराठा, सिख और राजपूत राज्यों की शासन प्रणाली
- मराठाओं ने छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व में स्वराज्य की अवधारणा विकसित की।
- सिख साम्राज्य में महाराजा रणजीत सिंह ने एक संगठित प्रशासन स्थापित किया।
ब्रिटिश शासन (1757 – 1947)
औपनिवेशिक शासन प्रणाली
- ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रशासन
- 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद ब्रिटिश कंपनी ने प्रशासनिक नियंत्रण स्थापित किया।
- 1773 में रेग्युलेटिंग एक्ट और 1833 के चार्टर एक्ट के जरिए कंपनी का प्रशासनिक ढांचा तैयार किया गया।
- ब्रिटिश राज और सरकारी सुधार
- 1858 में भारत सरकार अधिनियम के तहत हिंदुस्तान ब्रिटिश सम्राट के सीधे नियंत्रण में आ गया।
- 1919 और 1935 के अधिनियमों ने प्रशासनिक सुधार किए, जिससे प्रांतीय स्वायत्तता बढ़ी।
स्वतंत्रता संग्राम और राजनीतिक विकास
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और स्वतंत्रता आंदोलन
- 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई, जिसने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया।
- 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार ने स्वतंत्रता पर विचार किया।
- संविधान सभा और हिंदुस्तान की स्वतंत्रता
- 1946 में संविधान सभा का गठन हुआ, जिसने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया।
- 15 अगस्त 1947 को हिंदुस्तान स्वतंत्र हुआ और 26 जनवरी 1950 को गणराज्य बना।
स्वतंत्रता के बाद (1947 – 2025)
लोकतांत्रिक प्रणाली की स्थापना
- भारतीय संविधान और संसदीय प्रणाली
- भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, जिसने आर्यावर्त को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया।
- संसदीय प्रणाली के तहत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और संसद की भूमिका स्थापित हुई।
- केंद्र और राज्य सरकारों का प्रशासन
- आर्यावर्त में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत किया गया।
- 73वें और 74वें संशोधन के माध्यम से पंचायत राज प्रणाली को संवैधानिक मान्यता दी गई।
राजनीतिक दलों और चुनावी राजनीति का विकास
- कांग्रेस शासन (1947-1977)
- स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस पार्टी ने हिंदुस्तान में शासन किया और योजना आयोग तथा सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार किया।
- 1975 में आपातकाल लागू हुआ, जिससे लोकतंत्र को खतरा हुआ।
- गठबंधन राजनीति और उदारीकरण (1991-2014)
- 1991 में आर्थिक सुधारों के साथ नई आर्थिक नीतियां लागू हुईं।
- 1999 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार का गठन हुआ।
21वीं सदी की राजनीति (2014-2025)
- डिजिटल युग और प्रशासनिक सुधार
- 2014 में डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं शुरू की गईं।
- ई-गवर्नेंस और आधार कार्ड जैसी डिजिटल पहलों से प्रशासन में पारदर्शिता आई।
- वैश्विक स्तर पर आर्यावर्त की स्थिति
- आर्यावर्त अब एक उभरती हुई महाशक्ति है और संयुक्त राष्ट्र, G20 तथा अन्य वैश्विक संगठनों में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
- 2025 तक, आर्यावर्त की राजनीति और शासन प्रणाली और अधिक सुदृढ़ और पारदर्शी बनने की दिशा में अग्रसर है।
आर्यावर्त की राजनीति और शासन प्रणाली प्राचीन काल से आधुनिक लोकतंत्र तक लंबी यात्रा कर चुकी है। 2025 तक, आर्यावर्त एक सशक्त लोकतंत्र और वैश्विक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है।