मासूम ग्रंथ को न्याय दिलाने की पुकार: मिरा-भायंदर में निकाली गई ‘अहिंसा न्याय रैली’

- भायंदर (मुंबई)
रैली में हजारों की संख्या में माताएं, बहनें, भाई और बच्चे शामिल हुए, जिन्होंने एक स्वर में दोषियों को कड़ी सजा देने की मांग की।
यह रैली एक 11 वर्षीय मासूम बालक ग्रंथ हंसमुख जैन को न्याय दिलाने हेतु निकाली गई, जिसकी हाल ही में भायंदर स्थित एक स्पोर्ट्स क्लब के स्विमिंग पूल में दुखद मृत्यु हो गई थी। ग्रंथ, जो कि एक होनहार और चंचल बालक था, अपनी नियमित शारीरिक क्रिया के तहत स्विमिंग पूल गया था। परंतु वह दिन उसके जीवन का अंतिम दिन बन गया।
मासूम की मौत और सवालों के घेरे में ठेकेदार
ग्रंथ की मौत का कारण बताया गया — स्विमिंग पूल में सुरक्षा व्यवस्था की घोर लापरवाही। वहां कोई लाइफगार्ड मौजूद नहीं था, और सुरक्षा के अन्य मानकों की भी अनदेखी की गई थी। स्थानीय प्रशासन द्वारा नियुक्त ठेकेदार ने नियमों की अनदेखी कर स्विमिंग पूल का संचालन किया, जिससे यह दर्दनाक हादसा हुआ।
ग्रंथ ने तड़पते हुए अपनी अंतिम साँसे लीं — यह सोचकर ही रूह कांप उठती है कि मासूम ने मौत से कितनी लड़ाई लड़ी होगी। उसके माता-पिता, जो उसके उज्जवल भविष्य के लिए सपने संजो रहे थे, उन्हें अपने कलेजे के टुकड़े की यह खबर सुनकर क्या बीती होगी, यह शब्दों में बयां कर पाना असंभव है।
प्रशासनिक लापरवाही और न्याय की लड़ाई
इस घटना के जिम्मेदार ठेकेदार और अन्य दोषियों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार तो किया गया, लेकिन कुछ ही घंटों में उन्हें धनबल के आधार पर जमानत मिल गई। वहीं, दूसरी ओर, इस मामले से जुड़े अहम सबूत, जैसे कि स्विमिंग पूल के सीसीटीवी फुटेज, अब तक परिजनों को नहीं दिखाए गए हैं।
ऐसे में सवाल यह उठता है — क्या भारत में न्याय केवल रसूखदारों के लिए रह गया है? क्या आम आदमी की पीड़ा, उसका शोक, उसकी न्याय की पुकार सिर्फ कागज़ों तक सीमित रह गई है?
समाज की एकजुटता और अहिंसात्मक आंदोलन
लेकिन इस बार मिरा-भायंदर का समाज चुप नहीं बैठा। जैन समाज — जो हमेशा अहिंसा और संयम का पालन करता है, उसने अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाई। 23 अप्रैल को निकली ‘अहिंसा न्याय रैली’ इसी न्याय की पुकार का प्रतीक बनी।
रैली में उपस्थित जनसैलाब ने नवघर पुलिस स्टेशन पहुंचकर प्रशासन से यह स्पष्ट मांग रखी कि दोषियों पर कड़ी कानूनी कार्यवाही की जाए, और इस मामले की निष्पक्ष जांच हो। समाज ने यह भी संकल्प लिया कि जब तक न्याय नहीं मिलेगा, तब तक संघर्ष जारी रहेगा।
ग्रंथ – अब एक परिवार नहीं, समाज का बेटा
ग्रंथ अब केवल हंसमुख जैन परिवार का बेटा नहीं रहा। वह पूरे मिरा-भायंदर, पूरे समाज का बेटा बन चुका है। उसकी आत्मा परलोक से भी गुहार लगा रही है — “मेरे साथ न्याय हो, ताकि भविष्य में कोई और मासूम मेरी तरह इस लापरवाही का शिकार न बने।”
यह घटना न केवल एक परिवार के सपनों के टूटने की त्रासदी है, बल्कि यह पूरे सिस्टम पर एक कठोर प्रश्नचिह्न भी है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, जब तक दोषियों को दंड नहीं मिलेगा, तब तक ऐसी घटनाएं दोहराती रहेंगी।
अब समय आ गया है कि शासन और प्रशासन जागे — और मासूम ग्रंथ को न्याय दिलाकर यह साबित करे कि भारत में अब भी इंसानियत और न्याय जीवित है।