रैयती ज़मीन पर दख़ल के लिए दर-दर भटक रहे रमेश मुर्मू, प्रशासन से लगाई न्याय की गुहार

टुण्डी (गिरिडीह), 12 जुलाई | संवाददाता – दीपक पाण्डेय
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गिरिडीह के कुसमाटांड़ गांव का भूमि विवाद गहराया।
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रमेश मुर्मू को अपनी ही जमीन पर दखल नहीं मिल पा रहा।
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ऑनलाइन दाखिल-खारिज, लगान रसीद, और मकान मौजूद होने के बावजूद विवाद।
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दुर्गा मांझी के वंशज द्वारा धमकी और गाली-गलौज का आरोप।
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स्थानीय थाना द्वारा निर्माण पर रोक, लेकिन समाधान लंबित।
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प्रशासन से न्याय की गुहार लगाते हुए संघर्ष कर रहा है पीड़ित पक्ष।
गिरिडीह ज़िले के टुण्डी प्रखंड अंतर्गत ताराटांड़ थाना क्षेत्र के कुसमाटांड़ गांव निवासी रमेश मुर्मू इन दिनों अपनी ही रैयती ज़मीन पर दखल पाने के लिए प्रशासनिक दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं।
रमेश मुर्मू का आरोप है कि दबंगों के डर और पुरानी जमीन विवाद की वजह से वे आज अपने ही जमीन पर अधिकार स्थापित नहीं कर पा रहे हैं, जबकि उक्त भूमि का पूरा कानूनी दस्तावेज़, दाखिल-खारिज और ऑनलाइन लगान भुगतान उनके पक्ष में है।
क्या है पूरा मामला?
मामला मौजा ताराटांड़, थाना नं. 583, मूल खाता नं. 74, और रैयत खाता नं. 2, प्लॉट नं. 1749, 1994, 1995 व 1996 से जुड़ा है। कुल 3 एकड़ 40 डिसमिल भूमि श्यामलाल मुर्मू पिता जटू मांझी (ग्राम+थाना: ताराटांड़) के नाम से गाण्डेय अंचल कार्यालय में विधिवत रूप से दाखिल-खारिज होकर पंजी 2 पर ऑनलाइन रसीद के साथ दर्ज है, जिसमें वर्ष 2024-25 तक का लगान अदायगी प्रमाण भी उपलब्ध है।
रमेश मुर्मू का कहना है कि उन्होंने इस भूमि पर मकान बनाकर निवास भी प्रारंभ कर दिया, लेकिन जमीन के मूल खाता नं. 74 में दुर्गा मांझी नामक रैयत का नाम खतियान में दर्ज है। दुर्गा मांझी ने इस जमीन को दररैयत भोंडा मांझी (खाता नं. 2) को स्थायी रूप से दे दिया, जिसके वंशज आज तक इस पर काबिज़ हैं।
विवाद की जड़ – खतियान बनाम दाखिल-खारिज
इस भूमि पर पहले से काबिज़ भोंडा मांझी के वंशज तो अपने अधिकार का दावा कर ही रहे हैं, अब दुर्गा मांझी के वंशज विश्वनाथ मुर्मू (पिता – सौल मुर्मू) द्वारा रमेश मुर्मू को लगातार धमकियाँ दी जा रही हैं। रमेश का आरोप है कि उनके साथ गाली-गलौज, धमकी और जबरदस्ती रोक-टोक की घटनाएं आम हो चुकी हैं।
प्रशासन के पास गुहार, लेकिन समाधान अधूरा
रमेश मुर्मू ने गिरिडीह ज़िला प्रशासन को आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई है। उनका कहना है कि यदि समय रहते प्रशासन ने ठोस कदम नहीं उठाया, तो क्षेत्र में आपसी टकराव और कानून व्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
स्थानीय थाना की रोक: निर्माण कार्य पर लगाई गई पाबंदी
इस मामले को गंभीरता से लेते हुए स्थानीय ताराटांड़ थाना ने दोनों पक्षों को आदेश दिया है कि जमीन पर किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य अगली सूचना तक नहीं किया जाए। हालांकि, पीड़ित पक्ष का कहना है कि वे केवल वैध कागजात और सरकारी रिकॉर्ड के आधार पर न्याय की मांग कर रहे हैं।
संपादकीय टिप्पणी -
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में ज़मीन सिर्फ़ संसाधन नहीं, बल्कि जीवन और अस्तित्व का आधार होती है। यदि एक व्यक्ति को अपनी वैध जमीन पर भी अधिकार पाने के लिए दर-दर भटकना पड़े, तो यह न सिर्फ़ कानून व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है, बल्कि प्रशासन की संवेदनशीलता पर भी सवाल उठाता है।
जमीन विवादों को सुलझाने के लिए ज़मीनी स्तर पर डीएम स्तर की मॉनिटरिंग और राजस्व रिकॉर्ड की पारदर्शिता बेहद आवश्यक है। अगर रमेश मुर्मू के कागजात सही हैं, तो प्रशासन को चाहिए कि तत्काल निष्पक्ष जांच कर उन्हें उनका हक़ दिलाए। अन्यथा ऐसे ही मामलों के चलते कई निर्दोष लोग न्याय के लिए ताउम्र संघर्ष करते रहते हैं।